आजादी की चाह
आजादी की चाह
"ब्लाउज" के नाम पर "ब्रा" पहनती हैं
फिर भी खुद को "संस्कारी" समझती हैं
पीठ पूरी खुली रखने का नया चलन है
आधुनिक नारी होने का यही "टशन" है
फटी जींस पहनकर शान से चलती है
तंग वस्त्रों में कमनीयता और उभरती है
"मुक्ति" की चाह में वस्त्र मुक्त हो रही है
"लो वेस्ट" साड़ी भी प्रसिद्ध हो रही है
पारदर्शी वस्त्रों की ख्वाहिश बढ़ रही है
"आजादी" के नित नये पायदान चढ़ रही है
कोई "वर्जना" आधुनिकाओं को पसंद नहीं हैं
"खूंटे" से बंधे रहने में अब कोई आनंद नहीं है
"पाणिग्रहण" अब तो बोझ लगने लगा है
"लिव
इन" में रहने का नया चस्का चढ़ा है
बिंदी, सिंदूर वगैरह गुलामी की निशानी हैं
विवाहेत्तर संबंधों की अनगिनत कहानी हैं
बच्चों के झंझट में उसे पड़ना ही नहीं है
गृहस्थी के दलदल में और सड़ना नहीं है
"सिंगल" रहने में आजादी ही आजादी है
"गले की घंटी" बनने में जीवन की बरबादी है
लाज, शर्म कभी गहना हुआ करता था
घूंघट में पूनम का चांद मुस्कुराया करता था
अब "खुलेपन" का जमाना आ गया है
अब सब कुछ दिखाने में मजा आ रहा है
पता नहीं "आजादी की राह" कहां तक जायेगी
आधी दुनिया न जाने और क्या क्या दिखायेगी