STORYMIRROR

SARVESH KUMAR MARUT

Classics

4  

SARVESH KUMAR MARUT

Classics

आम फेरि बौर गये

आम फेरि बौर गये

1 min
49

आम फेरि बौर गये।।

गर्मिन की ऋतुअन मैं,

अब आमन के राज भये।

आम फेरि बौर गये।।

आम्र तरु सज धज के,

एक नओ रूप पाय लौ।

काली घटा घट-घट के,

निचुक-निचुक बरसाए गई।

आम्र देखे उनकौ तौ,

थोरो-थोरो घबराए गये।

आम फेरि बौर गये।।

शीतलिया पवन चली,

भौंर तौ लहराए गये।

लहराये गये पत्तौं कौ,

थोरे बहुत गिराये गये।

आम फेरि बौर गये।।

थोरे-थोरे छोटे हे,

लटकनिया बजाये रहे।

थोरे-थोरे बड़े भए,

बचे खुचे टपक गये।

आम फेरि बौर गये।।

पत्ते तौ पत्ते संग,

देखो कैसे डोल रहे?

देखै अपनी डलियन पै,

झूम-झूम झूम रहे।

बाल सारे मस्तिन मैं,

देख-देख हार गये।

झुके-झुके तोड़ लए,

ऊँचे-ऊँचे छोड़ दए।

आम फेरि बौर गये।।

और भई गर्मी तौ,

चित्तियाँ पड़न लगी।

तितली मधुमक्खी सब,

उनकी ख़ुशबू सूँघ रहे।

अमिया तौ हर्षित भई,

अब हमारे ठाठ भये।

सभी फल तौ फल ही रहे,

और हम सबन के राजा भये।

आम फेरि बौर गये।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics