आज और बचपन
आज और बचपन
खो गया अपना बचपन सारा, वक़्त की आपा-धापी में
सीमित हो गई दुनियाँ सबकी, गंदी नियत, धोखेबाज़ी में||
अपने-पराये का विश्वास रहा न, रूप बदलती दुनियाँदारी में
सुंदर, सबसे प्यारी रचना, कैद है चारदीवारी में||
खोट, चालाकी छिपी है मन में, मीठी बोली, भोली सूरत में
वक़्त पे अपने पीठ दिखाते, पैर, रखते लोग होशियारी में||
दर्द, अपने ही ज्यादा देते, उपकार, भूलते मक्कारी में
बात-बात आँख दिखाते, बड़े जो पद, धनराशि में||
समाचारों में रोज पढ़ते, रोज देखते चलचित्रों में
कटु अनुभव रोज है मिलता, फस जाओगे ज्यादा तरफदारी में||