कलंकिनी
कलंकिनी
"सोना अरी रुक तो, आप क्या कर रहे हैं रोकिये उसे। "
"क्या करती हो विभा ? बच्ची है अभी इतना रोक- टोक करती ही क्यों हो कि बच्चे बाग़ी हो जाएँ ? "
"बच्ची बोल कर बिगाड़ रहे हैं। बीस की हो गयी। अब एक -दो साल में ससुराल जाएगी|कलंक लगाएगी, देखना !"
"माँ होकर क्या अनाप -शनाप बोलती हो ? "
"चौठ का चाँद, कलंकित करता है !"
"मेरी बिटिया खुद चौदवीं का चाँद है। इसका ब्याह तो राजकुमार से करूँगा....। मैं भी देखूं कौन कलंकित करता है !"
सुरेशचंद्र बोले। उनकी तूती बोलती थी। जिलाधिकारी थे। घर में भी अच्छा खासा रुतबा था। 5 बच्चों में सबसे छोटी सोना यानि सोनाक्षी। आन -बान -शान बिलकुल पिता की तरह, जो चाहती वह करके ही मानती। बड़ी बहनो की शादियां हो चुकी थी और भैया भी आईएएस बन गया था। गणेशचौठ बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा था, इस आलीशान कोठी में क्यूंकि कुलदीपक आईएएस बनने के बाद, पहली बार घर आ रहा था। पूरा परिवार खिलखिला रहा था और हवेली उनके हँसी की खनक से झंकृत हो उठी थी।
ऐसा वैभवशाली था सोनाक्षी का परिवार, पर हम सोना को अलग कारणों से जानते थे। हमारे बैच की सबसे खूबसूरत लड़की, जो कि सबसे हैंडसम लड़के यशवर्धन की महबूबा थी। हम आते -जाते चुहल करते। यार! आज पिया मिलन ट्री की रौनक कैसी है ? लतिका सबसे शरारती थी। एक शरारत पूर्ण जवाब देती "एक्स्ट्राज ही हैं वहां मेन हीरो -हीरोइन (यश -सोना) का आना बाकी है।
दोनों आँखों -आँखों में घंटों बातें करते। बाहर नहीं मिलते थे। परिवार लोकल होने से दोनों को ही खतरा था पर इश्क़ और मुश्क़ छुपाये नहीं छुपते। परिवार जनों को भनक लग ही गयी। सोना क़ैद कर ली गयी।
यश कभी हॉस्टल के तो, कभी उसकी गली के चक्कर लगाये जा रहा था। अपनी चौदवीं के चाँद को देखे बिना, कुम्हला सा गया था। हम सब फाइनल ईयर में आ गए थे और लतिका की शादी तय हो गयी थी। इसी शहर में हो रही थी। बस हम सखियों ने दोनों को मिलाने की योजना बनायीं। सोना को शादी में शामिल कराने के बहाने से उसके घर से लेकर आयीं और यश से मिलाया।
एक आत्मिक संतोष हमें भी था कि दो प्यार करने वाले एक हो गए थे। दोस्तों के साथ के बल पर, अगले ही दिन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर लिया था और इसके साथ ही दोनों ही घरों के दरवाज़े इनके लिए बंद हो गए थे !हमें लगा था 2-4 महीनों में घरवाले अपना लेंगे पर यहाँ तो पूरी फ़िल्मी कहानी बन गयी थी। झुकने नहीं बल्कि झुकाने पर आमदा थे सभी।
हम सब की पढ़ाई ख़त्म हो गयी और सोना और यश के प्यार के किस्से भी धुँधली याद बनकर जेहन में दब कर रह गए|इन बातों के बीसियों साल गुज़र जाने के बाद, सभी अपनी उलझनों में उलझे थे कि एक दिन लतिका ने फेसबुक से no लेकर मुझे फ़ोन किया|तमाम खट्टी -मीठी बातों के साथ हीरो -हेरोइन का जिक्र भी करने लगी।
मैंने पूछा " तुम भूली नहीं ?"
