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प्रैक्टिस बहुत ज़रूरी है

प्रैक्टिस बहुत ज़रूरी है

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हमारे स्कूल में बॉक्सिंग-सेक्शन शुरू हुआ। उसमें सबसे बहादुर बच्चों ने नाम लिखवाए। वो, जिनसे कुछ उम्मीद थी। मैं फ़ौरन अपना नाम लिखवाने पहुँचा, क्योंकि काफ़ी पहले से अपना हुनर दिखा रहा था। सारे लड़के ऐसा सोचते थे। तबसे, जब मैंने मीश्का को घूँसा मारना चाहा था और मैं चूक गया था। मेरा मुक्का सीधे दीवार से टकराया। प्लास्टर का एक टुकड़ा उखड़ गया था। उस समय सभी को आश्चर्य हुआ था, “क्या मारा है !” सब कहने लगे। “ये होती है मुक्के की मार !” मैं अपना सूजा हुआ हाथ लिए घूमता रहा और सब को दिखाता रहा: “देख रहा है ? कैसी ज़बर्दस्त है मेरे मुक्के की मार ! अगर हाथ रोक नहीं लेता तो मैं दीवार में ही घुस जाता !”

“आरपार ?” लड़के विस्मित रह गए।  

तबसे मैं ‘सबसे ज़्यादा ताक़तवर’ कहलाने लगा - हाथ ठीक हो जाने के बाद भी, जब दिखाने के लिए कुछ बचा ही नहीं।

बॉक्सिंग-सेक्शन में मैं सबसे पहले पहुँचा। अपना नाम लिखवाया। और भी लड़के आए। मीश्का ने भी नाम लिखवाया।

ट्रेनिंग शुरू हुई।

मैंने सोचा कि हमें फ़ौरन दस्ताने दिए जाएँगे और हम एक दूसरे से लड़ने लगेंगे। मैं सबको पछाड दूँगा। सब कहेंगे: “ये है बॉक्सर !” और ट्रेनर कहेगा: “ओहो, तू तो चैम्पियन बनेगा ! तुझे ख़ूब चॉकलेट खाना चाहिए। हम सरकार से निवेदन करेंगे कि तुझे चॉकलेट मुफ़्त में खिलाई जाए। चॉकलेट और दूसरी कई मिठाईयाँ। ऐसी बिरली योग्यता जो प्रकट हुई है !”

मगर ट्रेनर ने दस्ताने नहीं दिए। उसने हमें ऊँचाई के अनुसार खड़ा कर दिया। फिर कहा: “बॉक्सिंग – काफ़ी सीरियस चीज़ है। सब लोग इस बारे में अच्छी तरह सोच लें। और अगर तुममें से किसी की कुछ और राय है, याने, ये कि बॉक्सिंग ज़रा भी सीरियस चीज़ नहीं है, तो वो चुपचाप हॉल छोड़कर जा सकता है।”

कोई भी हॉल छोड़कर नहीं गया। हमारी जोड़ियाँ बनाईं गईं। जैसे, हम बॉक्सिंग की नहीं बल्कि फिज़िकल-एक्सरसाईज़ की क्लास में आए हैं। फिर हमें दो तरह के मुक्के मारना सिखाया गया। हम हवा में हाथ चलाते रहे। कभी-कभी ट्रेनर हमें रोक देता। कहता, हम गलत कर रहे हैं। वही सब फिर से शुरू हो जाता। एक बार ट्रेनर ने किसी से कहा:

 “उधर, चौड़ी पतलून वाला, तू क्या कर रहा है ?”

मैंने सोचा ही नहीं कि ये मुझसे कहा जा रहा है, मगर ट्रेनर मेरे पास आया और बोला कि मैं दाहिने हाथ के बदले बाएँ हाथ से मार रहा हूँ, जबकि सारे लड़के सिर्फ दाहिने हाथ से मार रहे हैं, क्या मैं ध्यान से नहीं देख सकता।

मैं बुरा मान गया और दुबारा क्लास में नहीं गया। मैंने सोचा कि मुझे ऐसी बेवकूफ़ी सीखने की कोई ज़रूरत नहीं है। वो भी मेरे जैसे मुक्के वाले को ! जब मैं दीवार में छेद कर सकता हूँ। इस सबकी मुझे ज़रूरत ही क्या है ! मीश्का को ही ट्रेनिंग कर लेने दो। औरों को भी कर लेने दो। मैं तो तभी जाऊँगा जब लड़ने की बारी आएगी। जब दस्ताने पहनेंगे। तब देखेंगे। सिर्फ हवा में हाथ चलाने का मुझे कोई शौक नहीं है ! ये सरासर बेवकूफ़ी है।

मैंने बॉक्सिंग सेक्शन में जाना बन्द कर दिया।

बस, मैं मीश्का से पूछता रहता:

“क्या हाल है ? अभी भी हाथ ही चला रहे हो ?”

