पूर्णा
पूर्णा
पूर्णा के जन्म के साथ ही उसके माँ पिता का संतान के आने का इंतजार समाप्त हुआ, वो पूर्णिमा के चाँद की भाँति सुंदर और आकर्षक थी। उसकी एक झलक पाने को आस पड़ोसी आते जाते रहते थे, घर में मानोंं पूर्णा के जन्म से उत्सव जैसा माहौल था, दादी तो हर दम हाथ में लाल मिर्च ले उसकी नज़र ही उतारती रहती थी। पूर्णा भी बड़ी चंचला थी, सबको अपनी मनमोहक मुस्कान से ऐसा मोहती थी कि उसे गोद में लिए बिना किसी को चैन न आता था।
" अरे कुसुम, जा पूर्णा को अंदर वाले कमरे में ले जा, नहीं तो ये कामचोर औरतें अपने घर ही न जाएंगी। मैं उन्हें देखती हूँ, एक तो इतनी मिन्नतों से घर में बिटिया का जन्म हुआ है उसपर ये लोग कोई कसर न छोड़ते उसको नज़र लगाने की। अरी तू जा ना...", दादी ने पूर्णा की माँ से कहा।
कुसुम जी और विनोद की शादी को 12 वर्ष का लंबा वक्त हो गया था पर वो नि: संतान थे। दादी की तीर्थ यात्राओं, कुसुम जी के ढेरों वर्तोंं और विनोद जी के दान का दिया फल थी पूर्णा। कहते हैं औरत जब तक माँ नहीं बनती तब तक वो पूर्ण नहीं होती हालांकि इसमें लोगों की राय में भेद हो सकता है पर अधिकांश लोग यही मानते हैं। इसी वजह से जब घर में लक्ष्मी पधारीं, उसके जन्म से कुसुम जी ने पूर्णता का अनुभव किया और उस चाँद के टुकड़े का नाम पूर्णा रखा गया।
घर में जब एक ही बच्चा हो और वो भी इतनी मिन्नतों के बाद जन्मा हो तो उसका ख्याल घर वाले एक नन्हें और कोमल फूल की तरह करते हैं, उसके सब नखरे देखे जाते हैं और हर ख्वाहिश भी पूरी करी जाती है। यही सब था पूर्णा के साथ, वो अपने घर की ही नहीं अपितु पूरी कॉलोनी की लाडली थी, हर कोई उसे प्यार करता था। अकेला बच्चा होने के कारण पूर्णा का स्वभाव थोड़ा घमंडी सा था, पर विनोद जी कहते थे बड़ी होगी मेरी लाडो तो सही हो जाएगी, अब इतनी सुंदरता पर थोड़ा घमंड तो होना ही अच्छा है, लेकिन मैं उसे संस्कारों का धनी बनाऊंगा।
धीरे धीरे पूर्णा बड़ी होने लगी, कुसुम जी और दादी के घरेलू नुस्खे जो वो उसे चाँद सा बनाये रखने के लिए किया करती थीं, उनमें भी वृद्धि हो गयी थी। उधर विनोद जी पूर्णा का संस्कारों से मन सुंदर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। वो पूर्णा को अनाथ लय, वृद्ध आश्रम और गरीबों की बस्ती में ले जाकर दान कराया करते थे, जिससे उसे जीवन की सत्यता को समझने में कठिनाई नहीं हुई।
कॉलेज परिसर में पूर्णा के कदम रखते ही कितने लड़कों की सांसें थम जाती थीं। एक बार किसी लड़के ने हिम्मत करके उसे अपने प्रेम का इज़हार किया तो पूर्णा ने उसे ये कह कर मना कर दिया कि उसके पास इन सब के लिए वक़्त नहीं है और उसकी मंज़िल कहीं और है।
ईश्वर के आशीर्वाद से उसका भारतीय वायुसेना में सिलेक्शन हो गया। घर में किसी को भी पूर्णा ने ये बात नहीं बताई थी कि वो डिफेंस सर्विसेज़ में जाना चाहती है, जो भेद खोल देती तो कोई उसे ये कदम नहीं उठाने देता। पर जब उसका सेल्वेक्शन हो गया तो उसने ये खुशी सबसे पहले विनोद जी को दी|
