परोपकार
परोपकार
"सुनती हो !"
"हाँ कहो !... क्या बात है ?"
"लगता है मेरी चप्पलें घिस गयी हैं, अभी-अभी बाथरूम में फिसलते-फिसलते बचा हूँ।"
"शाम को अपने लिए नई चप्पलें लेते आना।"
"लेकिन यह चप्पलें अभी नयी ही हैं, टूटी भी नहीं है।"
"नीचे से घिस गयी होंगी। आप इन्हें नहीं पहनना, कहीं फिसल-विसल गए तो टाँग तुड़वा बैठोगे। खामखाँ पाँच छह महीने बिस्तर में पड़े रहोगे। कमाई तो होगी नहीं, ऊपर से इलाज़ का खर्च और आन पड़ेगा।"
"लेकिन इनका क्या करेंगे ?"
"किसी ग़रीब मज़दूर को दे दूँगी। पहन कर दुआ देगा।"