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झुमकी (भाग दो)

झुमकी (भाग दो)

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अब तक आपने पढ़ा, एक गरीब माँ ने उसकी बेटी झुमकी की शादी, अपनी शादी के कुछ गहने देकर पास के गाँव मे शादी की। झुमकी का पति सूरज कुछ महीनों बाद उसे गाँव माँ, बाबा के पास छोड़कर नौकरी के लिये शहर चला जाता है, उसने जाने के बाद कुछ खबर नहीं ली झुमकी की। झुमकी सास, ससुर की सेवा करती है, पर सूरज और अपनी माँ को याद करके अकेले रो लेती है। आज सासू माँ ने बताया कोई मेहमान आने वाले हैं।

सुबह ही उठ गयी थी झुमकी रोज की तरह, कुँए से पानी ले आई, चूल्हा जला चोखा बनने ने रख दिया, दाल बनने रख दी और तीसरे पर चूरमे बनने की तैयारी थी। बाटी की भी पूरी तैयारी कर ली थी। देखा तो एक बुजुर्ग आये, ये तो वो ही लग रहे हैं जो मुझे देखने भी आये थे शादी के लिये झुमकी मन ही मन सोचने लगी, चाय दे आई थी, सासू माँ खाने के लिये मदद करने आई, तो बताया सूरज के मामा है, खाना खाकर झुमकी के बने खाने की तारिफ की थी मामा जी ने, सब माँ से ही तो सीखा था। खुशी से सोच रही थी माँ मिलेगी तो बताऊंगी।

शाम को सासू माँ झुमकी के पास आई, देख झुमकी बेटी तू ने बड़ी सेवा की म्हारे को तेरा दर्द पता है, तेरे ससुर जी ने भाई को बुलाया, वो तुझे सूरज के पास ले जावेगें। मामा का काम पड़ता रहता है शहर में। रास्ते में तेरा गाँव पड़ेगा माँ से भी मिल जाइयो। झुमकी की आँखे आंसुओं से भर गयी थी। और घर का काम...झुमकी बोली, सास ने तुरंत बात काटते हुये पहले भी तो करती थी, आदत खराब कर दी तू ने मेरी बैठ के खिलाया इतने दिन, सासू माँ हम बड़े भाग्यशाली है कि तुम जैसी सासू माँ मिली। कहकर झुमकी गले लग गयी। तेरी बड़ी याद आयेगी मन जीत लिया तू ने। अच्छा कल जाना होगा ये, कुछ घाघरा चोली सिलाये थे थारे लिये। कहकर एक शीशे लगे सुंदर से थैले में रख दिये ले और भी सामान रख ले इसमें। कहकर सोने चली गयी।

अगले दिन सुबह का काम करके झुमकी, खूब रोई थी गले मिल के दोनों। सास ने सरपंच जी के घर का फोन नम्बर लिख एक पर्चे को हाथ में थमा दिया। कभी मन करे तो याद कर लिजो। झुमकी मामा के साथ चली गयी।

रास्ते में माँ के पँहुची...मिलने की खुशी से आंसू रूक ही नहीं रहे थे दोनों के मामा जी को खाना खिलाते हुये सब बाते सुना रही थी झुमकी, पर सूरज के बहुत दिन पहले जाने कि बात माँ को नहीं बताई थी। चिन्ता करेगी सोच कर। जाते समय झुमकी और माँ का रो रो कर दोनों का बुरा हाल था पर मिलने की तसल्ली भी थी। रात का खाना साथ दे दिया था, ढेरो दुआयें दे विदा किया बेटी को।

ट्रेन में पहली बार बैठी थी। खिड़की से बाहर सब यादें घुम रही थी, कभी सोच कर मुस्कुरा देती, कभी रो देती। कभी सोचती सूरज के बारे में कि गुस्सा हो जाऊँगी, बोलूंगी नहीं भूल गये जाके, ब्याह के बाद खबर ही ना ली। पर कभी मन को समझाती शहर गये है काम होगा तभी तो नहीं आये। मामा जी की आवाज ने चौका दिया, बेटी स्टेशन आ गया। रिक्शा से घर भी पहुँच गये ताला लगा था, पड़ोस से चाबी ले ली मामा जी ने, फैकटरी गया है...मामा जी आते रहते थे पता था चाबी पड़ोस में होगी।

