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kacha jagdish

Inspirational

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kacha jagdish

Inspirational

रिश्ता

रिश्ता

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मेघा और विनोद की शादी हुए अभी एक डेढ़ साल ही हुआ है, लेकिन नौबत तलाक होने पर आ पहुंची है। दोनों ने अपनी मर्जी से शादी की थी, माना के अरेंज मैरिज थी लेकिन उन पर कोई दबाव नहीं था। दोनों ने एकदूसरे को पसंद करने के बाद ही शादी करने के लिए हामी भरी थी। तो फिर आज क्या हो गया जो तलाक की बात हो रही है? ये सवाल दोनों के परिवारों के मन में था। मेघा का परिवार उसे लड़ रहा था शादी निभाने के लिए वहीं विनोद का परिवार उसे समझा रहा था शादी बचाने के लिए। इस सबका असर उन पर उल्टा पड़ रहा था, बात बनने की जगह बिगड़ती जा रही थी और दोनों के झगड़े बढते जा रहे थे। दोनों एकदूसरे से बात करने को भी राजी नही थे। जैसे-तैसे करके दोनों के परिवार ने दोनों को एक छत के नीचे रखा था। लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे थे। सबको इसी बात की चिंता खाये जा रही थी आगे क्या होगा?? दोनों में से एक भी मानने को तैयार नहीं था। दोनों में फासले बढते ही जा रहे थे। अब दोनों के परिवार ने भी उनके सामने घुटने टेकने शुरू कर दिये थे। सब लोग मायूस हो चुके थे। इसी बीच दिवाली शुरू होने को है, लेकिन किसी के भी मुंह पर खुशी तो छोड़ो दुनिया को दिखाने के लिए झूठी मुस्कान भी उनके चहेरे पर नही है। 


विनोद का परिवार जहां उनकी सोसायटी में नाम रखता है, वहां मेघा का परिवार अपने खानदान में। मेघा के खानदान की किसी भी लड़की का आजतक तलाक नही हुआ है। यह सब सोचते ही मेघा की माँ का दिमाग फटने लगता था। सबको दोनों के रिश्ते की चिंता थी ही, अब साथ में दिवाली आने पर लोगों पता चलने का और बातें बनाने का भी डर लगने लगा। दोनों परिवारों के सभी लोगों के दिन इसी टेंशन में कट रहे थे। इसी बीच गांव से विनोद की दादी का फोन आता है दिवाली की शुभकामना देने के लिए। विनोद की माँ से रहा नहीं गया और उन्होंने विनोद की दादी को सब सच बता दिया और रोने लगी। दादी ने विनोद की माँ को हौसला देते हुआ कहा मेरी टिकट करवा दे मैं वहां पर आ रही हूँ। यह सुनते ही विनोद की माँ बोली, दोनों में से एक भी सुनने को तैयार नहीं है तो आप यहां आकर करेगी क्या? मैं वह सब देख लूंगी, तू बस टिकट करवा दे। यह बात विनोद की माँ ने विनोद के पिता को बताई। यह सुनकर वह ज्यादा नहीं लेकिन थोड़े खुश होकर सोचने लगे कितने साल हो गये माँ को आये हुए। और तो और दिवाली का मौका भी है। उन्होंने ने तुरंत ही टिकट करवा दी। 


दिवाली के त्योहार शुरू होने के एक दिन पहले शाम को दादी घर पहुंची।घर पहुंचकर पहले उन्होंने सारी बात अच्छे से जान ली। उन्हें जानकर हैरानी हो रही थी की किसीको भी झगड़े का असली कारण पता नहीं था। उन्होंने दोनों को कुछ नहीं कहा लेकिन उनका एक मत था की रिश्ते इतनी आसानी से नहीं तोडे जाते। माना कभी-कभार मतभेद, मनभेद हो जाता है लेकिन इसका ये मतलब नही की रिश्ता तोड़ दिया जाये। रात को जब सोने की बारी आई तो उन्होंने जानबूझकर मेघा के कमरे में सोने के लिये कहा। परिवार के सब लोग मना कर रहे थे लेकिन वह नही मानी। 


अगली सुबह सब अपने रोजमर्रा के काम में लगे हुए थे। वो उन दोनों को ही देख रही थी, मन ही मन सोच रही थी कि "क्या हुआ होगा?" दोपहर को जब घर के सभी लोग आराम करने गये तो वो भी मेघा के कमरे में उसके साथ आराम करने को चली गई। थोड़ी देर बाद उसके साथ बात करना शुरू कर दिया। पहले तो वो मेघा के past के बारे में बात करने लगी। मेघा भी बड़े मजे से सब कुछ बताने लगी। बात बात में बोल पड़ी की पिछले कितने दिनों से सब सुनाये जा रहे है या समझाये जा रहे है। लेकिन कोई सुनने को ही तैयार नही के मैं क्या कहना चाह रही हूं। तू उन सबको छोड़ मुझे बता क्या कहना है। 


