आरज़ू-ए-दिल
आरज़ू-ए-दिल
इश्क़ की बाज़ी जीत कर तुमसे हार जाना अच्छा लगता हैं
बेवक्त बेहिसाब मुस्कुराते जाना अच्छा लगता हैं
तुझे निहारती निगाहों की जुस्तजू का क्या कहूँ...
बिन बताये तुम को तुमसे चुराना अच्छा लगता हैं ।
तेरी गालों की लाली में खो जाना अच्छा लगता हैं
तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव में सो जाना अच्छा लगता हैं
तुझे देखकर बहकतीं अदाओं का क्या कहूँ...
बिन बताये तुम को, तुम्हे गलें लगाना अच्छा लगता हैं ।
तेरी मीठी सी आवाज़ पर मर जाना अच्छा लगता हैं
तेरी झील सी आँखो में डूब जाना अच्छा लगता हैं
मैं मेरे ख़्यालों का क्या कहूँ...
बिन बताये तुम को, तेरे ख़्वाबों में आना अच्छा लगता हैं ।
तेरे लबों को गुलाब सी पंखुड़िया बताना अच्छा लगता हैं
तेरी हर एक बात को गीत-ग़ज़ल बताना अच्छा लगता हैं
मैं मेरे पसंद की इंतिहा क्या कहूँ
बिन बताये तुम को, तुम्हारा बन जाना अच्छा लगता हैं।