कैसे निखरें..!
कैसे निखरें..!
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सरल नहीं है जीवन अपना,
पग-पग पर हैं काँटे बिखरे।
खींच रहे हैं लगा युक्तियॉं,
बोलो अब हम कैसे निखरे?
जिसको मन ने अपना माना,
मुझको उससे घात मिला है।
कृत्य किया है उसने ऐसा-
मन का दृढ़ विश्वास हिला है।।
अंतर्मन को ठेस लगी है,
उन पर आखिर न क्यों बिफरे।
खींच रहे हैं लगा युक्तियॉं,
बोलो अब हम कैसे निखरे?
मैंने त्याग किया है इतना,
जिसका कोई मोल नहीं है।
दुष्चक्रों का ताना-बाना,
उनका केवल काम यही है।।
अट्टहास से उनके डरता,
रोष से हम सब आज हैं सिहरे।
खींच रहे हैं लगा युक्तियॉं,
बोलो अब हम कैसे निखरे?