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बिड़ला विद्यामंदिर नैनीताल ३

बिड़ला विद्यामंदिर नैनीताल ३

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गुरुजनों के मामले में बिड़ला हीरों की खान थी। कुछ नाम कल लिखने से छुट गए थे, जैसे कि श्री बी.के. भट्ट जी, श्री पी.के. वर्मा जी, श्री धाराबल्लभ जी, श्री भटनागर जी, श्री पवार जी, श्री जोशी जी, श्री निर्वाण मुख़र्जी (जिम्नास्ट व् बौक्सर गुरु जी) हमारे पिता जी (वहाँ के फर्स्ट बैच १९४७ के छात्र) श्री जे.एन. राय गुरु जी का नाम भी अक्सर लेते थे। कारपेंटर गुरु जी का नाम हमें याद नहीं। बाकी भूल चूक के लिए भी फिर क्षमा।

जब हमने १९६७ में बिड़ला ज्वाइन किया तो हमारे ब्रेंटोन हाउस की मैट्रन मुन्ना दीदी थी। अपार स्नेह के साथ उनका अनुशासन। हम को भ्रातृ के रूप में विशेष अनुग्रह। रक्षाबंधन पर अलग से अपने हाथ से बनी खीर जरूर खिलाती। वास्तव में जब तक हम बिड़ला में रहे, तब तक वह हमारी माँ स्वरूप रहीं। तब तो यह बात हम नहीं समझ पाए और बाद में उस बात को समझने पर भी हम ने उनकी कोई खोज खबर नहीं ली। रिटायरमैंट के बाद टाऊन में कंसल बुक डिपो के आस पास ऊपर किसी पुराने रिश्तेदार के यहाँ रहती थी। हम सन २००० के आस पास आखरी बार उनसे मिले थे। स्वास्थ्य बहुत खराब होने के बावजूद भी आग्रह पूर्वक चाय पिलाई थी।

शिब्बन गुरु जी के पास एक एन.सी.सी की केन थी। तिमाही इम्तिहान में फेल होने वालों को २ केन प्रति फेल विषय के हिसाब से डिनर के बाद हाउस में बैन्ड डाउन कर के लगाते थे। हम भी संस्कृत व् भूगोल में फेल होते रहते थे, हम ने भी केन खाई।

सीनियर्स की एक मैराथन दौड़ होती थी। चुंगी से लैंड्स एंड तक और फिर वापसी, पहाडों के कम से कम १० किलोमीटर। शायद १ घंटा क्वालीफाइंग टाईम होता था। उसकी कोई प्रैक्टिस नहीं होती थी। वरिष्ठ छात्र बलकार सिंह उसके ५ साल विजेता रहे।

बिड़ला से छुटटियों पर जाते समय एक सीनियर छात्र की बायें हाथ की उंगलियाँ कट गई थी। उनका नाम हमें याद नहीं था, पर वह छुटटियों के बाद वापस पढ़ने आये। उनकी और उनके परिवार की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी। अभी हाल ही में हमसे सीनियर छात्र श्री रमेश रायजादा भाई साहब ने उनका नाम याद दिलाया। भाई दलपत सिंह लेकिन भाई दलपत सिंह जी की वर्तमान स्थिति उन्हें नहीं ज्ञात है।।

क्रमशः


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