आगे को बढ़ चले
आगे को बढ़ चले
रात की सियाही को सूरज ने समेट लिया
ओस सिक्त धरा ने लालिमा सजा लिया।
हवाओं ने झुरमुट में सरसर की तान ली
पंछियों ने मद्धम में सरगम सुर छेड़ दिया।
लो अब बीती रात कमल दल फूले
कमसिन कलियों पर भँवरे लेते झूले।
प्रकृति प्रातः सजीव जैसे होती है
क्यों न बीते को भूल आगे को बढ़ चले।
सुहानी सुबह यह संदेश हमें मिलता है
स्वतःस्फूर्त हो के हम नवजीवन जी ले
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