मुर्गी चोर मास्टर साब
मुर्गी चोर मास्टर साब
हमारा घर एक पुराने शहर की बदनाम बस्ती के गन्दे मोहल्ले में था। जहाँ शिक्षा का नाम सुनकर लोग ऐंसे भागते थे जैंसे घनी सर्दी में बच्चे नहाने के पानी का नाम सुनकर भागते हैं। यहाँ आदमी दिन में तो कड़ी मेहनत करते हैं और शाम को शराब पीकर बेगैरती और बैशर्मी का नंगा नाच करते हैं, महिलायें सुबाह शाम खाना बनाती हैं बाकी सारे दिन एक दुसरें के घर जाकर काना फूसी करती हैं, और बच्चे तब तक गली में हाय हल्ला करते हैं जब तक कि उनको कान पकड़कर कर घर में बुला ना लिया जाता हो। अजी बस यूँ समझ लो कि तहजीब और तमीज हमारी इस बदनाम बस्ती का नाम सुनकर सौ सौ कोस दूर भागती थी। अगर भूले से भी हमारी इस बस्ती में कोई शिक्षित आदमी आ जाता , तो हम उस पर ऐंसे तंज कसते थे कि फिर कभी वो हमारी बस्ती की तरफ पलट कर ना देखता। हम सिर्फ अपने को ही विद्वान समझते थे , दुसरे की इज्जत करना तो हमें सिखाया ही नहीं था। हमारी मात्र भाषा तू, ता, ती, ता, ता, थइया वाली थी, अाप शाप कहकर पुकारना तो हमे जाहिल पन सा लगता था।
हमारा एक ग्रुप था, ग्रुप के बच्चो की उम्र नौ साल से पन्द्राह साल के बीच थी , और इस उम्र में बच्चो को उतनी ही तहजीब होती है जितनी माँ बाप सिखाते हैं। पर हमारी बस्ती में तो माँ बाप को खुद को तहजीब नहीं है वो बच्चो को क्या खाक सिखायेंगे।
हमारे घर से तीसरे नम्बर पर जो मकान था वो कुछ परेशानियों के चलते बिक गया। उस मकान मे जो था वो हम लोगो में से एक था, और जो आया है वो नया और निराला है। सभी लोग सभ्य और शिक्षित हैं, पर हमें तो शिक्षित लोग भाते ही ना थे। उस घर के बच्चे अपने घर से बाहर नहीं निकलते थे, दिन भर पढ़ाई करते थे , और हम अपने घर के अन्दर नहीं जाते थे, दिन भर गलियों में हुड़दंग काटते थे। कभी किसी के घर शक्तिमान देखने घुस जाते थे, कभी किसी के घर बिक्रम बेताल देखने घुस जाते थे। कोई भी नई फिल्म आती थी तो उसके संवाद महिनो तक हमारी जुबान पर चढ़े रहते थे। ऐंसा ही एक संवाद दुल्हे राजा मूवी से था ( मुर्गी चोर ) जहा़ कहीं भी हमें कोई गंजा दिख जाता उसे मुर्गी चोर मुर्गी चोर कहकर चिढ़ाना शुरु कर देते थे।
एेंसे ही उस शिक्षित घर में एक मास्टर साब बच्चो को ट्यूशन पढ़ाने आते थे। उम्र साठ साल के पार थी डिलडौल भारी था, पैरो में गठिया का रोग था,नजर का चश्मा लगाते थे और बहुत पुराना लम्बा कॉट पहनकर आते थे, कॉट को देखकर ऐंसा लगता था जैंसे वो उनका पुश्तैनी कॉट है। मास्टर साब को देखकर ही पता चलता था कि वो बहुत अमीर परिवार से हैं उनके पास बड़ा सा घर होगा, गाड़ी होगी बच्चे सारकारी नौकरी पर होंगे। हमारे लिये मजे की बात यह थी कि उनके सिर पर एक भी बाल ना था। जब हमने उन्हे पहली बार देखा तो जोर से कहा 'मुर्गी चोर 'उन्होने कोई रियेक्ट नही किया। हमने फिर जोर से कहा ' अबे मुर्गी चोर, इस बार उन्होने पलटकर देखा, और हमारी तरफ देखकर हल्का सा मुश्कुरा दिये। उनका व्यवहार हमारी सोच के बिल्कुल विपरित था, हमने तो सोचा था कि वो हमें मारने के लियें हमारे पीछे दौड़गें। पर ऐंसा नहीं हुआ और जो हम चाहें वो ना हो ऐंसा हमे