निजात
निजात
गोमू आज रात भी बच्चे की रोने की आवाज से चौंक के जाग उठी , वह उठ कर बैठ गई , चारों और देखा..दरवाजा खोल के देखा ..पर कोई नही था, "ये मुझे क्या हो रहा है , कुछ वहम की बीमारी जैसा.."वो बुदबुदायी,
कल रात उसके हाथ पांव कांप उठे थे, जब उसने फिर एक अनब्याही मां को उसके कंलक भार से मुक्त करने के लिये उसका गर्भ को टटोला..गर्भ की कंपन से पूरे सात मासे बच्चे का अहसास हुआ था..."जन खाये ते..ऐल तक कां मर रैछी...अब नही लगाऊंगी हाथ.." चिल्ला पड़ी थी गोमू , जा यहां से भाग...वह अभागी सुबकती रही,गोमू कुछ सुनने को तैयार नही।
कितनी ब्याही.. अनब्याही मांओं को निजात दिलाई थी..पर आज पहली बार उसका कलेजा कांप उठा था।
वो भाग के कमरे में मटियाले फ्रेम के शीशे के आगे खड़े होकर अपने जन्म से मिले चेहरे के कटें निशानों को हाथों से सहलाती रही, हाथों में पड़ा एक लम्बा गहरा कट..टीसें देने लगा ,
पास में सोई "रामी बुआ"भी उसे आज अजनबी लग रही थी , वही तो उसकी मां-बाप है, और उसके पेशे की हेड भी, यानि गुरु मां भी।
जब भी वह पूछती "बूजी मेरे ईजा बाबू कैसे थे"?दीवार में लगी फोटो की और इशारा करके कहती , "वो देख मेरे ददा बोज्यू को..बोज्यू जैसी अनार पाई तूने", दोनों चले गये तुझे मेरी गोद में डाल के..मैं तो असमय ही मां बाप बन गई"।
रामी बुआ कई दिनों से बात बात में नाराज होती,"मत कर इतना अत्याचार..भरे पूरे महिने में तू कैसे हाथ लगाती है..दया माया कहां चली गई तेरी.. मत भाग कौड़ी की माया के पीछे...प्राश्चित भी नही मिलेगा तुझे..",
"बूजी अत्याचार नही करती हूं मैं...मदद करती हूं इन अकल की दुश्मनों की .. तुम तो तीन महिने से ऊपर खट से मना कर देती हो"..गोमू ने हंस के कहा,
बुआ चिल्ला पड़ी "मदद करती है तू...मरने को छोड़ देती है ..ऐसा ही मैंने सोचा होता तो ...सालों पहले वो बदजात..कलमुंही..दो महिने बाद ब्याह था उसका...पांव पकड़ लिये थे उसने मेरे...लतियाती रही मैं...पर टस से मस नही हुई.... क्या करती मैं...पर बचा लिये मैंने दोनों को ही..वरना तू भी नही होती यहां..अनायास क्रोध से कांपती रामी बुआ के मुंह से निकल पड़ा...,
इस असलियत से गोमू आवाक रह गई उस पल ..हजारों चींटियां शरीर में रेंगती महसूस हुई...जो अब तक शरीर में रेंग रही हैं।