आखिर कब तक
आखिर कब तक
आखिर कब तक ?
निज स्वार्थ भाव अज्ञात भय,
हर पल मन को मारती,
चल देती बढ़ जाती है।
स्वामिभक्त अर्धांगिनी।
आखिर कब तक ?
पल पल परीक्षा की।
अधिकारिणी बहू,
सीता का साथ निभाएगी।
हर बार सूली पर जाएगी।
आखिर कब तक ?
नारी हर बार
अपनी शक्ति दबाएगी।
खुद ही दायरों के पीछे
अपनी राह छुपायेगी।