बर्दाश्त नहीं था। अगले दिन फिर मास्टर साब हमे दिखाई दिये और फिर से हमने उन्हे मुर्गी चोर -मुर्गी चोर कहना शुरु कर दिया पर आज भी वो हमारी तरफ देखकर मुश्कुरा दिये। उनकी मुश्कुराहट देख हम सभी बच्चे क्रोध की भट्टी में भुन गये, क्योकि यह हमारी लगातार दूसरी हार थी। पर अभी तो इस बैतुके, बेबुनियादी और बाह्मयाद खेल के बहुत से राउन्ड होने बाकी थे। तीसरे दिन फिर हमने उन्हे मुर्गी चोर- मुर्गी चोर कहकर चिढ़ाना शुरु कर दिया पर आज उन्होने हमे पलटकर नहीं देखा, और साथ ही उनके चेहरे पर गुस्सा भी दिखाई दिया, उनका गुस्सा देख हमारी खुशी सातवे आसमान पर थी, आखिर तीसरे दिन हमे सफलता मिल ही गई। और इस सफलता का सिलासिला कई दिनो तक चलता रहा, एक दिन घर का मालिक डन्डा लेकर आया और हमें दूर तक दौड़ा दिया, और काफी दैर तक हमें भला बुरा कहता रहा। हम समझ चुके थे कि उस मास्टर साब ने हमारी शिकायत नये मकान मालिक से की है। हमारी हँसी मजाक ने अब एक अलग ही तरह के युद्ध का रुप ले लिया था। हमे अब उस मास्टर साब से नफरत हो चुकी थी, हम चारो बच्चो ने अब प्रण लिया कि तब तक चुप ना बैठेंगे जब तक यह मास्टर यहाँ से भाग ना जाये।
अब तो 24 घण्टो में हमें सिर्फ उस पल का इन्तेजार रहता था , जिस पल वो मास्टर साब बच्चो को पढ़ाने आते थे, और जैंसे ही वो आते हम अलग अलग आवाज़ में उन्हे मुर्गी चोर - मुर्गी चोर कहना शुरु कर देते थे। वो एक के पीछे भागते तो दुसरा कहना शुरु कर देता, वो दुसरे को घुर्राते तो तीसरा कहना शुरु कर देता वो तीसरे को डाटते तो चौथा कहना शु्रु कर देता। चार चतुर, चालाँक, तेज, तर्रार बच्चो से एक उम्रदाराज व्यक्ति का जीत पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। अगर हमने किसी और को इतना तंग किया होता तो दो दिन में ही वो भाग गया होता पर ना जाने कौन सी मिट्टी का बना है यह मास्टर, हमारे इतना तंग करने पर भी वो रोज बच्चो को पढ़ाने आता है। पर हमने तो कसम खाई थी कि इसको यहाँ से भगाकर ही दम लेंगे सो हमारे प्रयत्न जारी थे । हमारी बद्तमिजी की सीमायें अब बड़ रहीं थी, मुर्गी चोर से बढ़कर अब हम उन्हे कभी उजड़ा चमन, कभी चम्बल का डाकू और कभी कभी तो सीधा गंजा कहकर ही चिढ़ाते थे। हमें यह सब खेल लग रहा था, हमें इस बात का तो कोई ज्ञान ही ना था कि अपने से छोटा जब अपशब्द बोलता है तो चुल्लू भर पानी मे डूबकर मरने का मन करता है और साथ ही हमे इस बात का भी कोई ज्ञान ना था कि शिक्षक को दुनिया में भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया गया है। और उसी भगवान का हम निरन्तर अपमान कर रहे थे।
मास्टर साब हमारे लियें एक ऐंसा खिलौना बन चुके थे जिसके छिन जाने पर या खो जने पर ह्मदय में आपार टीस होने लगती है।
