आदमी
आदमी
पेट के खातिर आदमी घर से निकलता है,
कड़ी मेहनत और मीलों पैदल चलता है।
कई मोड़ मुड़ता, दरवाजे खटखटाता है,
कभी सही तो कभी गलत राह पर जाता है।।
लक्ष्य उसका केवल रोटी के लिए कमाना है,
पेट में जल रही आग को खाकर बुझाना है।
महामारी कोरोना से समय खराब चल रहा है,
रोजगार खत्म आदमी रोटी हेतु टहल रहा है।
कभी लंगर तो कभी सरकार के द्वार जा रहा है,
कभी लोगों के फोटो का शिकार हो जा रहा है।।
समय का मारा आदमी दर-बदर भटक रहा है,
पेट में उठी आग बुझाने को तड़प रहा है।।
सोचता है, पेट की आग बुझाने गाँव ही जाना है,
वहीं रोजगार, नौकरी या व्यापार अपनाना है।
दुःख के निदान के लिए घर से निकलता है,
गाॅंव में जाने को फिर मीलों पैदल चलता है।।