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Ayush sati

Inspirational

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Ayush sati

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आजादी की दुर्दशा

आजादी की दुर्दशा

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किन कठिनाई से गुजरे है,हम ही जाने तुम क्या जानो

कैसे कैसे जीना पड़ता, सुख में हो तुम क्यों मानो

कभी चलो उन राहों पर, कठिनाई साक्षात्कार करे

हर मोड पे होती नई समस्या, परिस्थिति प्रतिकार करे


संघर्षों की उस विभीषिका का, दृश्य अभी भी जीवित है

पराधीनता की जंजीरों का, दर्द भी आसिमित हैं

जब लौह अंश के बने लोग सब, फांसी लटकाकर अमर रहे

जब मां बेटी बहने बहुएं भी, शीश कटाने तत्पर थे


वो भारत मा के वीर सपूत, जो शीश उठाकर चलते थे

रानी लक्ष्मीबाई जैसे, नवजात शिशु भी पलते थे

जब वीर क्रांतिकारी सर पे, कफ़न बाध कर चलता था

तब कन कण में भारत माता के, देश प्रेम झलकता था


बाहर निकलो आओ देखो, कितना दर्द सहा हमने

वह आजादी की कठिन परीक्षा, सब बर्बाद किया तुमने

हम सबके लहू की धाराओं का, पानी सा तुमने बहा दिया

हम सबकी आशाओं का, प्रतिफल तुमने कहां दिया


देश प्रेम की मर्यादा का, जरा भी भान नहीं तुमको

आजादी की समर भूमि का, थोड़ा भी ज्ञान नहीं तुमको

पत्थरबाजी भ्रटाचारी अब, राष्ट्र भाग्य की रेखा है

नन्हे कोमल कन्या भ्रूणों को, कचरे में तुमने फेंका है


आजादी के लिए हर बच्चा, खूं के आंसू नहा गया

माता पर मर मिटने का, जज्बा अब वह कहां गया

हाथ पे हाथ धरे ना बैठो, गलती पश्चाताप करो

अखंड अमर भारत का सपना, सब मिलकर साकार करो।


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