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Shailaja Bhattad

Inspirational

5.0  

Shailaja Bhattad

Inspirational

बदलाव

बदलाव

2 mins
567


"मां, सड़क पर इतने छोटे-छोटे कागज क्यों कर बिखरे पड़े हैं?" दुकान से लौटते हुए भक्ति ने उत्सुकता वश पूछा और झुककर पढ़ने के लिए 2-4 उठा लिए । "यह क्या मां, ये सारे के सारे तो इस परचून की दुकान के बिल हैं।" "समझी, यानी लोग सामान खरीदने पर दिए गए बिल को पढ़कर डस्टबिन में डालने की बजाय सड़क पर कहीं भी फेंक कर आगे बढ़ जाते हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा और लोग एक दूसरे को देख कर रोज यूं ही सड़क पर बिल फेंकते रहे तो दस एक दिन में तो पूरी सड़क पर बिल ही बिल नजर आएंगे । है ना मां" , "हां बेटा ये सारे बिल न जाने अब और कौन सी नई बीमारी का कारण बने। जानवर तो कभी कभी इन्हें खा भी लेते हैं । मां तो फिर इन्हें कोई रोक क्यों नहीं रहा है। यह तो सबकी आंखों के सामने ही हो रहा है । करना सभी चाहते हैंI भक्ति, लेकिन आगे कोई नहीं आना चाहता।"

"अच्छा मां! क्या मैं अपने मित्रों के साथ मिलकर कुछ करूं।"

" हां, हां जरूर, क्यों नहीं ।"

अगर समझाने का तरीका सही हो तो लोग कही बात को अपना लेते हैं।

"तो ठीक है माँ हम ऐसे ही करेंगे।" भक्ति ने अपने मित्रों के साथ पहले कुछ पन्नों को प्रिंट करा कर दुकान के बाहर चिपकवा दिया। जिन पर रंगीन चित्रों के माध्यम से बताया गया कि, लोग क्या कर रहे हैं। फिर क्या करना चाहिए और उन बिल्स को जानवरों द्वारा खाते हुए बताया गया। अंततः सड़क पूरी तरह से बिल से भरी है , दिखाया गया ।  


बच्चों को लगा कि पेम्पलेट को चिपकाना ही काफी नहीं है। अतः दुकान के आसपास वे बारी-बारी से कुछ समय बिताने लगे और ग्राहकों से उसे पढ़ने का निवेदन करने लगे। कुछ तो समझ रहे थे अतः बिल को डस्टबिन में डालने लगे। जो पढ़कर भी नहीं समझे अर्थात् जिनकी सोच अभी भी बीमार थी । उन्होंने जैसे ही बिल को जमीन पर फेंका, बच्चों ने कहा हमें दे दीजिए हम डस्टबिन में डाल देते हैं। तो वे झेंप गए। और चुपचाप डस्टबिन में डालकर नजरें झुकाए वहां से चले गए। दो-चार दिन में सब सामान्य हो गया। लेकिन बच्चों ने आपस में निर्णय लिया कि हमें बीच-बीच में ध्यान देते रहना होगा ताकि यह हमेशा सामान्य-सा ही चलता रहे।

एक अच्छी सोच समाज का उद्धार कर सकती है। वहीं एक बुरी सोच समाज को काल का ग्रास भी बना सकती है।



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