तू बोलेगी मुंह खोलेगी तब ही तो ज़माना बदलेगा
तू बोलेगी मुंह खोलेगी तब ही तो ज़माना बदलेगा
"अरे यार ,ये फिल्म वाले भी ;कुछ भी दिखाते हैं .ऐसा कहाँ होता है ?आजकल तो जितनी सुविधाएं और अवसर महिलाओं को मिल रहे हैं ;उतने तो पुरुषों को भी नहीं। अब तुम्हें ही देख लो ;तुम्हें बाहर जाकर काम करने की अनुमति दे ही रखी है। ", शानू के पति सुबोध ने 'गुंजन सक्सेना कारगिल गर्ल ' मूवी देखते हुए शानू से कहा।
तब ही सुबोध ने फिर कहा ,"यार जाओ ,कॉफ़ी बना लाओ। बिना कॉफ़ी के मूवी देखने में मज़ा नहीं आता। "शानू बिना कुछ बोले किचन में चली गयी थी।
शानू की सरकारी नौकरी थी ,वह राज्य सरकार में लिपिक (एलडीसी ) थी। उसके पति सुबोध एक सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर था। शानू की नौकरी शादी से पहले ही लग गयी थी ;अतः सरकारी नौकरी छुड़वाने का तो सवाल ही नहीं उठता था। शानू घर का सारा काम करके ही ऑफिस जाती थी और आते ही फिर उसे घर के काम में लगना पड़ता था। शानू को कई बार रोना आ जाता था ;उसे लगता था कि जब ईश्वर को औरतों के हिस्से में पुरुषों से ज्यादा काम देने ही थे तो उन्हें समय भी ज़्यादा देना चाहिए था। 24 घंटे की जगह, 25 घंटे दे देते तो क्या बिगड़ जाता।
शानू मग में कॉफ़ी फेंटने लगी और वह सोच रही थी कि ," वहाँ सुबोध आराम से मूवी देख रहे है और मैं कॉफ़ी बना रही हूँ। फिर भी सुबोध को यही महसूस होता है कि महिलाओं को कितनी सुविधाएं दे रखी हैं। समान अवसर दे रखे हैं .महिलाओं के कर्तव्य पुरुषों से ज्यादा हैं ,लेकिन अधिकार तो न के बराबर हैं .अधिकार की मांग करो तो बोल दिया जाता है और क्या चाहिए इन महिलाओं को ?"
सुबोध ने कितने आराम से कह दिया कि ," तुम्हें बाहर काम करने की अनुमति तो दे रखी है। " स्त्री हूँ न ;इसलिए पुरुष की अनुमति चाहिये। क्या सुबोध को कभी घर आने या घर से जाने के लिए मेरी अनुमति लेनी पड़ती है। फिर भी पुरुष कितनी आसानी से कह देते हैं कि तुम औरतों को और क्या चाहिए ?
शानू सोच रही थी कि ," मूवी में ठीक ही दिखाया है। कुछ भी तो गलत नहीं दिखाया।ऑफिस में हम स्त्रियों को बार -बार अपने आपको साबित करना पड़ता है .पुरुष भी कामचोर होते हैं ;उनसे भी गलतियां होती हैं ;लेकिन तब कोई नहीं कहता कि इन पुरुषों को तो घर ही सम्हालना चाहिए .नौकरी इनके वश का नहीं .लेकिन स्त्री को तुरंत कह दिया जाता है ;घर ही सम्हालो ;नौकरी तुम्हारे वश की नहीं "
उसे अपने ऑफिस में घटी घटना याद आ गयी थी ;जब वह नयी -नयी अपने ऑफिस जाने लगी थी तो वहां अधिकारीयों के तो अपने -अपने रूम के साथ वाशरूम थे। लेकिन कर्मचारियों के लिए एक ही वाशरूम था। स्त्री -पुरुष दोनों के लिए एक कॉमन वाशरूम ही था। वह अकेली ही महिला कर्मचारी थी। अपने लिए एक अलग वाशरूम उपलब्ध करवाने के लिए उसने कभी कहा भी नहीं। क्यूंकि उसकी हिम्मत ही नहीं हुई थी।
वह कॉमन वाशरूम ही उपयोग करती थी। एक दिन जब वह वाशरूम गयी तो दरवाज़ा खुला हुआ था और वह एकदम से घुस गयी ;अंदर कोई पुरुष कर्मचारी था। शानू की किस्मत अच्छी थी कि पुरुष कर्मचारी की पीठ दरवाज़े की तरफ थी। शानू वहाँ से फ़ौरन भागी ;वह शर्मिंदगी और बेचारगी का अनुभव कर रही थी। गलती पुरुष कर्मचारी की थी ;फिर भी शर्मिंदा वह हो रही थी। लेकिन हमारे समाज का तो सदियों से यही दस्तूर चला आ रहा है। गलती चाहे पुरुष करे या महिला ;सजा और शर्मिंदगी दोनों ही महिलाओं के हिस्से में ही आती है।
शानू ने भी अपने आपको सज़ा दी और उस दिन के बाद से ऑफिस में वाशरूम का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। वाशरूम न जाना पड़े ;इसलिए उसने ऑफिस में कुछ भी खाना -पीना बंद कर दिया था। शानू समस्या किसी से शेयर भी नहीं कर सकती थी।
शानू की किस्मत अच्छी थी ;उसके ऑफिस में एक और महिला कर्मचारी नमिता ने ज्वाइन किया। नमिता ने पहले दिन ही शानू से पूछा कि ,"ऑफिस में महिलाओं के लिए अलग वाशरूम नहीं है क्या ?"
