आज क्या लिखूं
आज क्या लिखूं
किस के बारे में लिखूं लेखक बनकर।
जो काली पट्टी आंखो में बांधकर चली गई।
कुछ शब्द छोड़ गई है कुछ दिनों के लिए।
साथी कह कर हरजाई बन गई।
क्या हुआ उसको, जो बीच में ही छोड़ दिया।
नहीं करना था जो प्यार मेरे साथ।
हम अकेला रह लेते इन्हीं शहरों में।
पहले से तो अच्छा होता, नहीं सुनता बेवफ़ा की बात।
मजबूर था यारों दिल मेरा, जो उससे रिश्ता बनाया।
बहुत चाह थी उनकी बातों पर उनके होकर।
पर क्यों हुए रुसवा हमसे पहली आंख मिलाने के बाद।
मैं कब तक राह देखूं गम के सीढ़ियों पर गुजर कर।
मैं आहें भरता रहूंगा जब तक सांस चलेगी।
तुम भले ही याद नहीं आओ दूरी बना कर।
पर वो गुस्ताखी बातें याद आती हैं तुम्हारी।
अब तो मेरी कलम भी नहीं कबूल करती कह कर।
पहले ही दफा नींद हराम कर गई मुस्कान देकर।
फिर बंधन तोड़ा रिश्ता के पत्थर बनकर।
मेरा मन भी नहीं करता कुछ लिखने का तेरे बारे में।
जो आंसुओ कि दारिया बहा गई मेरे दिल में नदी बनकर।
