आदर्शों की जादूगरी
आदर्शों की जादूगरी
ये सामाजिक बुद्धिजीवी
तमाम शैक्षिक प्रबुद्ध,
शैक्षिक उन्नयन की कार्यशाला में
थोड़ी गपशप
थोड़ी बनावटी गतिविधियों के साथ
चाय की चुस्कियों में
सामाजिक प्रगति का ताना बाना बुनते हैं,
समाज को नई दिशा
दशा देने का प्रपंच करते हैं,
वास्तविकता से कोसों दूर
सिर्फ और सिर्फ
बनावटी भाव
कृत्रिम एहसास का
वातावरण बनाते हुए
बड़ी बड़ी बातें
उच्च सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं,
पर इन उच्च आदर्शों की
जादूगरी में
कहीं वो भूल जाते हैं
जमीनी हकीकत,
संसाधनों का
बंदर बांट,
और शिक्षा के निहित उद्देश्य
जिनके लिए
वो स्वयं इन जैसी तमाम संगोष्ठियों
के अभिन्न अंग बनते हैं।
ये ढकोसला,
ये प्रपंच,
दिखावटी जीवन के आदर्श
उच्च विचार,
सिर्फ और सिर्फ
इन संगोष्ठियों में ही नजर आते हैं।
पर वास्तव में
बेहद अतार्किक
और खोखले होते हैं
जिनकी बुनियाद
दीमक बनकर
इन्हीं जैसे
प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों ने
मिलकर चाट खाई होती है।
इन आदर्शों
के महिमा मंडन का
जिन पर सिर्फ
झूठ की बुनियाद रखी होती है
सच से तो
इनका दूर तक
कोई वास्ता भी नहीं होता
ये महज
आदर्शों की जादूगरी
का सामूहिक स्खलन है......!!