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Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

3.2  

Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

जीवन बहती धारा

जीवन बहती धारा

3 mins
8.8K


मि.गुप्ता के कैफे में प्रवेश करते ही उन्हें अपने दोस्तों का ज़ोरदार ठहाका सुनाई पड़ा। उन्हें देखकर मि.खान बोले,

"आओ भाई सुभाष आज देर कर दी।"

मि.गुप्ता ने बैठते हुए कहा,

"अरे अभी तक रघु नहीं आया। वो तो हमेशा सबसे पहले आ जाता है।"

मि.मसंद को जैसे मौका मिल गया। ताली बजा कर बोले,

"हाँ हर बार सबसे पहले आता है और हमें देर से आने के लिए आँखें दिखाता है। आज आने दो बच्चू को। हम सब मिलकर उसकी क्लास लेंगे।"

एक बार फिर संयुक्त ठहाका कैफे में गूंज उठा।

तीनों मित्र रघु मेहता का इंतज़ार कर रहे थे। मि.मेहता ही थे जिन्होंने चारों मित्रों को फिर से एकजुट किया था। चारों कॉलेज के ज़माने के अच्छे मित्र थे। कॉलेज में उनका ग्रुप मशहूर था किन्तु वक़्त के बहाव ने इन्हें अलग कर दिया। रिटायरमेंट के बाद मि.मेहता ने खोज बीन कर बाकी तीनों को इकट्ठा किया। इत्तेफाक से सभी मित्र एक ही शहर में थे। सभी पहली बार इसी कैफे में मिले थे। उसके बाद यह कैफे ही उनका अड्डा बन गया। हर माह की बीस तारीख को सभी यहीं मिलते। आपस में हँसी मजाक करते। कुछ पुरानी यादें ताज़ा करते। मि.खान की शायरी और मि.मसंद के चुटकुले इन महफिलों में चार चाँद लगाते थे। इस तरह वक़्त कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता था।

मि.खान ने अपनी घड़ी पर नज़र डालते हुए कहा,

"यार आज तो बहुत देर हो गयी, रघु अभी तक नहीं आया।"

मि.मसंद ने भी चिंता जताते हुए कहा,

"हाँ यार जावेद ठीक कह रहा है। ठहरो मैं फोन करके देखता हूँ।"

मि.मसंद अपना फोन निकाल ही रहे थे कि मि.गुप्ता ने उन्हें रोकते हुए कहा।

"ठहरो नवीन, ज़रूर कोई खास बात होगी वरना रघु अपने नियम का पक्का है। उसके घर चलकर ही देखते हैं।"

मि.खान ने भी उनकी बात का समर्थन किया। तीनों मित्र मि.मेहता के घर चल दिए।

मि.मसंद ने काल बेल दबाई। दरवाज़ा मि.मेहता की बहू ने खोला। तीनों अन्दर जाकर बैठ गए। बहू ने बताया की पंद्रह तारीख को अचानक मि.मेहता को दिल का दौरा पड़ा। उन्हें फौरन अस्पताल ले जाया गया। वहाँ पहुँच कर उन्होंने दम तोड़ दिया। अपने मित्र की अकस्मात् मृत्यु की खबर सुनकर तीनों मित्र स्तब्ध रह गए। कुछ देर ठहरने के बाद वो कैफे में वापस आ गए।

कुछ देर शांति छाई रही। इस मौन को तोड़ते हुए मि.मसंद बोले।

"अब ........"

"अब क्या नवीन अगले महीने बीस तारीख को हम फिर मिलेंगे।"

मि.गुप्ता ने एक निर्णय के साथ कहा,

"लेकिन रघु तो रहा नहीं।"

मि.खान ने हिचकिचाते हुए कहा,

"तो क्या , हमने कोई पहली बार किसी अपने को खोया है। हम दोनों ने अपनी पत्नियों को खोया है। नवीन ने तो अपने जवान बेटे की मौत का दुःख झेला है। मिलना और बिछड़ना तो जीवन का हिस्सा है। किन्तु जीवन तो बहती धारा है। सोंचो तो रघु ने कितनी मेहनत की थी हमें एक साथ लाने के लिए। पता नहीं अगली बारी हम में से किसकी हो किंतु जब तक हैं यूँ ही एक दूसरे का सुख दुःख बाटेंगे। पहले की तरह ही हम यहाँ मिलेंगे। हंसी मजाक करेंगे। हमारे मित्र को हमारी यही सच्ची श्रद्धांजली होगी।"

यह कह कर उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। तीनों मित्रों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर संकल्प किया कि वो एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। अगली बीस तारीख को मिलने का वादा कर तीनों अपने अपने घर चले गए।


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