सहीराम
सहीराम
आँफिस में सहीराम अपने साथ काम करने वाले कर्मचारियों की मीटिंग ले रहे थे।
'देखो हमे ईमानदारी और सच्चाई से अपनी ड्यूटी निभानी है और किसी भी तरह के लालच व रिश्वत के पैसों से दूर रहना है। हमे समाज और अपने परिवार वालों को एक आदर्श व्यक्ति बनके दिखाना है ताकि हम उनके लिए एक मिसाल कायम कर सकें।' उन्होंने कहा।
सब साथी सहीराम की आदर्शवादी बातों से प्रभावित थे। सही राम ने बॉस होने के नाते ये रूल बनाया था की जो कोई भी रिश्वत देने की कोशिश करता है तो उसे मेरे पास भेजो में उसे समझाऊंगा। आँफिस के कर्मचारी वैसा ही करते, सहीराम उन्हें शाबाशी देते और कर्मचारी अपनी तारीफ़ पाकर कुप्पा होते की साहब ने उनकी पीठ थपथपाई और सोचते कि साहब के सामने उनके पूरे नंबर है।
अगले दिन खबर फैल गई थी कि सहीराम को पुलिस ने आय से ज्यादा संपत्ति रखने के कारण गिरफ़्तार कर लिया था।
उनके सारे आँफिस के कर्मचारियों को विश्वास नही हो रहा था।
जांच आगे बढ़ी तो पता चला था कि वह उन सब व्यक्तियों से डरा कर रिश्वत मांगता था जिनको की कर्मचारी उसके पास भेजते थे।
करीब तीन सौ करोड़ की संपत्ति बरामद हुई थी।
सभी कर्मचारी सोच रहे थे हम तो उनको सच मे सही समझते थे वो तो गलत निकले।
सब ने सोचा किस पर विश्वास करें समझ नही आता।
तभी एक बुजुर्ग कर्मचारी बोला कि अपने आप पर विश्वास करो।
सब एक साथ हंसे और बोले कि अब हम किसी को भी आने वाले नए बॉस के पास नही भेजेंगे खुद ही निपटारा कर लेंगे।
फिर ज़ोर से आँफिस में ठहाका गूँजा।
ये ठहाका रिश्वत लेने का नही बल्कि उसे अपने तक ही रोकने का था, अंजाम जो घूम रहा था सहीराम का उनकी आंखों के सामने।