शरीर टूट रहा था। पर जिसका इंतजार था आज अपने घर थी चाहे वो एक कमरे का ही क्यों ना। सामान फैला पड़ा था। सही करने में लग गयी, खाने का सामान था, खाना बना के मामा जी को खिला दिया।

रात को सूरज नहीं आया, पड़ोस से पता चला दोस्त के रुक जाता है कभी। अगली रात सूरज घर आया, आते ही झुमकी को देख के रंग उड़ गया। झुमकी नजरे झुकाये शरमा रही थी, सूरज ने मामा से पहला सवाल किया, क्यों लाये इसे मामा ? मेरी जबरदस्ती शादी एक गाँव वाली से माँ-बाबा ने करा कर अच्छा नहीं किया, झुमकी के पैर काँपने लगे। मामा गुस्से से बोले शादी करके लाया है तू तेरा कुछ फर्ज है घर के प्रति या नहीं ! अब ये यही रहेगी।मामा ने झुमकी के सिर पर हाथ रखा आता रहूंगा। और अपना थैला उठाये चले गये।

झुमकी ने आँसू भरे आँखो से सूरज को खाना दे दिया। घर आकर पहली बार खाना बना बनाया मिला था, भूख भी लगी थी, मना कैसै करता। खा लिया। जल्दी घर भेज दूँगा कहकर नीचे चादर बिछा के सो गया। सुबह जल्दी निकल गया बिना बताये। झुमकी ने रो रोकर आँखे सूजा ली। उस दिन थैलै से सामान निकालते वक्त कपड़ों के बीच मे दो नये थैलै और साथ शीशे धागे घुंघरू देखे थे सोचा सासू माँ ने नये कपड़े जो दिये थे उनके बीच गलती से आ गये। पर नहीं...वो जानती थी सूरज पसंद नहीं करता, अकेली पड़ी झुमकी का समय काटने मे मदद करेगें। रोज खाली रहती तो सूई धागा ले के बैठ जाती। झुमकी ने थैलो पर सब अच्छे से सजाये थे।

वापिस तो नही जाऊंगी। ये निश्चय कर लिया था। बाहर तार पर कपड़े सुखाने गयी तो आवाज आई नयी आई हो। सूरज की क्या हो ?

देखा झुमकी से चार पाँच साल बड़ी होगी पास खड़ी थी। मैं तुम्हारी पड़ोसी शगुन, तुम दीदी कह सकती हो। कोई तो मिला बोलने के लिये झुमकी मुस्कुरायी, जी दीदी सूरज पति है हमारे। ऐसे ही थोड़ी-थोड़ी बाते करते-करते दोनों की खूब बनने लगी। सूरज कभी आता कभी नहीं। जब भी आता तब झुमकी बात करने की कोशिश भी करती तो नशे में हाथ उठा देता। झुमकी रोती रहती क्या कर भी सकती थी। ना माँ के पास जा सकती दुख नहीं देना चाहती थी माँ को इस उम्र में।

एक दिन शगुन ने पूछ ही लिया सूरज पसंद नहीं करता क्या ? कोई बात है ? झुमकी के मन में जितनी बातें भरी थी सब शगुन की गोद में सिर रख कर रो रो के सुना दी। शगुन ने पानी दिया समझाया सब सही होगा। शगुन कि नजर उन सुंदर थैलो पर पड़ी अरे इतने सुंदर तुमने बनाये। हाँ दीदी...गाँव मे सिले थे अब पूरे किये। यहाँ राजस्थानी सामान की बहुत माँग है, तुमको खूब रूपये मिल जायेगे और मन भी लगेगा, जब तुमने यहाँ रहने का सोच भी लिया है। शगुन ने कहा। ये दोनों मैं ले जाती हूँ अपनी सहेलियों को दिखाऊंगी शायद बनाने का ओडर दे दे। ठीक है दीदी जैसै ठीक समझो, यहाँ मुझे कौन मना करेगा, उन्हें फुरसत नहीं मेरे लिये, मेरी तो आप ही हो सब कुछ। कुछ दिनों में छोटा थैलै, फोन रखने के पर्स, और बहुत तरीके के ऑर्डर मिले। शगुन ने सामान ला दिया अरे दीदी मैं आपके रूपये कैसे दूँगी। झुमकी ये बहुत ज्यादा के बिकेगें ये तुम्हारा गाँव नहीं, शहर है, ये छोटा सा हाथ का पर्स २०० का बिकेगा। काम बहुत सुंदर है, ये सामान तो बहुत कम का आया। झुमकी को अपनी सिलाई मशीन दे दी। झुमकी खाली समय बनाने लगी। आस पड़ोस से ओडर आने लगे, मेरा बना दो। कोई चुनरी पर शीशे, कढ़ाई कराने लगा। कोई सूट पर। रूपये मिले तो शगुन दीदी पीसीओ ले गयी सरपंच जी को फोन करके दीदी ने माँ-बाबा को बुला लिया था। झुमकी ने सासू माँ को, सब बात बता दी थी। माँ को भी मैं सही हूँ बताने को बोल आई थी सासू माँ को।

