आज का दर्पण
आज का दर्पण
अंतहीन धूसर आकाश के नीचे,
कुछ भय और कुछ आशाएँ खेलती हैं,
इस अद्भुत धरती में तैर रही हवाएं,
मानव आत्मा की बहुत सी बातें कहती हैं।
निरंतर गति से गूंजती हुई सड़कें हैं,
फिर भी सन्नाटा मील के पत्थरों में है रहता।
आँखें चमकती स्क्रीन पर हैं चिपकी हुईं,
स्वप्न रील्स दृश्यों के साथ-साथ है बहता।
पृथ्वी हमारे दिए गए घावों से रोती है,
नदियों में सूखापन, पेड़ों में दर्द बसा है।
अराजकता की आग से दिल जलते हैं,
अंतहीन लड़ाई में भी परिवर्तन हँसा है।
स्वास्थ्य और तनाव का इक नाजुक बंध है,
दर्द कम करने की कोशिश में लगा है विज्ञान।
दिल का स्पर्श है नहीं, एआई का है दिमाग,
और ये साथ मिल कर रहे हैं भाग्य का निर्माण।
युवा स्वर नहीं, मिलती वृद्ध सिसकियाँ हैं,
दुनिया भर में बह रही हैं तरंगे सेलफोन की।
स्वर स्पीकर में, नृत्य हैं वीडियो में,
दिल है निःशब्द, दिमाग में आवाज़ें हैं मौन की।
