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NARINDER SHUKLA

Drama Tragedy

5.0  

NARINDER SHUKLA

Drama Tragedy

महंगाई ने मारा हमें

महंगाई ने मारा हमें

7 mins
490


रात मैंने एक स्वपन्न देखा। मैंने देखा कि एक 25 - 30 वर्ष का युवक हाथ में चाकू लिये मेरी ओर बढ़ा आ रहा है। मैंने हड़बड़ा कर पूछा - क   क कौन है ? क्या चाहिये। चाकूधारी ने मेरी गरदन पर चाकू रखते हुये कहा- बोल बे, घर का राशन कार्ड कहां छिपा रखा है ? मैने हैरानी से पूछा - सर, आप भी कमाल के लुटेरे हैं। राशन कार्ड तो कब का आउट - डेटिड हो चुका है। इससे तो आजकल राशन तक बराबर नहीं मिलता। क्या करेंगे इसे लेकर। सामने से आवाज़ आई - चुप बे, ज्यादा बोला तो यहीं डाल दूंगा। विदेशी है। एक ही बार में आठ- आठ को सुला सकता है।

चुपचाप राशन कार्ड दे दे वर्ना। मैंने देखा, सामने एक दैत्य सरीखा, नौजवान तंमचा हाथ में लिये मेरी ओर चला आ रहा है। मैं बैड से उठकर राशन कार्ड ढ़ूढ़ने लगा। चाकूधारी नौजवान, तंमचाधारी नौजवान से बोला - साले को बाहरी दुनिया की खबर ही नहीं है। सारी दनिया कंट्रोल रेट पर प्याज़ लेने के लिये सुबह से लाइन में लगी है।और येसाला नींद में बेखबर है। मैं राशन कार्ड ढूंढ़ता रहा। पर वह नहीं मिला। हार करमैंने चाकूधारी से कहा - सर मिल नही रहा । टिंकू ने न जाने कहां रख दिया। आप कल आइये। मैं ढ़ूंढ़ कर रखूंगा। तंमचाधारी ने कान पर तंमचे की नली रख कर धमकाते हुये कहा - बकता है साला। चुपचाप बता दे राशन कार्ड कहां छिपाया है।

वर्ना यहीं काम तमाम कर दूंगा। मुझे भयभीत करने के मकस़द से उसने दो हवाई फायर किये। मेरे मुंह से चीख निकल आई। मैं उठ बैठा। रसोई से रोने की आवाज़ आ रहीं थी। मैंने जाकर देखा, श्रीमती जी, फर्श पर बैठी रो रहीं थी। चारों ओर दालों के खाली डिब्बे बिखरे पड़े थे। मैंने श्रीमती जी से पूछा - क्या हुआ शीला ? तुम रो क्यों रही हो,? और, यह सब क्या है ? मुझे देखकर वे और जोर से रोने लगीं - हम लुट गये। बर्बाद हो गये, टिेकू के पापा।

चोर घर की सारी दालें उड़ा ले गये। अब हम सारा महीना क्या खायेंगे ? दायीं ओर पड़े, दो किलो के डिब्बे को गोद में लेते हुये वे सिसकीं - हाय, मूंग की दाल भी ले गये निगोड़े। मम्मी ने कितने प्यार से मेरे बर्थ - डे पर दाल हुये देते हुये कहा था - शालू, तुम्हें यह दाल बड़ी पंसद है न। दो किलो पैक कर रही हूं। यह बात मैंने तुमसे छिपाई थी। सोचा था, सरप्राइस दूंगी। हाय, मैं क्या करुं। वे मुझसे लिपट गईं। मौका देखकर मैंने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। वे पिछले चार दिन से शर्ट पर लिपिस्टिक के दाग के चलते नाराज़ चल रही थीं। मैंने मन ही मन लुटेरों को ‘ थैंक्यू ‘ कहा। मैंने उनके बालों में हाथ फेरते हुये सांतवना दी - प्रिय, दिल छोटा न करो। इस महंगाई में ज़िंदा रहे तो मैं प्रामिस करता हूं कि इस एनिवर्सरी पर तुम्हें मूंग की दाल अवश्य खिलाउंगा।