" क्या! पूर्णा बेटा तूने ये एग्जाम कब दिया। मैं बहुत खुश हूं बेटा, लेकिन क्या तू सच में ये करेगी, क्या हमारे बारे में कुछ नहीं सोचा तूने, कैसे रहेंगे हम यहाँ अकेले। और तू कैसे इतनी जटिल ट्रेनिंग करेगी बेटा, मेरी मान तो तू CA की तैयारी कर।" विनोद जी ने पूर्णा का हाथ थाम कर कहा।
" पापा मैंने बचपन से एक एयरफोर्स पायलट बनने का सपना देखा है, अपने देश के दुश्मनों को धूल चटाने के वादे मन ही मन न जाने कितनी बार खुद से कर चुकी हूँ। आपको याद है एक बार जब हम वृद्ध आश्रम गए थे, वहाँ एक बूढ़े दादा ने मुझे उनके बेटे की कहानी सुनाई थी जिसने कैसे दुश्मनों के ठिकानों पर अपने हवाईजहाज से बम गिरा कर अपने देश का मान बचाते हुए जान दे दी थी। मैं तभी से ये बनना चाहती थी, और कुछ नहीं। जानती हूं कि आप सब अकेले रह जाओगे, लेकिन पापा मेरे लिए CA बनकर पैसे कमाना आसन है लेकिन मुझे पैसे की नहीं अपने देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने की ललक है। मुझे माफ़ करियेगा जो मैं आपकी यह बात नहीं मान पाउंगी। पापा आपको मेरा साथ देना होगा माँ और दादी को मनाने में, देंगें न पापा... प्लीज़ पापा।"
विनोद जी ने कुछ देर शून्य में पूर्णा को निहारा और हांमी में अपना सर हिला दिया। सोच रहे थे, कि क्या हुआ जो पूर्णा अपना भविष्य देश की रक्षा करके बिताना चाहती है, अरे बेटों से भी अधिक साहसी निकली उनकी पूर्णा, जो अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकल कर कुछ अलग करने का माद्दा रखती है। मैं अपनी बेटी के फैसले में उसके साथ हूँ।
जब ये बात माँ और दादी को बताई गई तो जैसे शांत घर में बवंडर मच गया।
" अरी पूर्णा...इससे तो तू अपनी पसंद का लड़का ढूंढी होती तो मैं बिना देखे हाँ बोल देती बेटा, लेकिन ये क्या पागलपन है, अरे ऐसे कोई मरने जाता है क्या। नहीं भाई नहीं हमारे खानदान में कोई सेना में नहीं गया तो हम क्यों भेझें अपनी ईकलौती गुड़िया को वहाँ। बेटा ये काम लड़कों को शोभा देते हैं, बेटियों को नहीं रे। कुसुम तूने इसको नज़र का टीका लगाना बंद कर दिया था न ये बोल कर कि अब बड़ी हो गयी है,ले देख ले न जाने किस मुए की नज़र लग गई है छोरी को। ला सरसों की बाती दे अभी इसकी नज़र उतारती हूँ।" दादी ने अपनी आंगन में पड़ी चारपाई से उठते हुए कहा।
कुसुम जी को तो जैसे सांप सूंघ गया था, वो बस खड़ी रहकर पूर्णा को देख रही थीं। " कह दे पूर्णा कि तू मज़ाक कर रही है, कह दे बेटा कि ये सच नहीं है।"
