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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

4.5  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

आपदा

आपदा

1 min
265


आज भी कल जैसी सुबह हुई है

लेकिन आसमान में कोई पंछी नही हैं

साथी जो थे प्यारे बहुत से हम से बिछुड़ गए

जाते जाते कहना चाहते थे बहुत कुछ

किन्तु हालातों के चलते मन मसोसे रह गए

 

कुछ तो ऐसे निकले के बदहवास थे 

कुछ समझ पाते उस से पहले देह से पार थे 

पूछना चाहते थे कि क्या जुल्म किया

अपने खून के रिश्तों से भी गले मिलने न दिया 


घोट कर उष्ण श्वास गले में ही रह गए 

थे अनेको ऐसे की अपनो के दर्शनों को तरस गये 

आपदा प्रभावित होकर उन्होंने अपना आप गँवाया 

प्रकृति ने भी उनपर कैसा जुल्म ढाया 

एक एक श्वास को सब के सब तरस गये

बहता ही रहता है औष जन यूँ तो सतत सँसार में 


कैसी आपदा आई के बूंद बूंद को तरस रहे

आस्था के आयाम सारे अब टूटने लगे 

भरोसा था तुझ पर कोई करे तो क्या करे 

सुनवाई भी तो अब तेरे दरबार में विलुप्त हो गई 

पीठ पर उठाए ऑक्सीजन का बेरल लोग फिर रहे 


आज भी कल जैसी सुब्ह हुई है

लेकिन आसमान में कोई पंछी नही हैं

साथी जो थे प्यारे बहुत से हम से बिछुड़ गए।


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