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Ranjana Jaiswal

Romance

4  

Ranjana Jaiswal

Romance

आज भी

आज भी

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दिन -प्रतिदिन 

व्यतीत हो रहा है जीवन 

और रीत रहा है 

नहीं बीत रहा तो मन 

नहीं रीत रही तो देह 

देह में दौड़ती है वही आवेगमयी नदी 

लेते ही तुम्हारा नाम 

आँखें देखती हैं 

उगते सूरज में तुम्हारा चेहरा 

पंखुड़ियों में तुम्हारे होंठ 

पहले की तरह 

कैसे हो तुम 

सुना है दिखने लगे हो थोड़े बूढ़े 

बाल सफ़ेद 

कैसे मान लूँ 

नहीं बची होगी आग 

कि उपले -सी सुलग उठे देह 

चूक गयी होगी बाँहों की मजबूती 

बची तो होगी जरूर प्यास 

बूंद-स्वाती –सीप की।

हार गए होगे उम्र से 

प्रेम ने बचा रखा होगा तुम्हें  

वैसे का वैसा ही 

जैसे छूटते समय।



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