आज फिर (शहीदों को नमन)
आज फिर (शहीदों को नमन)
आज हवाओं में दर्द ही दर्द सा महसूस हो रहा है
फिर एक माँ का दिल अपने लाल की याद में रो रहा है
आज फिर एक पत्नी अपना सुहाग उजड़ता देखा है
आज एक और परिवार ने अपना कुल दीपक बुझते देखा है
आज बारिश का भी कुछ अलग सा असर होता प्रतीत हो रहा है
शायद ये एक दर्द है जो जवानों की शहादत में शरीक हो रहा है
आज हमने एक और त्रासदी से फिर एक नया सबक सीखा है
आज एक और परिवार ने अपना कुल दीपक बुझते देखा है
मन में अपार पीड़ा पर एक रोष फिर जन्म ले रहा है
फिर से कोई नासमझ हमारे विश्वास के साथ खेल रहा है
इस माटी का सीना छलनी और हर भाव सूखा है
आज एक और परिवार ने अपना कुल दीपक बुझते देखा है
एक सत्य जो अंतिम साँस तक साथ रहेगा
हर बात बाद में देश का स्वाभिमान पहले आएगा
हर गलती की सजा और हर अनीति की सीमारेखा है
आज फिर हर घर में देशभक्ति का दिया जलते देखा है
पर उस परिवार की वेदना तो वही जान और समझ सकता है
जिसने अपने दिल के टुकड़े की जाते और घर की रोशनी बुझते देखा है।