" कैसे भूलती,मेरी और उसकी शादी की तिथि आस -पास जो थी। "वह सोना से मिलकर आयी थी। भाव -विवह्ल होकर उसकी उसकी प्रेमकहानी का दुःखद अंत जो मुझे बताया, आपको बताती हूँ !
शादी के बाद पति के साथ, जब पिता के घर पहुंची तो दरबान ने अंदर नहीं जाने दिया। बड़े साहब की हिदायत थी। एक झटके में सब कुछ बेगाना हो गया था। आंसुओं में पूरा चेहरा डूब गया था। फिर पति के घर गयी वहाँ भी सहारा ना मिला। घर से भागी हुयी लड़की के लिए दोनों ही राजपूताने में एक भी कोना ना था, जहाँ सर छुपा पाते।
ऐसे में यश के एक दोस्त तिलक ने उसे रहने की जगह दी। वह एक आईएएस की कोचिंग चलाता था वहीँ काम भी मिल गया था। सोना की खूबसूरती का दीवाना उसे ज्यादा देर अकेला ना छोड़ पाता। एक दो बार परिस्थितियों से घबड़ाकर, अपने परिवार वालों से मिलने व सामंजस्य बनाने की कोशिश भी की, पर नाकाम रहा। दोनों अपने परिवारों में छोटे थे। उनके बिना उनके घरवालों ने जीना सीख लिया था।
दोनों कोचिंग इंस्टिट्यूट में ही रहने लगे। बीच -बीच में जब भी यश घर गया उसे सोना को छोड़कर, वापस आने के लिए कहा गया। वह अंदर से टूट रहा था। घर के बड़ों का व्यवहार व तिरस्कार भूलने के लिए शराब का सहारा लेने लगा। यार दोस्त साथ बैठते, वहाँ सोना संकोचवश कुछ कह ना पाती। सबको घर जाना था, तो वे एक सीमा के अंदर ही लेते पर यश ने तो जैसे अपने लिए 'हैंग टिल डेथ' की सजा मुकर्रर कर ली थी। तबतक पीता, जबतक होश रहता।
कुल सात वर्ष निकल गए। सोनाक्षी खुश रहती। लड़कियों का मन -दिमाग ऐसे ही बना होता है कि उन्हें घर छोड़ना ही है। पर लड़के अपने घर पर अपना एंटाइटलमेंट समझते हैं उसे अपने घर, जमीन जायदाद से बेदखल किया जाना बिलकुल रास नहीं आ रहा था। उसके परिवार का अच्छा -खासा कारोबार था। अपनी सोना के लिए कैसे -कैसे ख्वाब सजाये थे। उसे ऐसे संघर्ष करता देख वह खून के आंसू रोता। डिप्रेशन बढ़ती जा रही थी। इस बीच दो बेटियों का बाप बना। सोना ने अब समझाना शुरू किया था कि बच्चियों को देखे। उनका भविष्य संवारना है। सोना के आगे सब समझता पर रात में फिर वही शराब,परिवारों से निकाले जाने का गम और जाने क्या क्या।
अपनी जिंदगी से जैसे उसे मोह ही नहीं रह गया था। वह उसे और भी गलाये जा रहा था| |इस बार जब बीमार पड़ा तब डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया था। किडनी ख़राब हो चुकी थी। इलाज बहुत खर्चीला था। एक बार फिर अपना मान -स्वाभिमान को दरकिनार कर सोनाक्षी ने माता -पिता के द्वार खटखटाये !पर उसे तो 'कुल कलंकिनी'की उपाधि देकर, सबने पीछा छुड़ा लिया था।
उसके यश ने उसकी पहलु में दम तोड़ दिया था। पर उसकी आँखों में आँसू ना थे। बस सीने में दर्द था और थे माँ के बोले गए चंद शब्द "चौठ का चाँद मत देख सोना, कलंक लगेगा। "
"खुद में बुदबुदा उठी। अब और कैसा कलंक माँ !अपनी निगाहों में खुद कलंकिनी हूँ, नेरी वजह से आज मेरे पति, 'मेरे यश 'ने मेरी गोद में दम तोड़ दिया !"
