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Keshab Chandra Dash

Abstract Classics Fantasy

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Keshab Chandra Dash

Abstract Classics Fantasy

आखिर कहां है मेरे राम?

आखिर कहां है मेरे राम?

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एक संन्यासी घूमते घूमते एक दुकान पर आया,
खरीदना तो कुछ नहीं लेकिन प्रश्न पूछकर उसने दुकानदार का दिमाग खाया ।

दुकान पर रखे थे छोटे छोटे डब्बे दुकानदार ,
डब्बे देख कर जिज्ञासा उतपन्न हुई,
पूछा क्या है इस डिब्बे में और क्या है तेरा व्यापार?

दुकानदार बोला नम्र भाव से
राशन दुकान मेरा इस डब्बे में है हल्दी,
उस डिब्बे में है नमक,अगर खरीदना है कुछ तो बाबा बताओ जल्दी जल्दी?

सब डिब्बे को दिखाकर एक एक करके पूछता चलागया डिब्बे में रखे हर चीज का नाम,
दुकानदार हो गया परेशान,
आखिर बाबा कुछ खरीदेंगे या खाली पूछना ही उनका काम ?

अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया सन्यासी ने पूछा क्या है इसमें, जरा ये भी बताओ,क्या है इसका नाम?
चीड़ गया दुकानदार,मगर क्या करें
ग्राहक हैं भगवान,कैसे करे अपमान ?

दुकानदार बोला, इस डिब्बे में हमने रखे है राम-राम !
सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा ये क्या चीज है,
मैने नहीं सुना आजतक कोई है भी एक समान जिसके है राम नाम ?

दुकानदार हंस कर बोला - महात्मन !
डब्बा खाली है,हम खाली को बोलते हैं राम,
सन्यासी दुकानदार प्रति देखता रह गया ,,, जिस बात के लिये ओ दर दर भटक रहा एक दुकानदार ने दे दिया उनको सद्ज्ञान ।

संन्यासी बोले ,सत्य बोला है भाई तुमने खाली में तो रहते हैं राम,
साधु होकर भी इतने दिनों तक
जान नहीं पाया भरे हुए वस्तु में कैसे रह पाएंगे मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम ?

काम, क्रोध,लोभ,मोह, लालच, ईर्ष्या, द्वेष,भली- बुरी, सुख, दुख,अभिमान
ये सब दिमाग में भिन्न भिन्न वस्तुएं समान, जब दिल-दिमाग ऐसे ही भरा रहेगा
राम यानी ईश्वर कैसे बनाएंगे अपना स्थान ?

खाली याने साफ-सुथरे मन में रहते हैं प्रभु आजतक नहीं था मुझको यही ज्ञान ,
सारे जगत में ढूंढ रहा हूं कहां है मेरे राम? आज सन्याशी था अपने आनंद में
उसने ढूंढ लिया आखिर प्रभु के निवाशस्थान ।


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