पिया के संग होली
पिया के संग होली
आज होली का त्योहार था। बाहर गलियारों में “रंग बरसे भीगे चुनरवाली...” गाना धूम मचा रहा था। सभी लोग मस्ती से झूम रहे थे और एक दूसरे पर रंग छिड़क रहे थे। पिचकारी से निकली रंगों की फुहार हर किसी के मन को प्रफुल्लित कर रही थी। लेकिन इस सब के बीच निर्मला चुपचाप दरवाज़े पर उदास खड़ी थी। चारों ओर चल रही चहलपहल उसके मायूस दिल में किसी भी प्रकार की खलबली नहीं मचा रही थी। आज सुबह से उसका दिल व्यथित था। दिमाग में अनाप-शनाप ख्याल आ रहे थे। उसका जी घबरा रहा था। उसे अपने पति अभय सिंह की बेहद फ़िक्र हो रही थी और क्यों न हो आखिर वह फ़ौज में जो था। सिर्फ उसका पति अभय सिंह ही सरहदों पर जंग नहीं लड़ रहा था अपितु उसकी पत्नी निर्मला भी यहाँ परिस्थितिओं के सामने जंग लड़ रही थी। कभी दिल को तसल्ली देकर वह उन विपरीत परिस्थितियों से समझौता कर लेती तो कभी डट कर उनका सामना कर उन्हें हरा देती थी! जिन फौजिओं के कारण हम चैन की नींद सोते है उनके परिवारजनों को वह सुकून कहा। हरबार अभय सिंह अपनी पत्नी निर्मला से कहता की इस होली के दिन घर आऊंगा लेकिन हरबार कुछ न कुछ विपदा आ जाती। कभी घुसपैठ... कभी बम्बमारी... कभी आतंकी हमला। उफ़! यह कमबख्त दुश्मन देश हमारे फौजीओं को कहा चैन की साँस लेने देता है। सुना था की बोर्डर पर फिर से कोई बखेड़ा खड़ा हुआ था सो अभय सिंह इस बार की होली में भी घर नहीं आ पाएगा।
निर्मला ने आसमान की और देखकर कहाँ, “हे भगवान! कभी तो होली के दिन उन्हें अपने घर आने का मौका दे। कुछ ऐसा चमत्कार कर की इस बार में जी भर के उनके साथ होली खेल पाऊं!”
“अरे! ओ निम्मो... यूँ दरवाज़े पर खड़ी क्या है? चल हमारे साथ होली खेलने आ...” निर्मला की सहेली कमला ने उसे पुकारा।
निर्मला को भी होली खेलने का मन हो रहा था। लेकिन पिया के बिना काहे की होली और काहे की दीवाली। “तू जा मेरा मन नहीं है।“
स्पीकर पर “मेरा पिया घर आया ओ रामजी...” गाना चल रहा था लेकिन निर्मला को वह गाना खटकने लगा। तभी दूर से भागते हुए आ रहे राजू ने चिल्लाकर कहाँ, “भाभी, एक मिलेट्री की वेन हमारे घर की ओर आ रही है... लगता है भैया आ गए... भैया आ गए...” यह सुनते ही निर्मला का मन बज रहे संगीत के साथ झूम उठा। उसका मन उमंग से गुनगनाने लगा, “मेरा पिया घर आया ओ रामजी...”
इश्वर ने मानो आज निर्मला की सुन ली थी। भगवान का शुर्किया अदा कर वह दौड़ते हुए घर के भीतर गई और भागते हुए रंग से भरी थाली लेकर बाहर आई।
निर्मला अभी अपने घर की सीढ़ियां ढंग से उतर भी नहीं पाई थी की एक मिलेट्री वेन उसके द्वार के सामने आकर खड़ी हो गई। निर्मला कुछ सोच ही रही थी की चार फौजी वेन में से नीचे उतरे और एक बड़ी सी संदूक उसमें से निकालने लगे। निर्मला यह देख सहम सी गई, उसने सर्द लहज़े में उनसे पूछा, “मेरे पति कहाँ है? वो नहीं आए?”
उन फौजिओं ने वेन की ओर देखा। निर्मला ने भी अपनी निगाहें उधर घुमाई। लेकिन यह क्या? अपने पति अभय सिंह के कमीज़ पर लगा वह लाल खून का धब्बा उसके दिमाग को सुन्न कर गया। उसके हाथों से रंगों की थाली फिसल कर नीचे ज़मीन पर गिर पड़ी। वह बौखलाकर वेन के करीब गई और उसमें से नीचे उतर रहे अभय सिंह को लिपट कर रोने लगी।
अभय सिंह ने शांत लफ्ज़ों में पूछा, “क्यों रो रही है पगली?”
निर्मला ने उसके कमीज़ पर लगे खून के लाल रंग के धब्बे को देखकर पूछा, “यह ज़ख्म कैसा है!!!”
अभय सिंह मुस्कुराकर बोला, “अरे! इसे देखकर डर मत उलटा उसका शुक्रिया अदा कर आख़िरकार इसी की वजह से तो मुझे लंबी छुट्टी मिली है।“
निर्मला “आप भी न...” ऐसा बोलते हुए फिर से अभय सिंह को लिपट कर रोने लगी।
अभय सिंह उसे सहलाते हुए बोला, “रो मत... मरा नहीं हूँ... मारकर लौटा हूँ... उन घुसपैठियों को खदेड़ कर लौटा हूँ... यह खून का धब्बा मेरी बहादुरी की निशानी है... उसकी कद्र कर... उसे यूँ अपने आंसूओं से मत मिटा...”
निर्मला झल्लाकर बोली, “अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो?”
अभय सिंह गहरी साँस लेते हुए बोला, “तब भी मैं अपने देश को कुछ होने नहीं देता... जा अब रंगों से भरी दूसरी थाली लेकर आ...”
अभय सिंह को आया देख आस पड़ोस के लोग इक्कठा हो गए। सब मिलकर फ़ौजी जवानों को रंग लगाने लगे। अभय सिंह एक बंदे की थाली से गुलाल उठाकर निर्मला के करीब आया और बोला, “दुश्मन के खून से सरहद पर खूब खेली है होली... आज पिया के संग गुलाल से खेलूँगा जी भर के होली...” ऐसा बोलते हुए उसने निर्मला के गाल पर गुलाल लगा दिया। अपने पिया के स्पर्श से निर्मला रोमांचित हो उठी। तभी किसी नटखट ने स्पीकर पर फिर से गाना चला दिया, “मेरा पिया घर आया ओ रामजी...” उसके ताल पर निर्मला मस्ती से झुमने लगी और क्यों न झूमती? आखिरकार शादी के इतने सालों के बाद वह आज पहली बार खेलने जा रही थी अपने पिया के संग होली।