आइने की वफ़ा
आइने की वफ़ा
बाजार,
दवाओं का होता हैं बड़ा बेशक,
पर असर दुआओं का भी कम नहीं होता है ।
कद,
भले ही औलाद का हो जाये, माँ-बाप से बड़ा,
पर आशीष तो माँ-बाप का ही बड़ा होता हैं।
चाँद,
की चाह में उड़ चला है तू आसमां में,
याद रख मगर,
कि मंज़र वहाँ से, ज़मीं का ही हसीन होता है।
दीवारों,
को सजा लो कितना भी, शीशों, आइनों, तस्वीरों से,
पर शिंगार तो असल उनका,
खिड़की, झरोखों से ही होता है।
मोती,
ढूँढ सकता है तू, उतर अथाह समंदर में, बेशक,
पर जो पाना है मुझे, बनना है मेरा दिलबर,
तो थाह मेरे मन की, पाना तुझे होगा।
आइने,
चटक जाते हैं बेपरवाही से अक्सर,
पर उसकी वफ़ा पे शक ना करना ए दोस्त,
तेरे ही हाथों टूट कर, टुकड़े-टुकड़े में,
अक्स तेरा तुझे, फिर भी दिखा देगा वो।
वतन परस्ती,
की बातें करता है हर शक़्स यहाँ,
पर जिगर होता है जिसका बड़ा,
छोड़ कर घर पर, जिगर के टुकड़े,
जाबाँज सिपाही जो, होता है सीमा पर, सीना ताने खड़ा,
उसी की वतन परस्ती की क़समें, खाता है ये वतन मेरा।