उत्साह
उत्साह
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वह पुष्पों की माला त्याग चुका
वह अभिलाषी है ज्वाला का
वह सुरबाला के गहनों में नहीं गूंथा
वह इच्छित है क्रांति दल का
उसके जीवन का यही लक्ष्य
कि कर जाऊं मैं काम बड़ा
इक महापुरुष का अंश बने
रह जाऊं मैं भी साथ खड़ा
अमर्ष लिप्त कलेवर है
वायुसुखा का परिचय है
ना कोई सामान्य अग्निकण
ना कृशाणु ये कतिपय है
उसके देह में आग्नि लगी है
एक दावानल है गूंज उठी
इस मालिन मुग्ध संसार में
प्रतिकार की ध्वनि सुनाई दी
आवेशरहित इस गहन विपट में
भड़क उठी है आग्निशिखा
पर इस भीषण द्रुत अरण्य में
नहीं कोई झंखाड़ दिखा।
