आलम
आलम


तेरी तन्हाइयों के वो आलम होते थे
हम मोहब्बत में तेरी रुसवा होते थे।
खफा होते थे चारों पहर अपने आपसे
भरी महफील में यारों के तन्हा होते थे।
कोइ नहीं भाता था इस दिल को
तेरी ही यादों में हर दम डुबे होते थे।
जालिम तेरे लिये दिल आँसू बहाता था
वर्ना हम तो गम में भी खुश होते थे।
गर पता होता बेमुर्बत हो पुष्पांजलि
यारा हम अकेले ही किनारे खड़े होते थे।