" माँ... ये सच है कि मैं एयरफोर्स पायलट की परीक्षा में पास हो गयी हूँ। पर मुझे ये समझ नहीं आता कि आप लोग खुश क्यों नहीं है, पता है कितनी मुश्किल परीक्षा होती है, और मैंने पास करली तो कोई खुश ही नहीं है बस सब मुझे मेरे फैसले को बदलने के पीछे पड़ गए हैं। माँ, दादी मैं CA बनकर शादी करके सेटल हो सकती हूँ, वो आसान है, लेकिन मुझे ये नहीं करना, कुछ अलग हटकर करना है। क्या मेरा साथ नहीं दोगे, क्या आपको खुशी नहीं होगी जब मुझे मैडल मिलेगा और आप सबका नाम रौशन करूँगी। और दादी बचपन से आपने मुझे बेटा बेटी के भेद से दूर रखा तो आज ये भेद क्यों। ये देश उतना ही मेरा है जितना किसी लड़के का। मैं आप सबको मानना चाहतीं हूँ, प्लीज़ मान जाइये ना, मेरी ख़ुशी के लिए ही सही।" पूर्णा ने हाथ जोड़ कर कहा।
" कुसुम... माँ मैं तुम दोनों की बेचैनी समझता हूं, लेकिन हमें पूर्णा के फैसले पर भरोसा रखना होगा और खुद को मजबूत बनाना होगा। मैं उसके साथ हूँ, मेरी बेटी ने कुछ नया सोच कर खानदान की सोच को नया आयाम दिया है, मैं बहुत खुश हूं", वुनोद जी ने कुसुम जी और दादी को समझाते हुए कहा।
" कब जाना है ट्रेनिंग पर पूर्णा, बात दे तेरी पसंद की सब चीजें बना कर रख दूंगी।" कुसुम जी ने कहा
" ठीक है छोरी... करले अपनी मन मानी पर जो वहाँ मन न लगे तो लौट आना", दादी ने उसकी नज़र उतारते हुए कहा।
" थैंक यू...अब मैं हल्के मन से और पूरे दिल से जा पाउंगी। अब आप सब मुझसे सहमत हैं तो कितना अच्छा लग रहा है।"पूर्णा ने खुशी के आंसू पोछते हुए कहा।
2 हफ्ते में पूर्णा को Air Force Academy Dundigal, Telangana में रिपोर्टिंग देनी थी, और वो दिन भी आ गया। कुसुम जी और विनिद जी अपनी पूर्णा के सपने को साकार करने उसकी उड़ान में साथ थे। अकादमी में बहुत सी लड़कियां थीं , उनके माता पिता से बात चीत करके कुसुम और विनोद को थोड़ी तसल्ली मिली। कई तो ऐसे लोग थे जिनके दिनों बच्चे देश की सेवा में समर्पित थे, कितना गर्व छलक रहा था उनकी आंखों से। पूर्णा को छोड़ कुसुम जी और विनोद जी घर वापस लौट आये। 3 साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद पूर्णा ऑफिसर बन जाएगी।
घर तो सूना हो गया है पूर्णा के जाने के बाद, अब न नज़र का टीका लगाने के लिए दादी भागी भागी फिरती हैं, न कुसुम जी उसके लिए उभटन बनाती दिखती हैं और न विनोद जी उसका हाथ थामे घूमते ही नज़र आते हैं। जब पूर्णा छुट्टियों में घर आती है तभी जैसे सबके प्राण लौट आते हैं और उसके जाते ही जैसे अमावस हो जाती है। जो एक बार देश प्रेम की लौ मन में जग जाए तो बुझाय नहीं बुझती, और ये पूर्णा ने कर दिखाया था।
देखते ही देखते 3 साल भी निकल गए, पूर्णा ऑफीसर बन गयी और अपने सपनों की उड़ान उसने सच कर दिखाई। घर आई तो पूरी कॉलोनी उसके स्वागत में तत्पर थी, सब उसे आशीष और बधाईयां दे रहे थे। पूर्णा को 7 दिनों में नागपुर एयर बेस में जॉइन करना था। दादी ने उसके जाने से पहले एक बार फिर उसकी नज़र उतारी और कहा " जा बेटी,मेरी उम्र जितनी भी शेष है, तुझे लग जाये और नाम ऊंचा कर खानदान का"। कुसुमजी ने उनके बैग में उसकी पसंद का हर समान रखते हुए भीगी पलकों से आँसुओंं को पोछते हुए कहा " बेटा आज मुझे एहसास हुआ कि अपनी संतान को देश सेवा पर भेजने से कितना गर्व महसूस होता है, मुझे ये एहसास देने के लिए तेरा धन्यवाद, सम्भाल कर रहना पूर्णा"।
