आखिरी मुलाकात
आखिरी मुलाकात
याद है आज भी वो आखिरी मुलाकात।
सामने तो थे तुम, बस में नहीं थे जज़्बात!
कितनी शिद्दत से चाहा था तुमने हमें दिन रात!
रहने आए थे दूसरे शहर से पड़ोस में ही हमारे तुम।
पिता के तबादले से, पुराना शहर छूटा तो रहते थे गुमशुम।
माता जी के साथ मिलने गए थे हम तुम्हारे घर।
तुमसे मिलकर खुशी हुई, पढ़ते जो थे दोनों एक वर्ग।
होने लगी प्रायः हर रोज़ ही हम दोनों की मुलाकातें।
हालचाल पूछते और होती थी पढ़ाई लिखाई की बातें।
गणित में मेरी कमजोरी थी, तो भाषा साहित्य में तुम्हारी।
मिलकर पढ़ने लगे जब कमजोरी ताकत बनी हमारी।
कभी प्रथम तुम आते तो कभी पाती मैं प्रथम स्थान।
हम दोनों करते थे एक दूजे की भावना का सम्मान।
पढ़ाई पूरी करते करते हुआ अचानक एक वर्जपात।
तुम्हारे पिताजी के तबादले की मनहूस खबर आई।
सुनकर हम दोनों की ही आँखें बरबस छलक आईं।
सदमे में थे दोनों निकले नहीं घर से कई रोज़।
आखिरकार वह पल भी आ गया जीवन में हमारे।
विदा लेने आए तुम मगर जुबां से कुछ न निकले हमारे।
याद है आज भी वो आखिरी मुलाकात।
सामने तो थे तुम, बस में नहीं थे जज़्बात!
आशा है जीवन में हम मिलेंगे फिर से कहीं न कहीं।
उस मुलाकात में कह डालेंगे वो बात जो रही अनकही।