वे शांत हो गईं। कहने लगीं - और कान के झुमके। मैंने कहा - वह तो तुम आज ही ले सकती हो डार्लिंग। मैं शर्ट की लिपिस्टिक भुला देना चाहता था। वे मुझसे दूसरी बार फिर लिपट गई। और मैं आज मिलने वाली पगार से, खर्चों का तारतम्य बैठाने लगा। शाम को मैं अपनी सज़ी - संवरी बीवी के साथ, ज्वैलर्स लेन में स्थित ‘ भरोसे लाल एंड संस ‘ की दुकान पर पहुंचा। दुकान के शो केसेज़ देखकर मैं हैरान रह गया। नौ लखा हार की जगह लहसूनों की माला लटकाई हुई थी। लिखा था - सुच्चे - श्वेत लहसून। प्राइज़ टैग था - 30 रुपये प्रति पीस। नीले - लाल, सफेद पत्थरों की जगह, अरहर , मूंग और मलका की दालों ने ले रखी थी। रेट था - पांच रुपये प्रति दाना। सामने बासमती राइस का दाना आकर्षक पैकिंग के साथ सजाया हुआ था - टैग था - सौ रुपये मात्र।

टमाटर व अदरक, चांदी के बर्तनों की जगह शो केस में सजाये गये थे। सामने इलैक्ट्रानिक बोर्ड था। जिस पर लिखा था - डायमंड प्याज़। आज़ का भाव - चालिस रुपये प्रति पीस। श्रीमती जी हैरान थीं। मैंने भीतर जाकर, भरोसे लाल जी से पूछा - सेठ जी, यह क्या, आपने सोने का धंधा बंद कर दिया ? वे बोले - हां भायो, अब सोने में आमदन कहां। महंगाई के कारण, पब्लिक के पास पैसा बचता कहां हैं जो सोना खरीदें। अब दो दाल सब्ज़ी ही सोना है। आज़कल लोग दहेज़ में यही दे रहे हैं। आप बतायें, आपको क्या चाहिये ? मैंने कहा - हम तो झुमके लेने आये हैं। वे बोेले - भायो, झुुमको तो अब यहां पूरी लाइन में कहीं नही मिलेंगे। सारा धंधा दाल और सब्जि़यों का ही है। काम चोखो व नगद है। कोई झिकझिक नही। टैक्स अधिकारी पांच - सात किलो दाल में मान जाता है। कोई खतरा नहीं। यहां अब राम - राज्य हो गया है। नये भारत का निर्माण हो रहा है।

शनिवार को मेरे मित्र राधेश्याम, किसान मंडी में मिल गये। उनके हाथ में बीस किलो का थैला था। मैंने पूछा - कहो प्यारे, कहां की सैर हो रही है ? वे बोले - यार, पिेंकी की सगाई है। फ्रैश सब्ज़ियां लेने निकला हूं। मैंने हैरान होते हुये पुछा - वो तो ठीक है। पर, इतना बड़ा थैला ! इसे भरने में तो तुम्हारी सारी ग्रैच्यूटी लग जायेगी। शायद लोन भी लेना पड़े। वे उल्लू की तरह आंखें फााड़ कर बोले - क्या मतलब ! मैंने सामने लगे रेट - लिस्ट की ओर इशारा करते हुये कहा - वह देखो। सामने रेट लिस्ट लगी है। वे चश्मा लगाते हुये उस ओर देखने लगे। लिखा था - मटर 80 रुपये किलो। प्याज़ एक सौ बीस रुपये किलो। टमाटर 70 रुपये किलो। लहसुन 250 रुपयेे किलो अदरक 150 रुपये किलो। आलू 40 रुपये किलो। हरी मिर्च 40 रुपये किलो। आदि - आदि। उनकी आखों में आंसू आ गये। वे चक्कर खाकर गिरने लगे। मैंने उन्हें संभालते हुये कहा - घबराओ नहीे मित्र, वह देखो। फ्रूट वालों के पीछे फाइनेंसर बैठे हैं। चलकर देखते हैं।