मैं मीश्का का ख़ूब मज़ाक उड़ाया करता। उसे चिढ़ाता। और पूछता रहता:

“क्या हाल है ?”

मीश्का चुप रहता। कभी कहता:

“ कोई ख़ास बात नहीं है।”

एक दिन उसने मुझसे कहा:

“कल ‘पेयरिंग’ है।”

“क्या ?” मैंने पूछा।

“आ जा,” उसने कहा, “ख़ुद ही देख लेना। ‘पेयरिंग’ – मतलब शैक्षणिक - युद्ध। याने कि हम मुक्केबाज़ी करेंगे। मतलब – प्रैक्टिस। हमारे बॉक्सिंग में उसे ऐसा ही कहते हैं।”

“कर ले, कर ले प्रैक्टिस,” मैंने कहा। “कल आ रहा हूँ, थोड़ी प्रैक्टिस हो जाएगी।”

दूसरे दिन बॉक्सिंग-सेक्शन पहुँचा।

ट्रेनर ने पूछा:

“तू कहाँ से आया है ?”

“मेरा,” मैंने कहा, “यहाँ नाम लिखा है।”

”आह, ऐसी बात है !”

“मैं ‘पेयरिंग’ करना चाहता हूँ।”

“अच्छा !”

“हाँ !” मैंने कहा।

“समझ गया,” ट्रेनर ने कहा।

उसने मुझे दस्ताने पहनाए। मीश्का को भी दस्ताने पहनाए।

”तू बहुत उतावला है,” उसने कहा।

मैंने कहा:

“क्या ये बुरी बात है ?”

“अच्छी बात है,” उसने कहा। “बहुत ही अच्छी बात है।”

मैं और मीश्का बॉक्सिंग रिंग में आए।

मैंने हाथ घुमाया और वो मुक्का लगाया ! मगर बगल से गुज़र गया। मैंने दुबारा हाथ घुमाया – और ख़ुद ही गिर पड़ा। मतलब बहुत ज़्यादा चूक गया।

मैंने ट्रेनर की ओर देखा। मगर ट्रेनर बोला:

“प्रैक्टिस कर ! प्रैक्टिस कर !”

मैं उठा और हाथ हिलाने लगा, इतने में मीश्का ने मुझे वो घूँसा मारा ! मैं भी उसे जड़ना चाहता था, मगर उसने मेरी नाक पर मुक्का जड़ दिया !

मैंने हाथ भी छोड़ दिए। समझ में नहीं आ रहा था कि बात क्या है।

मगर ट्रेनर कहे जा रहा था:

“प्रैक्टिस कर ! प्रैक्टिस कर !”

मीश्का ने ट्रेनर से कहा:

“मुझे इसके साथ प्रैक्टिस करने में मज़ा नहीं आ रहा।”

मुझे मीश्का पर गुस्सा आ गया, तैश में आकर उस पे झपटा, मगर फिर से गिर गया। या तो ठोकर खा गया या फिर मार की वजह से गिर पड़ा।

“नहीं,” मीश्का ने कहा। “मैं इसके साथ प्रैक्टिस नहीं करूँग़ा। ये बार-बार गिर जाता है।”

मैंने कहा:

“मैं कोई बार-बार नहीं गिर रहा। अभी देता हूँ एक इसे !”

मगर उसने फिर से मेरी नाक पर मुक्का जड़ दिया !

और मैं फिर से फर्श पर बैठा नज़र आया।

अब मीश्का ने दस्ताने भी उतार दिए। उसने कहा:

“छिः ! इसके साथ प्रैक्टिस करना बेवकूफ़ी है। इसे प्रैक्टिस करना आता ही नहीं है।”

मैंने कहा:

“कोई बेवकूफ़ी-वेवकूफ़ी नहीं है, मैं अभी उठता हूँ।”

 “तेरी मर्ज़ी,” मीश्का ने कहा, “उठा या न उठा, ये ज़रा भी ‘इम्पॉर्टेंट’ नहीं है।”


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