रोस्टेट बादाम
रोस्टेट बादाम
"हैप्पी वेलेन्टाइन डे दद्दू" चहकते हुये मीनल ने प्रभात को विश किया.. और दद्दू के पसन्ददीदा रोस्टेड बादाम का डिब्बा उपहार में दिया।
"अरे वाह ! शुक्रिया मेरे बच्चे सेम टू यू" कहते हुये प्रभात को लगा दिल में कुछ नॉक नॉक हुई
छत में घूम घूम कर पढ़ते देखा था उसे पहली बार, लम्बी सी चोटी,गुलाबी रंग का सूट,सांवला सा खूबसूरत चेहरा,"जरुर इन्टर फाईनल की तैयारी में जुटी है" यह सोच कर मुस्कुरा उठा प्रभात।
कल ही मां ने डांठ लगाई थी "जब देखों घूमता रहता है, कॉलेज में पहुंच गया है , कभी किताब छूते नही देखा तुझे , दत्ता आन्टी की बेटी को देखा है कभी..हर काम में परफेक्ट..और पढ़ाई लिखाई में भी उतनी ही गम्भीर।
प्रभात अक्सर कोशिश करता जब वो छत में आये तो चुपके से खिड़की से उसे देख पाये .जब नही आती तो निराश महसूस करता,
वो बसन्त पंचमी का एक गुनगुना सा दिन डोर बेल बजी ,मां किचन से बोली "प्रभात देख जरा"
दरवाजा खोला तो सामने "पढ़ाकू" खड़ी हाथ में मिठाई और रोस्टेड बादाम का पैकेट लिये ..दरवाजे में प्रभात को देख वो कुछ घबरा सी गई "हैप्पी बसन्त पंचमी", ये मां ने भिजवाया है.., ये रोस्टेड बादाम पापा दिल्ली से लेके आये हैं ..आंटी को पसन्द हैं ना ..पैकट पकड़ते हुये बोली।
"वाह ये तो मुझे भी पसन्द हैं"..शुक्रिया...पर वो पलट के जा चुकी थी,
कौन है ?मां ने आवाज लगा के पूछा,
वो जिसकी आप बहुत तारीफ करती हैं..पढ़ाकू..
अच्छा.. अच्छा..सांची आई थी...बैठने को तो बोलता..,तू भी बस,
"मैं क्या कहता मां ...अजीब सी है ..बिना कुछ कहे चली गई"..
"दादू.. दादू.. क्या सोच रहे हैं"मीनल ने प्रभात को वर्तमान में ला पटका,
"अच्छा दादू आपकी वेलेन्टाइन थी कोई"?
प्रभात मुस्कुरा उठा.."हां थी ना...उसी ने तो मुझे अपने साथ साथ डाक्टर बना दिया.. वो फोटो में जड़ी है जो ..... पहली बार मुझे रोस्टेट बादाम का गिफ्ट इसी ने दिया...फिर ये सिलसिला पिछले साल तक हमेशा चलता रहा" प्रभात की आंखे झिलमिलाने लगी थी ,
ओह...ये बात है..मीनल को याद आयी दादी की कुछ बातें जब वो बीमार थी , कहती "मीनू बेटा मैं ना रही तो तुम बिना नागा किये बसन्त पंचमी या अपने वेलेंटाइनडे के दिन अपने दद्दू को रोस्टेड बादाम दे दिया करोगी ना"।
दद्दू और मीनल ने एक दूसरे को भरी आंखों से देखा..और हौले मुस्कुरा उठे।