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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

आँसू भरे अभावों में

आँसू भरे अभावों में

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कोई दामन जला प्रीति से, कोई झुलसा तिरस्कारों में

सबके पास अकेलापन है, शहर हो या फिर नितांत गाँव में। 


विहान जागती अलसाई – सी

आँखों में प्रश्न लिये हजार

टालते रहते उन्हें दिनभर

होंठों पर रखे पूर्ण विराम। 

ढलते सूरज से चुभते अँधेरे, लगे अंतस् के घावों में।। 


हर साँसों के सहर पर

लगे प्रचंड सौ-सौ प्रतिबंध

सरस मधुर रिश्तों में आये

छलमय कलंकित सी दुर्गंध। 

हृदय से जुड़े संबंधों ने, बेड़ी बाँधी पाँवों में।। 


प्यासा-प्यासा पनघट दिखे

पिपासित गागर खिन्न है

सावन की झड़ी लगी पलकों पर

भीगी-भीगी सी प्यास है। 

कस्तूरी-मृग सा मन भटके, तृष्णा के भटकावों में।। 


डरी – डरी सी साँझ सिसकती

भयभीत सलोने प्रभात हैं

झिलमिल करते निकायों में

आवास करते घनघोर अँधेरें हैं। 

अस्त हो गये हँसते सपने, आँसू भरे अभावों में।। 


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