एक दिन उस शिक्षित घर के मालिक ने हमारे घर पर हमारी शिकायत कर दी, हम सभी को बहुत मार पड़ी थी उस दिन। और उस मार का बदला हम उस मास्टर साब से लेना चाहते थे। हमने सोचा क्यों ना इस मास्टर को इसी के घर पर सबक सिखाया जाये। अगले दिन मास्टर साब बच्चो को पढा़ने आये तो हमने उनसे कुछ नहीं कहा हमने चुप चाप उनका पीछा किया, हम सभी कें हाथो में दो दो ईंटो के टुकड़े थे, मिशन था उसके घर के शीशें तोड़ना, उसके घर की गाडियों को नुकशान पहुँचाना और जोर जोर से उसके मोहल्ले में उसे मुर्गी चोर - मुर्गी चोर कहकर चिढ़ाना। हम उसके मोहल्ले में पहुँच चुके थे, जहाँ दो मन्जिला और तीन मन्जिला आलीशान मकान थे। और हर घर में एक चौकीदार था, घरो में चौकीदारो को देखकर हम सहम गये और हमारे हाथ के ईँट पत्थर हमने छुपा लिये । इस उम्र में हमे चौकीदारों और पुलिस में कुछ खास फर्क नहीं पता था, हम दोनो को एक बराबर समझते थे। मास्टर साब आगे आगे चल रहे थे और हम उनके पीछे पीछे। उस मौहल्ले में जो भी मास्टर साब को देखता वो सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर उनको नमस्ते कर रहा था। हर आदमी उनकी इज्जत कर रहा था, और वही इज्जत आज हम उतारने वाले थे, बस एक बार यह मास्टर अपने आलीशान घर में घुँस जाये। थोड़ी दूर चलकर हमें एक छोटा सा टुटा फुटा घर दिखाई दिया, जिसकी दीवारे ढहने को थी और छत गिरने को थी। मकान के बाहर एक पालतु कुत्ता बँधा था। मास्टर साब उसी मकान में घुँस रहे थे, हमने सोचा शायद यहाँ किसी गरीब बच्चे को ट्यूशन पढ़ाने आये होंगे। पर जिस तरहाँ वो कुत्ता उन पर लपका हम समझ गये की यह उन्ही का घर हैं। हम अचम्भित थे कि इस खण्डहर मकान में इतना अमीर आदमी क्यों रहता है। पर हमें यह ज्ञात ही ना था कि जिसके पास शिक्षा जैंसा अमुल्य धन हो वो कागजी धन वालो से ज्यादा धनवान दिखता भी है और होता भी हैं।
पर यह सब सोचने की हमारी उम्र ना थी, हम तो अपना बदला लेने आये थे। जैंसे ही हम मास्टर साब के घर की तरफ ईँट पत्थर मारने के लियें आगे बढ़े तो हमे देखकर कुत्ता भौँक पड़ा, और कुत्ते को भौँकता देख मास्टर साब ने पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें हम नजर आये, साथ ही कुत्ते की आवाज सुनकर दो चार लोग और भी इकट्ठा हो गये जो कि सभ्य और अमीर परिवार से थे। हमारे हुलियें को देखकर वौ हमें चोर समझ बैठे और लगे हमें लताड़ने , अपने आप को चारो ओर से घिरा पाकर हमारा सबसे छोटा साथी जोर जोर से रोने लगा तभी मास्टर साब बोले - रुको यह चोर नहीं है मै जानता हूँ इन्हें, यह तो मुझे यहाँ छोड़ने आये थे, और फिर हमसे बोले चलो बच्चो यहाँ तक आ ही गये हो तो चाय पीकर जाना। मास्टर साब के लफ्जो ने हमारे सिर को नीचे झुकने पर मजबूर कर दिया। यह तो हम पहले ही जानते थे कि मास्टर साब उदार, विनम्र, सभ्य और शिक्षित आदमी हैं पर हमारे ह्मदय मे उनके लियें इज्जत के द्वार आज खुले थे। उस दौरान हमें उतनी ही शर्मिन्दगी और पछतावा हुआ जितनी हमारी उम्र थी। हम सब ने चाय पीने से इन्कार कर दिया और हाथो के पत्थर फैंक कर घर की तरफ दौड़ लगा दी।
हम सभी अपनी भूल का प्रायस्चित करना चाहते थे। अगले दिन जैंसे ही मास्टर साब बच्चो को पढ़ाने आये हम सब बच्चे एक एक करके मास्टर साब के पास गये उन्हे हाथ जोड़कर नमस्ते किया और उनके पाँव भी छुए। मास्टर साब शायद यह सब कुछ पहले से ही जानते थे इसलियें उन्होने हर बच्चे को एक एक टॉफी खाने को दी। और इस तरह से कुछ चुलबुले शैतान बच्चों और सभ्य, शिक्षित मास्टर साब की दुश्मनी का अन्त हो गया।