दूसरी पारी
दूसरी पारी
कलम फिर चल पड़ी
एक शिक्षिका और फिर एक प्रधानाध्यापिका, इनका संबंध लिखने- पढ़ने से ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। इस प्रोफेशन में अपने कार्यकाल के दौरान अपने विचारों की अभिव्यक्ति का भरपूर मौका मिलता है।
आकाशवाणी से परिचर्चा के आमंत्रण मिलते थे। धीरे-धीरे लिखना शौक बनता गया। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद मन में विचार आया कि आज तक के अपने शिक्षण काल के अनुभवों को साझा किया जाए। शुरूआत वहीं से हुई और धीरे-धीरे कब ऑनलाइन साहित्यिक मंचों से जुड़ाव हो गया, पता ही नहीं चला। जलधारा के साथ तो शुरुआत से ही जुड़ाव रहा। यहीं पर अनेक विधाओं से भी परिचय हुआ। मेरा विषय अंग्रेजी साहित्य रहा किंतु बचपन से हिंदी की नींव मजबूत होने के कारण मुझे हिंदी भाषा पर भी उतना ही अधिकार है जितनी अंग्रेजी पर। दोनों भाषाओं में विचारों को व्यक्त करने का अपना अलग ही आनंद और संतोष है।
दरअसल हर शुरुआत, या कहें कि किसी भी आदत की नींव बचपन से ही पड़ती है, तो पढ़ने- लिखने का शौक मेरे पिताजी ने मुझे बचपन से ही दिया था। जब मैं छोटी थी तो वे शाम को मुझे अपने साथ एक कन्वेंशन हॉल की तरह का ही कुछ था, जो मुझे ठीक से याद नहीं है ,वहां ले जाते थे। वहां वे खुद अखबार पढ़ते और मैं तरह-तरह की कहानियों की किताबें। गर्मी की छुट्टियों में तब किराए पर कहानियों की किताबें मिला करती थीं। हम उनको लाते 10 मिनट में चट कर जाते। पढ़ने का शौक विवाह के बाद तक कायम रहा। मैं किसी के भी घर जाकर उनकी मेज पर रखी पत्रिकाओं को उठाकर पढ़ने लगती। इस आदत से मेरे पति बेहद शर्मिंदा महसूस करते। दूसरे दिन वे ढेरों पत्रिकाएं लाकर रख देते। मगर मैं दो-चार दिन में खत्म कर देती और फिर बोर होती। इसका हल मैंने निकाला। पास ही एक लाइब्रेरी जिसका नाम भारती भंडार था उसकी सदस्य बन गई। मैं रोजाना लाइब्रेरी जाती, एक पुस्तक इश्यु करा कर लाती। चंद दिनों में ही फिर पहुंच जाती दूसरी लेने। इस तरह से मैंने लगभग सारी किताबें पढ़ डालीं। एक दिन लाइब्रेरी वाले बंगाली बाबू ने हाथ जोड़कर कहा," बहन जी, अब आप सरस्वती लाइब्रेरी ज्वाइन कर लीजिए ,यहां की तो सारी किताबें आप पढ़ चुकी हैं।" अब मुझे यह नहीं पता यह हकीकत है या उन्होंने यूं ही कहा था। तो यह था मेरा पढ़ने का शौक जो आज तक कायम है। मुझे पढ़े बिना नींद नहीं आती, सफ़र नहीं कटता। जैसे ही समय मिलता है मैं पढ़ने और लिखने में लगती हूं।
तो यह थी मेरी कलम की यात्रा, जो शुरू तो हुई थी अपने शैक्षणिक अनुभवों को साझा करने से, और फिर विभिन्न विधाओं पर खुद को आजमाने लगी।