शानू ने बताया ," नहीं है। "
नमिता ने पूछा ," तुम्हें यहाँ ज्वाइन किये हुए कितना समय हो गया ?तुमने अलग वाशरूम के लिए कोई ज्ञापन दिया है क्या ?कब दिया था ?कब तक वाशरूम तैयार हो जाएगा ?"
नमिता ने एक के बाद एक कई प्रश्न पूछ डाले।
शानू ने बताया ," उसे ज्वाइन किये हुए लगभग १ साल होने को आया और उसने कभी कोई ज्ञापन नहीं दिया। "
शानू ने अपने साथ घटित हुआ वाकिया बताते हुए पिछले 4 -5 महिनों से कॉमन वाशरूम उपयोग न किये जाने के बारे में बताया।
नमिता ने कहा ," तुमने कोई ज्ञापन क्यों नहीं दिया ?तुमने कहा नहीं ;इसलिए सबने सोच लिया होगा कि तुम्हें इससे कोई समस्या नहीं। "
शानू ने कहा ,"यार मुझे इस बारे में बात करते हुए शर्म आती थी . "
नमिता ने पूछा ,"और पीरियड्स के दिनों में कैसे मैनेज किया ?अगर सही समय पर सेनेटरी पैड्स नहीं बदलते तो कई तरीके के इन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है ."
शानू ने धीरे से दुखी होते हुए कहा ," कभी छुट्टी ली ;कभी बीच में घर जाती थी ;फिर भी मुझे संक्रमण हो ही गया था .पानी न पीने के कारण यूरिन का इन्फेक्शन भी हो गया था ."
नमिता ने कहा ," शर्म -वर्म छोड़ो .यह हमारी बेसिक जरूरत है .सोचो अगर हम जैसी आत्मनिर्भर लडकियां ही अपने अधिकारों और जरूरतों के बारे में नहीं बोलेंगी तो अन्य लड़कियों को अपने लिए खड़े होने की प्रेरणा कैसे मिलेगी ?हम आज ही ज्ञापन देंगे और सर से कहेंगे कि जब तक अलग वाशरूम नहीं बनता ,तब तक हमें किसी अधिकारी का वाशरूम उपयोग करने दे। "
शानू ने कहा ,"अधिकारी और कर्मचारी हमारे बारे में क्या सोचेंगे ?"
नमिता ने कहा ," यही सोचेंगे कि हमने अपनी साथी महिला कार्मिक के बारे में क्यों नहीं सोचा ? मज़ाक कर रही थी .जो भी सोचें,हमें उसके बारे में नहीं सोचना .हमें अपने स्वास्थ्य और बेसिक जरूरत के बारे में सोचना है .तू बोलेगी ,मुँह खोलेगी ;तब ही तो ज़माना बदलेगा ."
नमिता के समझाने पर ,नमिता के साथ शानू भी अधिकारी को ज्ञापन देने गयी थी .साथ ही नमिता ने अपनी बात भी अधिकारी को समझाई थी । नमिता के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम भी निकले ;कुछ समय बाद उनके लिए एक अलग वाशरूम बनवा दिया गया था।
दूध में उबाल आने पर शानू अपनी यादों से लौट आयी थी .शानू ने दूध मग में उड़ेला और कॉफ़ी तैयार कर ली थी .शानू ने सुबोध को कॉफ़ी पकड़ाते हुए बस इतना ही कहा ," औरतें थोड़ा सा सम्मान चाहती हैं। अगर तुम भी कभी कॉफ़ी बना दो ,घर के काम अपने काम समझकर कर दो ;तब अवसरों की समानता की बात करना। "
अपनी बात कहकर शानू वापस किचन में चली गयी थी।