विनोद जी पूर्णा को गले लगा कर एक ही बात बोले " चाहें कुछ भी हो जाये पूर्णा मत भूलना कि पापा हमेशा तेरे साथ हैं और हम सब तेरे लौटने की राह देख रहे हैं। जा बेटा देश की रक्षा में परमात्मा तेरी भी रक्षा करें," और उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। पूर्णा ने उन्हें संभालते हुए कहा " पापा, पहुंच कर कॉल करूँगी, सबका ध्यान रखना। जब भी होगा घर आने की कोशिश करूँगी।"
जल्द ही पूर्णा ने अपनी कमान संभाल ली, अभी ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ था कि अचानक कश्मीर में आतंकी हमलों की खबर आई और सरकार के आर्डर के तहत एयर फोर्स को आतंकियों के कैम्प को नेस्त नाबूद करना था। पूर्णा को ये अवसर प्राप्त हुआ और उसने बखूबी अपना कर्तव्य निभाया भी। ऐसी ही कई मुठभेड़ों में पूर्णा ने तिरंगे की रक्षा की और कई मैडल अब उसके सीने पर शोभायमान हो गए थे।
आज पूर्णा 2 साल बाद घर आ रही थी, आज फिर पूरी कॉलोनी उसके स्वागत में नज़रें बिछाये खड़ी थी। उसका स्वागत बड़ी धूम धाम से हुआ, सब उसकी वर्दी देख आंखे फाड़े हैरान थे कि इतनी कम उम्र में इतने सारे मेडल्स। कुछ लोग विनोद जी को बधाई दे रहे थे तो कुछ कुसुम जी से पूर्णा के भविष्य के बारे में पूछ रहे थे। पूर्णा ने आते ही अपने माँ पापा को गले से लगाया और दादी जो अब चल फिर न पाती थीं, के पास जाकर आशीर्वाद लिया और हमेशा की तरह नज़र उतरवाई।
" इस बार तो ज़्यादा दिन के लिए आया है ना मेरा बच्चा??", विनोद जी ने पूर्णा से पूछा। " हाँ जी पापा कह कर तो 20 दिनों का आयी हूँ, बाकी कोई एमरजेंसी आ गयी तो पता नहीं।"
" अरे कोई एममरजेंसी नहीं आएगी, और आयी भी तो दूसरे अफसर हैं न, वो देख लेंगें... हैना पूर्णा", कुसुम जी ने कहा। उसने भी मुस्कुराते हुए हाँ बोल दिया।
जून की गर्मी चरम पर थी, समाचारों के मुताबिक मानसून के आने में विलंभ हो रहा था, पर कई ऐसे इलाके भी थे जहाँ वर्षा ने तबाही का तांडव खेलना प्रारम्भ कर दिया था। पूर्णा आंगन में बैठी दादी और विनोद जी के साथ आम खाने का कम्पटीशन कर रही थी कि तभी फ़ोन की रिंग हुई, कुसुम जी ने फ़ोन ऑन करके पूर्णा के कान पर लगा दिया उसके हाथ जो सने थे आम के रस में। पूर्णा ने "जी सर मैं पहुँच जाउंगी" कह कर फ़ोन कट करने का इशारा किया।
" क्या हुआ पूर्णा...अब कहाँ जाना है तुझे बेटा, अभी तो 6 दिन भी नहीं हुए तुझे आये हुए?", विनोद जी ने पूछा
" पापा, उत्तराखंड में बादल फटने से बहुत तबाही हुई है, कई श्रद्धालू फसे हुए हैं, और सरकार ने मिलिट्री की सहायता के आदेश दे दिए हैं। मुझे भी जाना होगा पापा, उसी के लिए हमारे कमांडर का कॉल था। मैं अभी निकलूंगी।"
