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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

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महाशिवरात्रि पर्व

महाशिवरात्रि पर्व

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आज सभी बच्चे दादी जी को घेर कर बैठे थे "दादी जी आप किस व्रत की तैयारी इतने जोर शोर से कर रहीं हैं ?बाबा जी भी रामदीन काका जी से ठंडाई घोंटने को कह रहे थे ।बताइये न मम्मी जी से पूंछा तो वे कहतीं हैं जाके दादी जी से पूंछो मुझे तंग न करो ।"


"हां बेटा बस मैं काम से खाली हो गयी तुम सब को बताती हूं ।सभी को बरान्डे मैं इकट्ठा करो मैं हाथ धोकर आती हूं ।अपने-अपने मम्मी पापा जी को लेकर आना उनको भूल गयी हो तो दोहरा जायेगी ।जेड


"देखो बेटा मैने 2 अयन के बारे में एक दिन बताया था उत्तरायण व दक्षिणायन। 

गुजरात मे उत्तरायण पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है । अपने यहां उत्तर प्रदेश में खिचड़ी (मकर संक्रांति) के नाम से मनाया जाती है । शिवरात्रि के समय सूर्य के उत्तरायण होने से उत्तरायण चल रहा होता है । महाशिवरात्रि फागुन की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है ।


चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमजोर स्थिति में आ जाते हैं(चन्द्रमा की 16 कलायें होती हैं ) हमारी सृष्टि और समष्टि सूर्य व चंद्रमा पर केन्द्रित होती है। सूर्य हमारी ऊर्जा की शक्ति है । चन्द्रमा को सौन्दर्यबोध व हमारे विचार व मन का कारक माना गया है । 

हम सभी जानते हैं पृथ्वी के सबसे निकट चन्द्र ग्रह है , इसका प्रभाव हमारे जीवन और मानसिक स्थिति पर अधिक पड़ता है।


चन्द्रमा को शिवजी ने अपने मस्तक में धारण किया है । शिवजी की आराधना से चंद्रमा को मजबूती मिलती है चन्द्रमा मन का कारक है शुभ चन्द्र से इच्छा शक्ति मजबूत होती है और अंतःकरण में अदम्य साहस और दृढ़ता का संचार होता है ।


भगवान शिव की पूजा आराधना करने हेतु बसंत ऋतु की फाल्गुन मास की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव ने समुद्रमंथन से निकला हलाहल विष सृष्टि की रक्षार्थ स्वयं पी लिया था ।


वहीं दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था । फाल्गुन चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव ने वैराग्य छोड़कर पार्वती जी के साथ विवाह करके गृहस्थ जीवन की शुरुआत की थी। शिव और शक्ति या फिर पुरुष और आदिशक्ति यानी प्रकृति का मिलन।


इसी वजह से हर वर्ष फाल्गुन चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशी में महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त शिवालयों को सजाकर महाशिवरात्रि पर शिव जी की बारात व अन्य झांकियां निकालते हैं। 


 शिव पुराण के अनुसार शिवजी के निराकार स्वरूप का प्रतीक 'लिंग' शिवरात्रि की पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था। 


स्कंद पुराण में कहा है गया है कि आकाश स्वयं लिंग है, धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है 

महाशिवरात्रि का शिवत्व से घनिष्ठ संबंध है ।


तुलसीकृत रामचरितमानस में रुद्राष्टक की प्रथम पंक्ति में कहा गया है 


नमामीशमीशान निर्वाण रूपम 

विभुम् व्यापकम ब्रह्म वेदस्वरूपम । निजम् निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम् चिदाकाशमाकाश वासं भजेऽहम 


वह शिव परम तत्व परमात्मा, सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान है। ऐसा कोई स्थान नहीं जहां शिवतत्व ना हो ।उसमें आकाश, चेतना व समस्त ज्ञान विद्यमान है । वे निर्गुण निराकार निर्विकार हैं ।वह समाधि की वह अवस्था हैं जहां कुछ भी नहीं केवल आंतरिक चेतना का आकाश है। 


शिव तत्व ही समस्त सत्ताका मूल है इसी से उसे सत्यम शिवम सुंदरम कहा गया है शिव से ही सारी सृष्टि मन व शरीर हैं । सभी शिव तत्व से बनी हैं यहीं से सृजन पोषण और विलय है । 


महाशिवरात्रि शिवत्व की अनुभूति कराने का दिन व शिवत्व ऊर्जा गृहीत करने का महापर्व है ।