दो मासूम बच्चियों के अलावा, एक और गवाह था जिसकी नज़रों में वह बेगुनाह थी। 'आश्विन 'कोई 24 -25 वर्ष का नवयुवक, तिलक का भतीजा था। वह भी कोचिंग में पढ़ाता और इनके साथ ही रहता था।
यश को खोकर तो जैसे आँखों की रौशनी ही खो दी थी,रोती हुयी फिर एक बार ससुराल पहुंची पर उसे दो बेटियों के साथ स्वीकार करना तो दूर किसी ने पानी तक ना पूछा। उलटे यश की मौत का जिम्मेवार बता कर घर से निकाल दिया गया। सोचा जिस बाबा के गोद में खेली है वो तो उसे इस कठिन घड़ी में अवश्य सहारा देंगे पर वहाँ भी सबके दिलों में नफरत ही थी |बड़ी बेटी पांच साल की और छोटी दो साल की थी। जोकि अश्विन के सीने से चिपकी हुयी रोये जा रही थी। आश्विन पानी की बोतल खरीद कर लाया और पास के ही एक मंदिर में चारो बैठे।
एक ही रात के वैधव्य ने चाँद को मलिन कर दिया था। आँखों को देख कर लगता जैसे वो जन्मों से सोयीं नहीं। आश्विन ने कहा कि वह कुछ खाने के लिए लाने जा रहा है। छोटी रो -रो कर साथ जाने की जिद्द करने लगी। बड़ी ही कठिन घड़ी थी। माँ के दरबार में बैठी वो देवी माँ से बात करने लगी।
"क्या करूँ मैं ? कहाँ जाऊं ? मुझ बेसहारा को कौन सहारा देगा ? "माँ को निहारती हुयी उसकी आँखे लग गईं थीं|
तभी आश्विन अपने साथ अपनी विधवा माँ को लेकर लौटा। उन्होंने सोनाक्षी के माथे पर हाथ रख कर उसे घर चलने के लिए कहा। सोनाक्षी तो एक ज़माने से ममता के लिए तड़पी हुयी थी। उनके चरणों पर गिर पड़ी। उन्होंने उसे उठा कर ह्रदय से लगा लिया। और बोली "बेटी !आश्विन मेरे कोख में था जब इसके पिता को मैंने खो दिया था। छोटी वयस का वैधव्य क्या होता है ये मुझसे बेहतर कौन जानता है। ऊपर से दो मासूम बच्चियों का साथ है। तू मेरे साथ चल, मेरी बेटी बन कर रहना!"
उनकी स्नेहवर्षा ने सोनाक्षी को सर से पावं तक सराबोर कर दिया था। वह उनके साथ चल पड़ी। उन्होंने अच्छा मुहूर्त निकाल कर उसे बेटी से बहु बना लिया था। सोनाक्षी को नया जीवन मिल गया था। एक वर्ष बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया। बहुत धूमधाम से जन्म समारोह का आयोजन किया गया|उस दिन के बाद किसी ने सोना को उदास नहीं देखा। नवीन सहचर आश्विन ने, जो कि उसके सभी संघर्षों से वाकिफ था, महादेव के समान उसके दुखों को अपनाकर अपने पवित्र शीतल प्रेम से, उसके तप्त ह्रदय को ठंढक पहुंचा दिया था। उसे हमेशा के लिए ममता व प्रेम की घनी छाँव मिल गयी थी ! आज उसके तीनों बच्चे वेल सेटल्ड हैं यह जानकर हम सखियाँ संतुष्ट हो गयी थीं !