आईना
आईना
आईना मेरे लिए उस दोस्त की तरह है,
जिसके सामने मैं अपना दर्द , खुशी, गुस्सा,
गलती सब दिखा सकती हूं,
पर वो कभी मुझे जज नहीं करता।
इस सोशल मीडिया के जमाने में,
जहां मैं खुद को मेकअप के पीछे छुपाती हूं,
वहां जब आईने के सामने खड़ी होती हूं,
तो खुद से मिल पाती हूं।
जब कुछ करने से डर लगता है,
तो आईने के सामने जाकर खड़ी हो जाती हूं,
"खुद में आत्मविश्वास रखो,
डरो मत तुम कुछ भी कर सकती हो।"
खुद को ही समझाती हूं।
जब रोना आता है, तो इस आईने के सामने बैठ जाती हूं
और अंदर छुपा दर्द अपने आप बाहर आ जाता है।
जब गुस्से में होती हूं,
तो इसी के सामने सारा गुस्सा निकालती हूं,
जो भी दिल में होता है बिना किसी डर के बस कह डालती हूं।
जब इसमें खुद को देकर खुद से नज़र नहीं मिला पाती
तो एहसास होता है अपनी की गई गलती का।
इसके सामने मैं अपनी भावना व्यक्त करती हूं,
पर ये कभी मेरा मजाक नहीं उड़ाता।
