हाथ पसारने में शर्म नहीं आती?
हाथ पसारने में शर्म नहीं आती?
छुट्टियों में जब भी मिनी अपनी दीदी राधिका के घर आती तो उससे एक बात बहुत अखरती थी कि उसकी दीदी अपने पति पर पूरी तरह निर्भर थी। वह अपनी दीदी राधिका को देखती आई थी कि वह हर छोटी मोटी जरूरत के लिए अपने पति से ही पैसे मांगती थी और कई बार उस कई बार उसके जीजाजी अमन उसकी दीदी राधिका को एक की चार सुना डालते थे।
अक्सर महीने के आखिरी तारीख तक घर का पूरा बजट डांवाडोल हो जाता और जब उसे पैसे की जरूरत पड़ती तो वह अपने पति अमन से पैसे मांगती थी। कई बार अमन खुशी खुशी दे देता और कभी कभी सुना भी देता था कि,
" इतना खर्च कहां होता है ?"
यह सब सुनकर मन को बहुत बुरा लगता। और एक दिन उसने अपनी दीदी से पूछ ही लिया कि,
"दीदी ! यूं जीजाजी से बार-बार पैसे के लिए हाथ पसारते हुए आपको शर्म नहीं आती ? "
मिनी की बात सुनकर राधिका ने मुस्कुराकर बहुत ही संयत स्वर में कहा,
"इसमें शर्म कैसी ? वह मेरे पति हैं और मैं उनकी पत्नी हूं। हम दोनों मिलकर ही यह घर चलाते हैं। मैं घर का काम अच्छे से संभालती हूँ और उनके मम्मी पापा की भी बहुत अच्छे से देखभाल करती हूं। तभी तो वह अपना ऑफिस का काम सुचारू रूप से कर पाते हैं।
मानती हूँ मैं नौकरी नहीं करती और घर के काम के लिए एक अवैतनिक कर्मचारी हूँ
लेकिन इस घर को चलाने में मेरा भी योगदान बिलकुल बराबर ही है।
इसलिए मुझे अपने पति से पैसे मांगने में शर्म कैसी ? मैं उनकी अर्धांगिनी बराबर हक है!"
और...इसे हाथ पसारना नहीं बल्कि अपना हक लेना कहते हैं मेरी बहना !"
अब मिनी को अपनी दीदी की बात
समझ में भी आ गई और पसंद भी आ गई।
