आपस में क्यूँ लड़ रहे हैं
आपस में क्यूँ लड़ रहे हैं
हम तुम कभी एक रंग एक जान हुआ करते थे
हमेशा तुम हमारा हम तुम्हारा मान रखा करते थे
कभी तुम भी ख़ुश होते थे हमें ख़ुश देखकर
हँसी तुम्हारी बाकी रखी हमने दुख सहकर
क्यूँ वक़्त की आग में झुलस गयीं मोहब्बतें
दिलों की उलझनों में क्या फँस गयी चाहतें
मिठाई दीवाली की हमारे संग ही मीठी लगे तुम्हें
ईद की खुशियाँ तुम्हारे बिना फीकी सी लगे हमें
कामयाबी की सीढ़ियाँ हमारे लिये तुम बने रहे
सुख दुख में हम भी तुम्हारे लिये हरपल लगे रहे
चंदन रोली पवित्र गंगाजल से हम मंत्र मुग्ध थे
अजानों का अहतराम करने में तुम भी सख्त थे
सब अपना था फिर क्यूँ बन गये हम अजनबी
भूल उन्नति हम तुम निभाने लगे सिर्फ दुश्मनी
हो के जुदा एक दूजे से बताओ कैसे जीयेंगे
कहाँ कहाँ और कितनी यादों को मिटायेंगे
बचपन की काग़ज़ की नावें जो साथ बनायी थी
गन्ने का रस या चाट पकौड़ी जो साथ खायी थी
इम्तिहान में जब भी कभी मुश्किल आयी थी
पूरी रात संग पढ़ कर हमने वो निपटायी थी
फर्स्ट डे फर्स्ट शो में हम तुम साथ होते थे ना
घर से पिटकर आते थे संग बैठकर रोते थे ना
मोहल्ले में हम तुम ही दादागिरी दिखाते थे
होती थी शिकायत तो एक दूजे को बचाते थे
माँ के लिये चौराहे से रिक्शा तुम ही तो बुलाते थे
अम्मी के पान भी हम दोनों पैदल जाके लाते थे
बचपन के गुरुओं ने हमें भाई भाई बताया था
देकर सच्ची शिक्षा हमें एक कुटुंब बनाया था
बताओ ना बात बेबात आपस में क्यूँ लड़ रहे हैं
सुनो ना आजकल सबक ये कैसा सीख रहे हैं
क्या कर रहा है कोई गलत मुखबिरी हमारी
हम तक भी पहुँचा रहा है झूठ खबरें तुम्हारी
बिछड़ कर हम तुम शायद जी तो लेंगे ही
सच बताओ पर क्या ख़ुश रह पाएंगे कभी
नैतिकता का पाठ कैसे नयी पीढ़ी को सिखाएंगे
दीप तले अँधेरा नहीं है मन को कैसे समझाएंगे