वे मेरे पीछे हो लिये। वहां पहुंचे तो देखा - सरकारी तथा गैर सरकारी बैंकरों के अलावा, निहायत घाघ से दिखने वाले, कुछ फाइनेंसर भी अपनी - अपनी दुकान सजाये बैठे हैं। एक सरकारी बैंक का बैनर था - फ्रूट व वैज़ीटेबल लोन मेला। नीचे सुनहरे अक्षरों में लिखा था - हमारे यहां विवाह के अवसर पर ‘ प्रीति भोज ‘ में प्रयोग होने वाली सब्ज़ियों, दालों व फुट के लिये सस्ते ब्याज दर पर लोन दिया जाता है। बैनर के नीचे अत्यंत बारीक अक्षरों में लिखा था - कंडीशन अप्लाई। दूसरे बैंक का बैनर था - वैज़ीटेबल व दाल लोन। केवल चैबीस घंटे में। नो प्रोसैसिंग फीस। नो हिडन चार्ज़िस। एक प्राइवेट कंपनी के बैनर पर लिखा था - अनाज व फैश वैज़ीटेबल लोन। पहले आइये। पहले पाइये के आधार पर। ब्याज़ दर केवल ‘आठ‘ फीसदी मात्र प्रति माह।

पहले दस कस्टमर को एक ‘- एक चांदी का सिक्का मुफत। मैंने राधेश्याम से पूछा - कहो भाई जान। क्या विचार है ? उन्होने सिसकते हुये पूछा - यार सुना है, सरकार कंट्रोल रेट पर सब्ज़ियां व दालें बेच रही है। मैंने कहा - बिल्कुल ठीक सुना है। इसी गांधी मैदान पर, सोम व मंगलवार को सरकारी दुकानें लगती हैं। जहां आधार व वोटर कार्ड पर पूरी चैकिंग के बाद, मटर के दानों के आकार के प्रति व्यक्ति एक किलो प्याज़, टमाटर, स्टाक रहने तक, साठ रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलते हैं। वे बोले - काफी रश रहता होगा। मैंने कहा - हां रश तो होता है। लेकिन, उससे तुम्हें क्या ? यहां चारों ओर दलाल खड़़े रहते हैं। जो दस रुपये ज़्यादा लेकर, तुरंत काम कर देते हैं। बीस रुपये प्रति किलो के हिसाब से अधिक रेट देकर तुम उन मासूम बच्चों से भी यह काम करवा सकते हो जो ‘पिज्जा हट व नूडल बार के बाहर भीख मांगते हुये दिखाई दे जाते हैं। वे पार्ट टाइम यही काम करते हैं। आजकल इनके पेरेंटस रिलैक्स हैं।

वे अर्थशास्त्र के खिलाड़ी हो गये हैं उन्हें मालूम हो गया है कि जितने हाथ होंगे, कमाई उतनी ही अधिक होगी। बाज़ारी हवा देखकर, राध्ेाश्याम को  हार्ट - अटैक का अंदेशा होने लगा। उन्होने दोनो हाथ उपर कर के ईश्वर से फरियाद की - प्रभों, इस बार नाक बचा लो। सवा सौ का प्रशाद चढ़ाउंगा। बादलों में तीव्र गड़गड़ाहट हुई - रिश्वत देता है मलिच्छ।राधेश्याम  रोने लगे- प्रभू, आप ही बताइये कि कमरतोड़ महंगाई में, मैं बरातियों के खाने का प्रबंध कैसे करुंगा ? बादलों से आवाज़ आई - घास - पात से मूर्ख।


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