आंखों की चमक
आंखों की चमक
ये खनक उन सांसों की नहीं
ये चमक हमारी आंखों की है
सामने आते ही उनके
एक लफ्ज़ ना निकले हलक से
आंखों ही आंखों में बातें होती है हज़ार
बस रहता है, उनके एक इशारे का इंतज़ार
कोई जाकर पूछो, उस चांद से
कोई छिन ले उससे उसकी चांदनी
तो कैसा लगता है?
बस तुमसे बिछड़कर मुझे भी वैसा ही लगता है
अनगिनत तारों के बीच भी
बिना चांदनी के चांद अधूरा सा लगता है
वैसे, करोड़ों की भीड़ में
मुझे तुम्हारे बिना तन्हा सा लगता है
समा जाएं मुझमें एक अक्स तेरा
तो कोई शिकायत नहीं उस रब से
जी लूंगी अपनी जिंदगी उसी अक्स के सहारे
क्यूंकि, ये खनक तन्हाई में मचे उस शोर की है
ये चमक मेरे दिल पे बनी तुम्हारे प्यार की मोहर की है।