"हे प्रभु भोले नाथ आपके होते हुए ये क्या कहर बरस रहा है। बेटा मैं तुझे रोकूँगी नहीं, पर आज न जा कर कल सुबह चली जाना...हैं ठीक है ना?" दादी ने उसका मुंह अपने आँचल से पोछते हुए कहा।
" नहीं दादी अभी ही जाना होगा, मैं अपने आराम के लिये उन लोगों को बेसहारा नहीं छोड़ सकती जिनकी हिफाज़त की कसम खायी है। सरहद पर दुश्मन हो या कुदरत हमें हर परिस्थिति में उनकी रक्षा करनी ही है, ये मेरा कर्त्तव्य है। मेरी चिंता न करना, भोले हैं मेरे साथ।" पूर्णा ने दादी को गले लगाते हुए कहा।
कुसुम जी और विनोद जी को तो अभी तक पूर्णा को विदा करने का अभ्यास हो गया था सो उन्होंने उसे रोका नहीं वरन उसके माथे पर विजय तिलक कर सबकी सुरक्षा में सफल होने का आशीष भी दिया।
चमोली पहुँच कर पूर्णा ने अपनी टीम के साथ जब वहां का भयानक दृश्य देखा तो उनकी भी रूह कम्पित हो गयी। सड़के नदी के बहाव से कटी जा रही थीं, घर के घर पानी में किसी तिनके की भांति विलीन हो रहे थे। बादलों की ऐसी घनघोर आवाज़ उसने कभी नहीं सुनी थी और उस आवाज़ से भी अधिक भयावाह थी लोगों के रुदन और चीत्कारों की ध्वनि, जैसे प्रलय आ गयी थी।
किसी तरह पूर्णा ने खुद पर काबू पाते हुए अपना हेलीकॉप्टर संभाला और केदारनाथ की तरफ चली। वहाँ का दृश्य तो मानों शून्य ही हो चुका था, मात्र महादेव के मंदिर को छोड़ सब पानी पानी था और पालनहारिणी मंदाकिनी के पानी मे लोग अपने जीवन को किसी तरह बचाने का संघर्ष करते दिख रहे थे। पूर्णा और उसकी टीम ने बहुतों को बचाया लेकिन कईओं को इस संघर्ष में मरते भी देखा। उस दिन उन्होंने लगभग 450-500 लोगों को सुरक्षित कैम्प तक पहुँचाया।
दूसरे दिन भी कोहराम में कोई कमी नहीं थी, किसी का पति किसी की पत्नी, किसी का बच्चा और किसी के माँ बाप लापता थे। लोग आर्मी और एयरफोर्स टीम्स के हाथ जोड़ अपने लोगों को ढूंढने की प्राथना करते भी दिखे। पूर्णा को सबको न बचा पाने की ग्लानि थी और वो भारी हृदय से आज के रेसक्यू मिशन पर चली। आज का मिशन था किसी तरह अपनी जान बचाय लोगों को बाहर निकालना और सबको खाना वितरण करना। ये टास्क भी पूर्णा और उसकी टीम ने बखूबी निभाया और कुछ लीगों को बचाया भी। तीसरे दिन मौसम और खराब हो गया, बारिश की वजह से पूरे इलाके में धुंध छा गयी। पर रेसक्यू मिशन चालू था और पूर्णा के साथ 19 और जवान अपने काम पर लग गए। हेलीकाप्टर को सम्भलने में आज पूर्णा को कुछ दिक्कत आ रही थी, बारिश, बिजली और धुंध ने मुश्किलें और बढ़ा दी थीं। पर उसने हार न मानी और उस दिन 600 लोगों को बचाया गया।
