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आईना वैश्य

Abstract

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आईना वैश्य

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आख़िर हम कितने स्वतन्त्र है

आख़िर हम कितने स्वतन्त्र है

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इतिहास के पन्नों पर लिखित है कि 15 अगस्त 1945 को हमे अंग्रेजों की दासता से स्वतन्त्रता मिली थी। कहने को तो हम आज भी स्वतंत्र भारत में रह रहे हैं परंतु पूर्णतया ये सत्य नहीं है। हम लोगों के सामने प्रत्यक्ष रूप से खुले हृदय के स्वच्छंद विचारधारा और स्वतन्त्र मानसिकता वाले व्यक्ति हैं लेकिन अगर सूक्ष्म अवलोकन किया जाये तो स्पष्ट हो जाएगा कि हम कुटिल रूढ़ीवादिता और घृणित तुच्छ मानसिकता की क़ैद में हैं जो हमारी परतंत्रता का प्रतीक है। 

आज़ हम भारत की स्वतंत्रता की 73वीं वर्षगांठ मनाने जा रहें हैं लेकिन आत्म और सामाजिक परतंत्रता से घिरे हुए...

बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हमने अंग्रेजों की अधीनता से तो स्वतंत्रता हासिल कर ली लेकिन अपने अन्दर हृदय की स्वतन्त्रता को न पा सके।

अपने अंदर के तुच्छ और कुटिल शत्रु से न लड़ सके जिसने समाज और देश को दूषित कर रखा है। वरना देशभर में बालिका बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, बाल शोषण, छेड़छाड़, दहेज के लिए नारी दहन-प्रताड़न-बलि आदि जैसे इतने अपराध न हो रहे होते, सामाजिक कुटिल धारणाओं से हारकर युवक/युवती आत्महत्या न कर रहे होते और न ही आतंकवाद, दंगे फसाद और के कारण कई घर, परिवार शहर गाँव क़स्बे आदि न तबाह हो रहे होते।

इन सभी घटनाओं को देखते हुए लगता है कि स्वतंत्रता आज भी हमारे लिए एक भ्रम ही है जिससे हमने स्वयं को ही भ्रमित करके मूर्ख बना रखा है। वास्तव में अगर भारत स्वतंत्र है तो स्वतंत्रता को सही मायने में कैसे परिभाषित किया जाए यह विचार एक आम आदमी की सोच से काफ़ी परे ही है।

स्वतन्त्रता का अर्थ ये बिल्कुल नहीं है कि स्वच्छंद रूप से लोग अपनी मनमानी करें या मर्यादाहीन होकर अनैतिक कृत्य करें। मेरे विचार से वास्तविक स्वतंत्रता तब मानी जायगी जब नेता और आम जनता सीमाएं अपनी स्वयं तय करे, बेटी-बेटे को समान समझा जाए फ़िर चाहे वो अपना ही या पराया, बच्चों को बचपन से ही उच्चतम संस्कार देकर मानसिक स्वतंत्रता का भाव जागृत किया जाये, नैतिकता और अनैतिकता की जानकारी दी जाए, सत्कर्म और कुकर्म का भेद समझाया जाए, जब नारियों के मन से पुरुष वर्ग के प्रति भय दूर होगा, जब दहेज प्रथा समाप्त होगी,

जब बहु बेटे बुढ़ापे पर माँ पिता का सहारा बनेंगे, उनका मान-सम्मान करेंगे, जब सर्वाधिकार सुरक्षित होंगे, जब भ्रष्टाचार खत्म होगा, जब ईमानदारी से लोग अपने अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे, जब हम किसी को ग़लत कहने से पहले उसकी स्थिति और पारिस्थिति को समझेंगे, जब प्रेम और सौहार्द भाव व्याप्त होगा, जब हम स्वयं कुटिल रूढ़ीवादिता, तुच्छ मानसिकता नामक बीमारी से स्वस्थ हो पाएंगे वास्तव में तभी हम पूर्णतया स्वतंत्र हो पायेंगे और स्वतंत्रता का आनंद उठा पायेंगे।

फ़िलहाल अब विराम देती हूँ अपनी भावनाओं की इस धारा को...

स्वतंत्र भारत के सभी स्वतंत्र भारतीयों को मेरा कोटि कोटि प्रमाण.....सादर अभिनन्दन


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