मेघा बोली, " कहने जितना इतना ही है कि मुझ में बस उसे कमियां ही दिखती है।" 

"भला, मैं भी तो सूनू क्या कमी है तुझमें।"

"वो कहता है, तुम पढी लिखी तो हो लेकिन पढना लिखना तुम्हारे किसी काम का नही। उसे तो बस उसके दोस्त की बीबी ही सबसे समझदार लगती है। कहता है, आज के जमाने की नारी है, अपने पति से कंधे से कंधा मिलाकर चलती है। अपने पति के ही काम में पार्टनर भी है। उसमें मेरी क्या गलती है की मेरी और विनोद की पढ़ाई अलग है। माँ से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा, किस बात की कमी है घर में जो तुम्हें बाहर जाना पडे। 

"बात तो सही है। हमारे घर में पिछले कई पीढ़ियों से पैसे की कमी नहीं देखी। वो तो विनोद के पिता का मन था इसलिए यहां रह रहा है, वरना गांव में आज भी इतनी संपत्ति है किसी भी बुरे हालात से निपटा जाए।" दादी तसल्ली के लिए एक बार और पूछती है, " बस, इतनी ही बात है?" 

"देखा जाये तो 'हां'। जब कभी हमारे बीच बात होती है तो यही बात होती है और लडाई होने लगती है। आखिर मैं भी तो इंसान हूं कब तक ये सब सह सकती।"

दादी मौन हो जाती है और मन ही मन सोच ने लगती है, इसके मन की बात जान ली। अब विनोद के मन की बात जाननी बाकी है। 


दादी विनोद के घर आने के बाद मौका ढूंढ रही थी बात करने का लेकिन वह चाहती थी कि अकेले में बात हो। वह मौका उसे सबके सो जाने के बाद मिला। जब विनोद अकेले टीवी देख रहा था। दादी विनोद के पास गई और बोली, "आखिर तुम दोनों के बीच चल क्या रहा है?" विनोद समझ गया कि किस बारे में बात हो रही है। "कुछ बोलो उसे बुरा लग जाता है।" बस इतनी सी बात है, दादी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली। विनोद ने जवाब हां में दिया। 


अगली सुबह जब सब लोग ब्रेकफास्ट करके अपने काम को जा रहे थे तभी दादी ने विनोद को रोका।

दोनों को साथ में बिठाया, और अपनी बात दोनों के सामने रखी। तुम दोनों अलग होना चाहते हो, मैं तुम्हें रोकूगी नही। लेकिन उसे पहले मेरी बात सून लो, रिश्ता इस तरह तोड़ना ठीक बात नही। किस रिश्ते में लडाई नही होती, थोड़ी अनबन हर रिश्ते में होती है। इसका यह मतलब नहीं की रिश्ता तोड़ लो। अगर तुमने उसके दोस्त की बात विनोद की माँ से कही होती तो आज ये नौबत नहीं आती। और कहा इन दोनों से बात करके जो मैं समझी हूं वो यह है की विनोद दूसरो की तुलना मेघा से करता है जो उसे पसंद नहीं है और झगड़ा भी इसी बात का है। 


मेघा इसकी बातें दिल पर मत लिया करो। दसवी के बाद जब भी आगे की पढ़ाई के बारे में पूछते थे, तब बड़े अकड़ के कहता था। मैं जानवरों का डॉक्टर बनूंगा लेकिन एक दिन जब गल्ली के कुत्ते का इलाज करने गया और वो कुत्ता उसके पीछे भागा तब से उसने उस गली में जाना छोड़ दिया। घर के सब लोग हसने लगे। 


रिश्ता है कोई बंधन नही। अनबन हर जगह होती है। इसका मतलब रिश्ता तोड़ दे ये सही नहीं। लडाई हो रही है तो एकदूसरे से बोलना छोड़ दो, लेकिन रिश्ता मत तोडो। थोड़े दिनों में देखोगे अपने आप ठीक होने लगेगा। फिर भी नही बनती तो दोनों अपनी अपनी दुनिया में रहो। इससे कम से कम झगड़े तो कम हो ही जायेंगे। 



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