बेस कैम्प में लोगों को सुरक्षित छोड़ने के बाद जब दोबारा हेलीकॉप्टर केदारनाथ की तरफ बढ़ा तो थोड़ी दूर जाने के बाद ही नीचे की तरफ गिरने लगा, पूर्णा ने पूरी कोशिश करी संभालने की परंतु हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया। वहाँ माजूद लोगों ने कुछ जवानों को तो जलते हुए हेलीकॉप्टर से बाहर सुरक्षित निकाल लिया पर पूर्णा के साथ साथ कुछ जवान वहीं शहीद हो गए। किसने सोचा था कि सबकी जान बचा रहे जवानों के साथ ऐसा होगा, पर कुदरत के फैसले कोई नहीं बदल सकता।
इधर घर में सुबह से ही कुसुम जी का दिल डर और शंकाओं में डूबा जा रहा था, और उनका मन कहता था आजा पूर्णा अपनी माँ को भी इस डर की बाढ़ से बाहर निकालने आजा बेटा। सच है, माँ अपने बच्चे से एक ऐसे अदृश्य धागे से जुड़ी होती है जिससे उसे अपने बच्चे की हर पीड़ा का एहसास हो जाता है। कुसुम जी यही सब सोच रही थीं कि अचानक विनोद जी घर आ गए और उन्होंनें घबराये स्वर में आवाज़ लगाई।
"कुसुम...कुसुम कहाँ हो, जल्दी से टी वी ऑन करो, कुछ खबर है केदारनाथ से।"
"इतने घबराए हुए क्यों हो? चलाती हूँ टी वी, पर पूर्णा को कुछ नहीं होगा, वो बहुत बहादुर है, दुश्मनों के घुटने टिकवा देने वाली को आखिर क्या हो सकता है। डरो मत तुम विनोद", टी वी ऑन करते हुए कुसुम जी ने कहा।
समाचार सुनते ही पूरे घर में मातम छा गया। घर की इकलौती संतान के मृत्यु की खबर टी वी पर देखते ही दादी बेसुध हो गिर पड़ी, कुसुम जी कांपने लगीं और विनोद जी खबर की पुष्टि के लिए किसी आला अफसर को कॉल करने लगे। किसी को कोई होश न रहा। एयर फोर्स के अवसर ने पूर्णा की मृत्यु की पुष्टि करते हुए उसकी बॉडी भेजने की खबर जब विनोद जी को दी तो वो इस हानि से मूर्छित हो ज़मीन पर गिर गए।
थोड़ी देर में ही ये खबर कॉलोनी में फैल गयी, पूर्णा के घर लोगों का तांता लग गया। कुछ करीबी लोगों ने परिवार को संभाला और रिश्तेदारों को भी सूचित किया गया। किसी ने कुछ नहीं कहा न रोए ही। सबने भरसक प्रयास किया कि परिवार वाले रो लें, जिससे उनका दुख भीतर से बाहर निकल जाए पर सब विफल हो गया।
जैसे ही पूर्णा की बॉडी लेकर एयर फोर्स के जवानों ने घर के आँगन में पाँव धरे और कॉफिन के अंदर पूर्णा की बॉडी को कुसुम जी ने देखा तो ऐसी दिल दहला देने वाली चीत्कार हुई जो किसी पत्थर दिल वाले को भी रुला दे। विनोद जी को भी पड़ोस के शर्माजी ने बड़े जतन से पूर्णा के मर्त शव के समीप बैठाया, उन्होंने अपनी पूर्णा का हाथ थाम कर कहा
" तूने मुझसे वादा किया था पूर्णा कि तू वापस आयगी, तुझे पता है ना कि हम सब तेरा इंतज़ार करते हैं, फिर यूँ अपने वादे से फिरना क्या तुझे शोभा देता है...बोल। बोल न बेटा कुछ तो बोल लाडो", कहते कहते विनोद जी भी सीना पीटकर रोने लगे।
" पूर्णा...ओ पूर्णा आ गयी बेटी, आ तेरी नज़र उतार दूँ, ये कमबख्त कॉलोनी वाले फिर आ गए मेरी लाडो को नज़र लगाने हैं... कुसुम ला लाल मिर्च तो लेकर आ," दादी अपने बेटे का सहारा लेकर पूर्णा के पार्थिव शव को प्यार से सहलाते हुए बोलीं। वो इतने सदमें में थीं कि मानो कुछ समझती ही न थीं।
