आलुओं का टौनिक
आलुओं का टौनिक
बिल्लू १९ अक्टूबर १९५९ को नाईन डी (९ – डी) (9 - D), नई मंडी, मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में पैदा हुआ। धीरे धीरे बड़ा होता गया। सन १९७३ तक वहीँ रहा। उसके बाद उसके पापा अपने पिता जी (बिल्लू के बाबा जी) से अलग रहने लगे।
अब ६० वर्ष से ज्यादा की उम्र सन २०२० में ८ वर्ष की उम्र सन १९६७ से १४ वर्ष की उम्र सन १९७३ तक में झांकने पर उसे कुछ भीनी भीनी यादों के धुन्धले से चित्र दिखाई देते हैं, जिसमें घर के आंगन में सुबह के पांच बजे कोयले की अंगीठी जलाते हुए उसे कभी अपनी मम्मी और कभी बिल्ला बुआ दिखाई देती हैं। दो बड़ी चाचियाँ भी दिखाई देती है, बहुत सौम्य व् बच्चो को अति प्रिय। बच्चों को नहलाना व् तैयार करना इनके जिम्मे, यहाँ तक कि सिर में तेल डालना और बालों में कंघी करना भी।
उस समय तक गैस नहीं आई थी। हां, प्रैशर कूकर आ गए थे।
उस समय ९ – डी में बाबा जी के संयुक्त परिवार व् चाकरों को मिलाकर कुल सोलह लोग रहते थे। एक खाता पिता खुशहाल परिवार।बेड टी, सुबह का नाश्ता, शाम की चाय व् रात का खाना अंगीठी पर ही बनता था और दोपहर का कच्चा खाना लकड़ियों के चूल्हे पर। रसोई का ज्यादातर काम बड़ी अम्मा (दादी जी) की सरपरस्ती में मम्मी और बिल्ला बुआ ही करती थी। सुबह पांच बजे से रात्री ९ बजे तक अनवरत। सिर्फ दोपहर के खाने के बाद एक दो घंटे की फुरसत मिलती थी। दोनों चाचियाँ मदद करती थी।
रात के खाने में परांठों (डनलप के टायर जितने मोटे) के साथ रशे के आलू (तरी वाले आलू की सब्जी) जरूर बनते थे।९ – डी की रशे के आलुओं की सब्जी, आलुओं का टॉनिक के नाम से दूर दूर तक रिश्तेदारी में महशूर थी।बाबा जी का संयुक्त परिवार धीरे धीरे अलग होता चला गया, पर आलुओं का टॉनिक आज भी सब के यहाँ अक्सर बनता है।
उस रशे के आलू की सब्जी के लिए बिल्ला बुआ गिन कर पांच आलू लेती थी, बड़े साइज़ के। छील कर, हर आलू को आठ हिस्सों में काटती थी। कुल हुए ४० टुकड़े। पांच लीटर के प्रैशर कूकर में थोडा देसी घी व् जीरा डाल कर आलू छौंकती थी। उसके बाद बड़ी अम्मां के निर्देशानुसार कूकर में पानी, नमक व् हल्दी डाली जाती थी।
९ – डी में रहने वाले सोलह लोगों के हिसाब से सोलह कटोरी पानी (बड़ी कटोरी, २०० मिलीलीटर वाली), यानि कि लगभग ३ लीटर पानी डाला जाता था। अगर बाहर से कोई मेहमान या रिश्तेदार आया हुआ तो उनकी गिनती के हिसाब से उतनी कटोरी पानी और। नमक व् हल्दी भी उसी हिसाब से बढ़ा दी जाती थी। धनिया पाउडर, लाल मिर्च व् गरम मसाला नाम मात्र को। प्रैशर कूकर की दो सीटी में सब्जी तैयार।
धीरे धीरे सोलह लोगों की फौज उस रशे के आलुओं की सब्जी से मोटे मोटे परांठे खा लेती थी। हर प्राणी को आलू के कम से कम दो टुकड़े मिलते थे और बड़ी कटोरी भर रशा (तरी)। अगर एक दो आदमी आखरी समय में बढ़ जाएँ, तो कोई चिंता नहीं, कुकर में पानी, नमक, हल्दी और डाल दी गयी। सब्जी कभी कम नहीं पड़ने दी गयी। उस आलुओं के टॉनिक में बहुत बरकत थी।
पिछले एक साल से प्याज़, टमाटर, ज्यादातर सब्जियां व् आलू बहुत महंगे हैं। लोगों को अनुमान है की इस साल आलू १५० रूपये प्रति किलो तक बिकेगा। आलू सब्जियों का बादशाह है। दुनिया में हर जगह पाया जता है। इस साल प्याज़ को तो हराना ही पड़ेगा। आलू के ऊँचे दामों के अनुमान में, बिल्लू आलूओं के टॉनिक को बनाने की विधि को निर्धारित क्लास २९ में बतौर पेटैन्ट, ट्रेड मार्क रजिस्टरेशन ऑफिस में रजिस्टर करा रहा है, जिससे की इस रेसिपी (विधि) का कोई अन्य बिना रॉयल्टी दिए प्रयोग ना कर सके।
९ – डी में रह चुके सभी प्राणी अभी तक की भांति ही इस रेसिपी का प्रयोग कर सकते हैं। आशा है कि सभी भाई बहन बिल्लू के इस काम में उसका सहयोग करेंगे।आने वाले और महंगे समय में आम जन के लिए यह विधि (रेसिपी) अमृत सामान होगी। दो लीटर के कुकर में एक आलू के आठ टुकड़े व् १ लीटर पानी डालो और आराम से चार प्राणियों का छोटा परिवार खाओ। हां, एक चीज़ और की जा सकती है कि आलू के आठ टुकडो में से चार टुकड़े बचा लिए जाएँ और अगले दिन एक लीटर पानी में फिर डाल कर सब्जी तैयार।