एक दिन शगुन ने कहा झुमकी एक बात मानेगी हाँ हा दीदी कभी मना किया हे क्या आपको, बोलो झुमकी, झुमकी यह काम तो तुम्हारा मन लगाने के लिए काफी है पर इससे जिंदगी तो नहीं चल पाएगी सूरज का मन जीतने के लिए तुम्हें अपने को भी बदलना होगा क्या करना होगा दीदी झुमकी ने कहा तुम शहर के हिसाब से रहना सीखो क्या पता सूरज का मन बदल जाए यह मेरी साड़ी है जो मैं नहीं पहनती, सूट बनाकर इसे अपने लिए तैयार करो और घाघरा चोली रख दो, सूट पहनो पति को खुश करना का रास्ता शायद यहीं हूं हो झुमकी मान गई झुमकी ने अपने लिए वह कुर्ता सलवार शीशे और धागे से कढ़ाई करके तैयार कर लिया पहन के खड़ी हुई तभी शगुन दीदी ने अरे वाह झुमकी तुम तो पहचान में नहीं आ रही बहुत सुंदर लग रही हो नजर ना लगे उनकी शरमा गई । झुमकी का रंग संगमरमर सा सफेद, बड़ी-बड़ी आँखे। आज तो सूरज देखता रह जायेगा, शहरी लग रही है।

शाम को सूरज घर आया झुमकी को देखता ही रह गया पर उसका अहम उसे बोलने को तैयार ना था झुमकी भी अपने काम में, खाना खिलाने में लगी रही अगले दिन सूरज चला गया झुमकी शगुन दीदी के पास गई दीदी इन की फैक्ट्री आपके आपके पति के फैक्ट्री के पास ही है क्या आज मैं इनके लिए खाना भेज दूं, शगुन मान गई हां तुम तैयार करो यह दे देंगे शगुन और उसका पति चाहते थे कि सूरज क्योंकि को अपना ले शगुन के पति ने लंच बॉक्स सूरज को पकड़ा दिया उस यह किसने दिया है शगुन का पति ने बताया तेरे घर से आया है कह कर निकल गया इतने में सूरज के दोस्तों ने देखकर अरे वाह। घर से खाना क्या तेरी माँ, बाबा आ गए हैं कहते कि सब ने मिलकर लंच बॉक्स खोल लिया उसमें दाल, बाटी, चूरमा देख कर सब खुश हो गए मन ही मन सूरज भी खुश था इसके लिए खाना जो पहली बार आया था सब ने खाया और खूब तारीफ करी बड़े शहरों में तो राजस्थानी खाना खाने के लिए होटल जाना पड़ता है वही स्वाद कि सब घर के खाने की तारीफ कर रहे थे ।शाम को सूरज घर आ गया। झुमकी के लिए इतना ही बहुत था कि सूरज रोज घर आ रहा था उसके धीरे धीरे रुपए भी इकट्ठे हो रहे थे और उसका दिन भर में काम में मन लगा रहता शगुन दीदी का बड़ा सहारा था उसे पहले सूरज बात बात पर हाथ उठा देता था अब बहुत दिन से उसने झुमकी पर हाथ नहीं उठाया था।