भवानी शंकरौ श्रद्धा विश्वास रूपिणौ याभ्यां बिना न पश्यंति ।

 सिद्धाः स्वानतःस्थमीश्वरम् । 


शंकर जी विश्वास हैं तो भवानी श्रद्धा दोनों की उपासना से ही सिद्धि या अंतःकरण में स्थित परमात्मतत्व के दर्शन होते हैं। शिवत्व अर्थात जीवन के बुरे तत्वों का संहार ईश्वर प्राप्ति का प्रमुख कारण है । शिव अकेले अपूर्ण है साथ में भवानी भी चाहिए शिव का अर्थ असुरता का संहार भवानी का अर्थ है भावनाओं का परिष्कार । विश्वास जगाना है तो श्रद्धा की शरण लेनी ही होगी ।


शिव स्वरुप का वर्णन


बच्चों आपने देखा होगा कि शिवजी की जटाओं में गंगा जी का वास होता है ।गंगा जी और क्या है ?गंगा जी ज्ञान की प्रतीक ।उनके मस्तिष्क में ज्ञान की गंगा बहती है और जटाओं में चंद्रमा का निवास वास है चंद्रमा मन की शांति है, उनका हमेशा मन शांत ठंडा रहता है। सर्पों की माला दुष्टो को कैसे काबू कर अपने गले का हार बनायें , मुन्डों की माला बताती है कि शरीर और कुछ नहीं मात्र हड्डियों के ऊपर मढ़ा हुआ चमड़ा है। यह हमेशा हमें याद दिलाता है सुन्दरता का कैसा घमण्ड।


उनका वाहन बैल परिश्रम का प्रतीक है अर्थात बिना कर्म परिश्रम कुछ नहीं मिलता शक्ति हिम्मत का प्रतीक है कि बिना परिश्रम के कुछ काम नहीं होता यदि हम को कार्य में सफलता प्राप्त करनी है तो हमें नंदी की सवारी परिश्रम को प्रधान बनाना ही पड़ेगा ,मरघट का वास मौत की बार-बार याद दिलाता है ।

तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है ।

मां पार्वती प्रतीक है


शक्ति, सुंदरता, देवत्व, दिव्य शक्ति, ऊर्जा, सुहाग, सद्भाव, प्रजनन क्षमता, प्रेम , विवाह, संतति की देवी एवम साक्षात् प्रकृति स्वरूपा,शिवानी (शिव की पटरानी), जगजननी , जगन्माता, महादेवी ।


उनका वाहन शेर बल व शक्ति का प्रतीक है अर्थात स्त्री को अबला समझने की भूल कदापि न करें वह काली चण्डी का रूप भी क्रोध में धार लेती है।


गाय का कच्चा दूध, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बेलपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, पुष्प, पंच फल,शमी रत्न, ,चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, मंदार पुष्प, गन्ने का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, शिव जी और मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री अपनी सामर्थ्यानुसार एकत्र कर मां गौरी शंकर जी के परिवार का ध्यान, पूजन आराधन करना चाहिए। 


कामनानुसार अलग-अलग वस्तुओं से रुद्राभिषेक किया जाता है । श्रंगी ( रुद्राभिषेक करने का पात्र जो चांदी पीतल तांबे की धातु का होता है ) पर यदि दूध से अभिषेक करना है तो चांदी का पात्र उत्तम माना जाता है ।बेलपत्र धोकर साफ कपड़े से पोंछकर उसमें राम-राम या ॐ नमः शिवाय चंदन से लिखकर चढ़ाते हैं । शिवरात्रि में चार पहर की आरती व रात्रि जागरण करने का विधान बताया गया है। रीढ़ हमारी ऊर्जा का केंद्र होती है इस दिन हम सीधे बैठकर के ऊर्जा तत्व प्राप्त करते हैं, बस यही मकसद रात्रि जागरण का होता है ।


यह साधना का दिन है वह हमें काम, क्रोध, लोभ ,मोह, मद, मत्ससर आदि मानसिक विकारों से मुक्त कर सुख , शांति ,स्वास्थ्य ,शिवत्व (कल्याण प्राप्ति) का वरदान देते हैं । हमारा मन एकाग्र होने लगता है । भीलराज की पौराणिक कथा आप सब को पता ही है । अब शान्तिपूर्वक सभी भोजन कर लो ।प्रातः जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त हो ॐ नमः शिवाय का व महामृत्युंजय का जप कर सायंकाल सबके साथ बैठकर हवन करना "।


दादी जी शुभरात्रि कह कल के सपने आंखो में संजोये सोने चले गये ।

       




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