आज की बेटियाँ (बेटी बचाओ )
आज की बेटियाँ (बेटी बचाओ )
"बेटी" बनकर आई हूँ माँ-बाप के जीवन में
बसेरा होगा कल किसी और के आँगन में,
क्यों ये ' रीत ' रब ने बनाई होगी कहते हैं
आज नहीं तो कल बेटी पराई होगी,
देकर जन्म जिसने हमें पाला-पोसा, बडा किया, और
'वक्त' आया तो उन्हीं हाथों ने हमें "विदा" किया,
टूट केबिखर जाती है, हमारी जिंदगी, वहीं पर
फिर भी उस "बंधन" में प्यार मिले जरुरी नहीं।
क्यों रिश्ता हमारा इतना अजीब होता है।
क्या सब यहीं बेटीयों का नसीब होता है
बेटियाँ जाकर दूसरों के घर में उजाला देती हैं,
लेकिन जब बेटी पैदा हो तो हम दुःखी क्यों होते है?