एक दिन सूरज के दोस्तों ने जिद पकड़ ली आज तो हम तेरे घर जाकर ही गर्म खाना खाएंगे मां बाबा आए हुए हैं मां के हाथ का खाना घर पर खाकर आएंगे सूरज ने बहुत बहाना बनाया पर दोस्त मानने को तैयार ही ना थी शाम को शाम को सूरज जल्दी घर आ गए और पहली बार झुमकी से बोला मेरे कुछ दोस्त आएंगे खाना तैयार कर सामान यहां झुमकी मन ही मन खुशी से झूम उठी आज पहली बार सूरज ने बात जो की थी। झुमकी ने कहां क्या बनाना है जो तुम्हें ठीक लगे झुमकी ने दाल, बाटी चूरमा गट्टे की सब्जी और ना जाने क्या बहुत कुछ बना दिया शाम को दोनों दोस्त आए और झुमकी को देखते ही बोले सूरज तूने बताया नहीं कि तू ने शादी कर ली सूरज कुछ नही बोला। क्या नाम है भाभी का ..जल्दी से झनक बोल दिया झुमकी नाम उसे पसंद नहीं था, शहर जैसी लड़की शहर जैसा नाम चाहिये था। सबने खाना खाया और खूब तारीफ करें और झुमकी की सुंदरता की भी दोस्त तारीफ कर रहे थे, सूरज तू बड़ा भाग्यशाली है जो सुंदर और दूसरों को मान सम्मान देने वाली पत्नि मिली, सूरज ने आज झुमकी को ध्यान से देखा था लाल और हरे शीशे की कढ़ाई वाले कुर्ते में वह बहुत सुंदर लग रही थी, जिस दिन देखने ले गये थे उसे, गुस्से मे नजर नीचे करके बैठा रहा था। दोस्तों को छोड़ने चला गया। झुमकी ने सफाई जल्दी-जल्दी की सूरज के आने से पहले शगुन दीदी को सब बताना जो था। भागी भागी दीदी को पकड़ कर गोल घमा दिया अरे अरे इतनी खुश क्या बात बड़ा ऑर्डर आ गया क्या ?

दीदी लगता है मेरे भी सपने सच हो जायेगें।सब बाते एक साँस मे सुना गयी थी झुमकी। नया नाम भी। शगुन ने खुशी से गले लगा लिया। चलो कुछ तो बोला।

सूरज के व्यवहार मे बदलाव दिखाई देने लगा था। एक दिन सूरज नहीं आया दूसरे दिन भी नहीं आया, शगुन के पति से फैक्र्टी पुछवाया तो पता चला काफी लोगों को काम से निकाला उसमें सूरज भी था। दोस्त ने सूरज के फोन से शगुन के पति के नम्बर पर फोन किया इसे ले जाओ हम खर्चा नहीं उठा सकते उसने शराब पी कर गम मे दोस्त के घर था। सूरज को शगुन का पति नशे में घर ले आया। सुबह जब नशा उतरा मुझे कौन लाया यहाँ। झुमकी ने सब बताया। शगुन उसका पति भी आ गये उसे समझाने नशे को छोड़, नौकरी देख, परिवार पर ध्यान दे। दोस्तों ने भी परेशानी मे साथ छोड़ दिया। झुमकी कुछ जोड़े रूपये और गहने लेकर आई और सूरज के हाथ मे रख दिये। सूरज ने मना किया पर झुमकी मानी नहीं। उसके गहने घर की परेशानी मे काम आने के लिये ही है। शगुन ने बताया कैसै वो सिलाई छोटे काम करके रूपये जोड़े, पति की परेशानी के लिये ही है, वो माने या ना माने झुमकी उसको पति मानती है। आप कोई अपना खुद का छोटा सा काम शुरू करिये, वही बड़ा हो जायेगा।

शगुन ने झुमकी के काम को आगे बढ़ाने की सलाह दी। सूरज ने काम देखा क्या बनाया, लग रहा था बाजार से लाये हो। शगुन ने भी साथ काम का इरादा कर लिया। काम शुरू हो गया। दुकानों से सूरज ओडर लाने लगा। अच्छी बरकत होने लगी।

झुमकी ने सूरज को माँँ-बाबा को लाने को कहा दोनो साथ गये झुमकी की माँ के पास एक दिन रूके झुमकी ने खुब बाते की माँ से। और सासु माँ और बाबा को मनाकर शहर ले आये। दो कमरो मे नीचे माले पर आ गये। सूरज ने झुमकी का हाथ पकड़ कहा झुमकी भगवान का लाख लाख धंयवाद जो तुम मेरी जिंदगी मे आईं। झुमकी हँसते हुये झनक नहीं कहोगे।सूरज ने गले से लगा लिया नहीं तुम झुमकी ही रहोगी।

यह हर नारी के लिए एक सीख है कि हमें हर परिस्थितियों में घबराना नहीं है, जब अच्छा समय नहीं रहा तो बुरा भी नहीं रहेगा। समय अपने अनुसार रास्ते बना देता है बस जरूरत है तो हमारे दृढ़ निश्चय की...झुमकी हर स्त्री के लिए प्रेरणा...


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