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आरजुएँ

आरजुएँ

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मेरा दिल आरजुओं की फटी पोटली है

जिसे मैं वक्त के धागे से सीता जा रहा हूँ


जब मैं इसे निकाल कर खूँटे पे टाँगता हूँ

तो देखता हूँ आरजुओं को इससे टपकते हुए


आरजुएँ कुछ ज़माने से घबराती हुई

आरजुएँ कुछ अपने आप पे इतराती हुई


गौर से देखता हूँ तो ये महसूस होता है

कि दरअसल ये एक-दूसरे से जुड़ी हुई है


कुछ आरजुएँ तो अजीब सी लगती है

लगता है मेरी नहीं किसी और की है


कुछ जवान है और उमंग से भरी हुई है

कुछ बूढ़ी है और झुंझलाई सी है


मैं जैसे खो ही गया था इनको देखकर

कि तभी एक हारी-थकी मेरे पास आई


बोली तुम मुझे कब पूरा करोगे

मैं बहुत थकी हूँ इन में सबसे बड़ी हूँ


मैं उसे समझा ही रहा था कि तभी

दूसरी ने मुझे जोर से झिंझोरा


तीसरी ने मुझे धमकाया,और फिर देखते ही देखते

सब एक साथ मुझ पर टूट पड़ी


मैं घबरा गया और सबको बटोरा

पोटली में बाँध कर ज्यों का त्यों रख दिया।।


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