आखिरी मुलाक़ात
आखिरी मुलाक़ात
वो आखरी मुलाक़ात वो आखरी दिन।
मानो एयरपोर्ट पे खड़ा हर शख्स मुझे
तुम्हारी बाँहों में रोता देख रहा था।
जैसे में दूर होना ही नहीं चाहती थी,
काश तुमने रोक लिया होता मुझे,
काश तुम ही रुक जाते मेरे साथ।
उस दिन पूरी कायनात मेरे दर्द में शामिल थी,
मानो मेरे साथ होने का एहसास दिला रही हो।
उस दिन शायद आसमान भी रो रहा था,
मानो मेरे दर्द को सबसे छुपाना चाहता हो।
वो बारिश की एक एक बूंद मेरी आँखों से
उन आँसुओं को लेकर गिर रही थी।
शायद वो भी मेरे आंसू सबसे छुपाना चाहती थी।
उस दिन जब में वो शहर लौटी तो
सब अनजान सा हो गया था।
मानो हर वो गली वो रास्ता मुझसे चीख चीख कर
तुम्हारा पता पूछ रहा हो।
उस दिन सारे पंछी भी शांत थे,
जो कल तक तुम्हारी बांसुरी की धुन सुन
चहचहाते थकते न थे।
उस दिन वो समंदर की लहरें भी शांत सी होगयी थी,
मानो मुझे छू कर मेरे अन्दर के
तूफान का कारण पूछ रहो हो।
उस दिन चाँद ने भी सारे तारों को
अपने आगोश में ले रखा था,
मानो वो भी मेरे दर्द में शामिल हो रहा था।
उस दिन हवाओं ने भी अपना रुख मोड़ा था ,
मनो मुझसे तेरी खुशबू को उडा ले जा रही हो।
उस दिन वह समंदर किनारे में लिखना चाहती थी,
वो बाते वो यादे जो कभी तुमने मेरे साथ यहाँ बिताई थी।
उस दिन बहुत कुछ सीखा मेने बहुत कुछ बदलते देखा था ,
मानो मेने हालातो के साथ साथ तुम्हे भी बदलते देखा था।
उस दिन में खामोश थी अपने दिल का शोर लिए,
कि शायद तुम तो सुन ही लोगे, क्या याद है तुम्हे।
वो आखरी मुलाक़ात वो आखरी दिन।