कुसुम जी विनोद जी के काँधे पर सर रख कर बोल रहीं थीं
" क्या ये दिन देखने के लिए ईश्वर ने पूर्णा से हमें अनुग्रहित किया था, जो ये दुख दिखाना ही था तो मुझे बांझ ही रहने देता, कम से कम जवान बेटी को ऐसे तो न छीनता। हाय... पूर्णा जिस उम्र में तुझे शादी का जोड़ा पहनना था उस उम्र में क्या तू कफ़न ओढ़ते हुए अच्छी लगेगी?? मैने कहा था आपसे मत मानो इसकी बात मत भेजो इसे एयरफोर्स लेकिन आपने मेरी एक न सुनी... देखो क्या हुआ अब। बताओ कैसे रहेंगे इस बोझ के साथ, कैसे कटेगी बची कुची ज़िन्दगी अकेले पूर्णा के बिना।" कुसुम जी फिर पूर्णा के मृत शरीर पर सर रख कर रोने लगीं।
इतने में एयरफोर्स के अफसर ने विनोद जी के हस्ताक्षर लिए किसी कागज़ पर और अगले दिन फिर आने को कहते हुए हिम्मत रखने का दिलासा भी दिया। पूर्णा को भारी हृदय से अंतिम विदाई दी गई। अग्नि के सात फेरे तो नहीं लगा पायी पूर्णा पर उस अग्नि में विलीन ज़रूर हो गयी और छोड़ गई अपनी जैसी कई लड़कियों के लिए एक संदेश, संदेश अपने सपनों पर भरोसा करने का, संदेश देश के लिए कुछ अच्छा कर गुज़रने का बिना लड़के लड़की में भेद के, संदेश अपने कुल की रौशनी बनने का।
अगले दिन एयरफोर्स के आला अवसर पूर्णा के घर आये और विनोद जी को सरकार द्वारा दिये मुआवज़े का 5लाख रुपये का चेक उनके हाथों में थमाते हुए कहा
" विनोद जी पूर्णा बहुत दिलेर और क्रमबद्ध लड़की थी, उसकी कमी तो हमेशा रहेगी। ये चेक सरकार की तरफ से हर शहीद जवान के घरवालों के लिए है, सो आपको देने आया हूँ। इसे स्वीकार करें।"
" मैं जानता हूँ पूर्णा हमें हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी है, और कभी वापस नहीं आएगी। सोचा नहीं था कि उसकी विदाई डोली में नहीं अर्थी पर करूँगा। लेकिन मैं ये पैसे लेकर उसके बलिदान का मोल कम नहीं कर सकता, यदि वो देश की रक्षा करते हुए बॉर्डर पर शहीद हुई होती क्या तब भी सरकार मुआवज़ा देती...नहीं ना? तो अब क्यों, मेरी बेटी तब भी देश सेवा ही कर रही थी। उसे पैसे से कोई प्रेम नहीं था, कृपया आप ये पैसा किसी ऐसे जवान को दे दें जिसे इसकी ज्यादा आवश्यकता हो, मैं ये नहीं ले सकता।"
दोस्तों कितनी ही ऐसी देश की वीर लड़कियां भारत को एक बेहतर देश बनाने में लगी हैं, कोई मिलिट्री जॉइन करती है, कोई एयरफोर्स, कोई आई पी एस या कोई डॉक्टर ही बन कर देश की तरक्की में हाथ बटा रहीं हैं। पूर्णा जैसे जवान जो देश के लिए, उसे बेहतर बनाने के लिए, बिना सोचे समझे अपनी जान कुरबाम कर देते हैं, उनके इस बलिदान को कुछ भृष्ट नेता देश को खोखला बना कर मिट्टी में मिला देते हैं।
आइए एक प्रण करें खुद से कि चाहें कुछ भी हो जाये अपनी बेटियों के सपनों को सच बनाने में उनके सपनों के रथ के सारथी बनेंगे, फिर चाहें समाज हमें कितना ही कोसे पर अपनी बेटियों के सपनों की उड़ान को कम या नीचा नहीं होने देंगें, फिर चाहें वो कुछ भी बने।