सोनी सोरी
सोनी सोरी
सोनी सोरी का जन्म 15 अप्रैल 1975 में छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के एक छोटे से गांव बड़े बेड़मा के आदिवासी परिवार में जोगी सोरी और मुंडाराम सोरी के यहां हुआ।सोनी सोरी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई।बारहवीं तक की शिक्षा उन्होंने एक स्वयंसेवी संस्थान से हासिल की।
शिक्षा पूरी होने के बाद सोनी सोरी प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका के तौर पर नक्सल प्रभावित ग्रामीण इलाके में पढ़ाने लगीं।साल 2007–08 में गर्मी की छुट्टियों में सीआरपीएफ के जवान स्कूलों में ठहरने लगे।उस दौरान बस्तर में स्कूल को नक्सलियों द्वारा ध्वस्त किया जा रहा था।वेआसपास के सभी शिक्षकों को जनसभा में बुलाकर सीआरपीएफ बटालियन का विरोध करने को कहते। सोनी सोरी ने उनसे मुलाकात करके विरोध का कारण पूछा।
उन्हें स्कूल तोड़ने की वजह सीआरपीएफ बटालियन का महिला और पुरुषों के साथ हिंसा करना था। उन्होंने सोनी सोरी से कहा कि वे एक शर्त पर उनका स्कूल नहीं तोडेंगे कि वह स्कूल में सीआरपीएफ बटालियन को ठहरने नहीं देगी, यदि ऐसा नहीं हुआ तो सोनी सोरी को जन अदालत में सज़ा दी जाएगी। सोनी ने लगभग डेढ़ सौ बच्चों के लिए यह शर्त मान ली थी और इनके स्कूल,हॉस्टल को नक्सलियों ने छोड़ दिया। सोनी कहती हैं कि वह नक्सल से अपने विचारों से जीत गई लेकिन सरकार से नहीं जीत पाईं। सरकार उन पर ही शक करने लगी।
सरकार ने सोनी सोरी पर आरोप लगाया कि वह नक्सलियों से मिली हुई हैं।इसके लिए पुलिस ने सोनी के खिलाफ अलग-अलग मामलों में चार वारंट निकाले और उन्हें पूछताछ के नाम पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
2010 में 15 अगस्त के दिन नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में सड़क निर्माण में लगी एस्सार कंपनी की गाड़ियों को आग के हवाले किया और इसके कुछ समय बाद कांग्रेस के एक स्थानीय नेता पर हमला हुआ जिसमें उनके बेटे घायल हुए तब शक के आधार पर सोनी सोरी और उनके भतीजे लिंगाराम कोड़ोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ महीने बाद उनके पति को भी माओवादी समर्थक कहकर गिरफ्तार कर लिया गया था।
जेल में सोनी को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया गया।उन्हें जेल में नंगा करके बिजली के झटके दिए गए। अगले दिन जब उन्हें सुनवाई के लिए कोर्ट ले जाया जा रहा था ,उनकी हालात बिगड़ गई। की वजह से सोनी सोरी को रायपुर रेफर किया गया जहां हालात बेहद गंभीर होने पर उन्हें मेडिकल कॉलेज कोलकाता में इलाज के लिए भेजा गया। डॉक्टरों ने उनकी योनि से पत्थर के टुकड़े निकाले और यौन प्रताड़ना की पुष्टि की।
सोनी सोरी ने जेल में रहते हुए देखा कि कैसे पुलिस निर्दोष आदिवासियों को नक्सलियों के नाम पर जेलों में ठूंस रही है।ऐसी युवतियों को देखा जिनके साथ बलात्कार किया गया और नक्सली होने के नाम पर जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया।
आखिरकार 2014 में सोनी सोरी को रिहा कर दिया गया।उन पर लगे आठ मामलों में से छह मामलों में उन्हें निर्दोष पाया गया। जेल से बाहर आने के बाद सोनी ने अपने साथ हुए अत्याचार को आदिवासी महिलाओं के संघर्ष में बदलने का निश्चय किया और दोगुनी ताकत से आदिवासी महिलाओं को स्वयं का उदाहरण देते हुए उन पर हुई हिंसा और शोषण की शिकायत दर्ज़ करने को कहतीं।अपने इस प्रयास में वह कामयाब रही।
11 फरवरी, 2016 के दिन जब वह जगदलपुर से अपने घर लौट रहीं थी तब तीन अज्ञात लोगों ने उन पर केमिकल अटैक कर दिया जिससे उनका चेहरा पूरी तरह झुलस गया।सोनी सोरी संघर्षों की जीती-जागती मिसाल हैं।उन्हें तोड़ने के लिए उन पर अनेक अत्याचार हुए किंतु हर अत्याचार ने उनके संकल्प को और दृढ़ किया।
उनके साहस को देखते हुए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मानों से विभूषित किया गया। वर्ष 2018 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व के पांच लोगों के साथ सोनी-सोरी को “फ्रंट लाइन डिफेंडर्स अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स ऐट रिस्क” अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
सोनी सोरी का संघर्ष बस्तर में आज भी जारी है। बस्तर के गांवों से सैकड़ों किलोमीटर दूर जब हिंसा और मानवाधिकार हनन की खबरें उन तक पहुंचती हैं, तब वह दिन हो या रात निकल पड़ती हैं।
उनका कहना है कि जल, जंगल,जमीन का संविधानिक अधिकार आदिवासियों का है जिसे वह किसी भी ताकत को छीनने नहीं देंगी।
