हसीन बला
हसीन बला
“ यह रेशमी जुल्फे यह शरबती आँखे इन्हे देखकर जी रहे है सभी.." जोर से बारिश हो रही थी एफ. एम पर यह पुराना गीत बज रहा था।
गरम चाय की चुस्कियां लेता हुआ मैं रेस्टोरंट की कोने की मेज़ पर बैठा ..अपने सामने बैठी लड़की को देख रहा था …
उम्र होगी बाइस तेईस साल, बेन्तहां खुबसुरत, वहाँ बहुत से युवा उसे चुपके चुपके देख रहे थे। कुछ मौसम था तो कुछ संगीत ही ऐसा बज रहा था।
वो लड़की इन सभी बातों से अनजान अपने में ही खोई हुई थी।
मेरी चाय लगभग खत्म होने को थी पर बारिश बदस्तुर जारी थी बैठे बैठे कुछ बोरियत सी हो रही थी सोचा अब घर के लिए निकलना ही होगा वरना रीमा के ताने शुरू हो जायेंगे,’ इतनी देर कहाँ लगा दी, अॉफिस से तो कब के निकल चुके।’
बिल पे कर मैं निकल ही रह था कि पीछे से आवाज़ आयी, "हैेलो..”मैंने पीछे घूम कर देखा तो वही मोहतरमा थी ..एक अजीब सी कशिश थी उसकी आवाज़ में ,”जी कहिए “ ,मैंने जवाब दिया
“ क्या आप मुझे छोड़ देंगे यह बारिश तो अभी नहीं रूकने वाली।
“ ठीक है ...." मेरा लहजा सापाट था, आइये मैने गाड़ी निकाली...और वो हवा बातें कर रही थी मैं अपनी खुशी को दबा रहा था मन में सोच रहा था लगता है ऊपर वाला बड़ा मेहरबान है मुझ पर ..“आपको कहाँ जाना है ?
“कर्जिन रोड तक छोड़ दीजिए बस, आगे मैं खुद चली जाऊंगी आपको थोड़ी तकलीफ़ होगी “ ,
“ अरे नहीं ऐसी कोई बात नही”।
...उसके चेहरे पर उलझन सी थी..।
“ लीजिये मैम आ गयी आपकी सड़क” .. वह मानो नींद से जागी हो
“ ओह ! शुक्रिया” ...
कहते हुए झटपट उतर चल पड़ी पीछे मुड़ कर भी न देखा बारिश लगभग रूक सी गयी, कौन थी वो हसीन बला !!
मैं सिर्फ सोचता ही रहा उसके ख्यालों में डूबा कब घर के कारिडोर तक जा पहुँचा पता ही न चला..
घर नें घुसते ही रीमा शुरू हो गयी," कहाँ लगा दी इतनी देर ...बच्चे भी सो गये बारिश का बहाना मत बनाना तुम कोई स्कूटर से तो नहीं आते जाते ...गाड़ी है न ”।
"ओफ हो .!! रीमा, तुम तो नाहक ही शुरू हो जाती हो..एक जगह रूक गया था भूख लगी थी..चा़य पीने के लिए रूका था !
" ठीक है...
“ मैं खाना लगा देती हूँ ”।
“ नहीं मुझे भूख नहीं ! ”
पेट तो इसके तानों से ही भर गया मैं मन ही मन बोला, अगर सुन लेती तो फिर शुरू हो जाती।
अगले दिन जैसे ही मैं तैयार हो आँफिस के लिए घर से निकल रहा था कि रीमा घबराई हुई कमरे में आयी और बोली बाहर पुलिस आई है।
“पुलिस पर क्यों ??
“मुझे क्या पता ..?”
क्या बात है सर आज हमारे घर कैसे आना हुआ
“मि. कबीर
हमें आपके घर की तलाशी लेनी है | हमें जानकारी मिली है "आप ड्ग्स सप्लाई करते हैं "
यह आप क्या कर रहे हैं ..मैं एक कम्पनी में काम करता हूँ आप चाहे तो मेरे आँफिस बात कर सकते है |”
“हमारी जानकारी पक्की है”
…“तलाशी लो घर की …”
उन्होने पूरा घर छान मारा कहीं कुछ न था… “ मैने कहा था न सर आपको ग़लतफहमी हुई है ,
“ तुम चुप करो,”
“मि. सावलकर बाहर चैक करो..”
ओके सर
बाहर तो बस गाड़ी है सर ’
गाड़ी में देखो !
“ यह लो चाबी आप अपनी तसल्ली करे .”
“सर मिल गये देखो, “। कांस्टेबल के हाथ में छोटे छोटे पाँच छ: पैकेट थे उनमें सफेद पदार्थ था |
मैं लगभग बेहोश होने को था .. “ मुझे नहीं पता सर यह कहाँ से आया ”
मुझे सारा माजरा समझ आ गया..उस लड़की ने ही यह गाड़ी में रखा होगा जिसने कल लिफ्ट मांगी थी मैं पूरी तरह फँस चुका था रीमा मुझे खा जाने वाली नज़रों से देख रही थी....!!!!